विफलतायें अन्तत: सफलता में बदलती हैं। न बदलती होतीं तो लिंकन लिंकन न बन पाते। तब विफलताओं का भय क्यों लगता है?
(मैं अपनी कहूं तो) एक भय तो शायद यह है कि पहले असफल होने पर लगता था कि आगे बहुत समय है सफल होने का, पर अब लगता है विफलता चिपक जायेगी। उसके उलट यह भी है कि अब विफलताओं का परिणाम उतना भयावह नहीं होगा। कुल मिला कर अनिष्ट की आशंका समान होनी चाहिये। अंतर शायद यह है शरीर अब असफलता सहने की उतनी क्षमता नहीं रखता। या ज्यादा सही है कि शारिरिक अक्षमता को मनसिक रूप से गढ़ लिया है मैने?!
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मेरी पत्नी मेरे आत्म-धिक्कार की मनोवृत्ति से बहुत खफा हैं। वे मेरी “इनीशियल एडवाण्टेज” न होने की फ्रेजॉलॉजी (phraseology – शब्दविन्यास) को निहायत घटिया सोच मानती हैं। इस पोस्ट की शुरुआत भी मैं उस “इनीशियल डिसएडवाण्टेज” की बात से कर रहा था – और उससे आत्मदया की भावना पर शायद कुछ सहानुभूति युक्त टिप्पणियां मिल जातीं; पर क्या बतायें, इतनी सुबुक-सुबुकवादी धांसूं शुरुआत की रेड़ मार दी रीता पाण्डेय ने! और मेरी हिम्मत नहीं है कि आत्मदया छाप कुछ ठेलने की! |
होना यह चाहिये कि हर असफलता के बाद दोषारोपण का जो अनिवार्य खेल होता है, और आत्म-धिक्कार का सिलसिला चलता है, वह न हो। असल में कोई शिकार नहीं होता विफलता में। सब असफलता के वालण्टियर होते हैं। आप चुन सकते हैं कि आप वालण्टियर होंगे या विफलता से सीख कर सफलता का वरण करेंगे। सामान्यत: हम विफलता के वालण्टियर बनने की आदत पाल लेते हैं, जाने अनजाने में।
विफलता का सही सबक लें तो लोगों की सही पहचान हो सकती है। विपदा में ही मित्र या शत्रु की सही पहचान होती है। फेयर वेदर मित्र तो सभी होते हैं। इन सही मित्रों का भविष्य की सफलता का भागीदार चुनना असफलता का बहुत बड़ा प्लस प्वॉइण्ट होता है।
विफलता का विश्लेषण एक जरूरी अंग है सफलता सुनिश्चित करने का। जैसे मैं यह पाता हूं कि रिजर्व नेचर (इण्ट्रोवर्ट होना) बहुत बार मेरी घबराहट/चिन्ता का संवर्धक होता है और मैं उचित समय पर उचित लोगों से संप्रेषण नहीं कर पाता। यह बदलने का सयास यत्न किया है, पर वह शायद काफी नहीं है। इसी प्रकार सभी लोग अपनी विफलता से सीखने का यत्न कर सकते हैं। और तब विफलता का भय खाने की बजाय उससे सकारात्मकता निर्मित हो सकती है।
(यह तो फुटकर सोच है। अन्यथा, विफलता का भय तो ऐसा विषय है जिसपर अनन्त लिख कर और कुछ न कर इत्मीनान से असफल हुआ जा सकता है!)
कुहरे के बारे में पिछले दिनों बहुत कुछ झेला-सोचा-लिखा और सुना गया है मेरे रेलवे के परिवेश में। एक महत्वपूर्ण बात सामने आती है कि जब कुछ दिखाई न दे रहा हो, तब ट्रेन चालक को पुख्ता जानकारी दिलाना कि वह कहां चल रहा है – एक महत्वपूर्ण सुरक्षा औजार है। इसी को ले कर एक कल एक कम्पनी वाले की ओर से पावरप्वाइण्ट प्रेजेण्टेशन था एक उपकरण के विषय में जो ग्लोबल-पोजिशनिंग सेटेलाइट्स का प्रयोग कर रेलगाड़ी के चालक को आगे कौन सा स्टेशन, पुल, लेवल क्रासिंग गेट या सिगनल आने वाला है, उसकी पूर्व सूचना प्राप्त कराता है। यह सूचना कोहरे के समय में बहुत महत्वपूर्ण है।
अभी हम यह जानने के लिये कि स्टेशन आने वाला है, एक खलासी को कोहरे के समय स्टेशन के बाहर भेजते हैं जो रेल पटरी पर पटाखे लगाता है और रेलगाड़ी के इन्जन के ऊपर से गुजरने पर पटाखे की आवाज से चालक को पता चलता है कि स्टेशन आने वाला है। यह बहुत बढ़िया सिस्टम नहीं है। बहुत कुछ पटाखे वाले की कार्यकुशलता पर निर्भर करता है कि उसने समय पर पटाखे लगाये या नहीं। जियो-स्टेशनरी सेटेलाइट्स से यह आसानी से पता चल सकेगा।
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम का प्रयोग कर अनेकानेक प्रकार के बहुउपयोगी उपकरण सामने आयेंगे। यह फॉगसेफ उनमें से एक है।

आज की पोस्ट देख कर मुझे टाटा इस्पात का एक इश्तहार याद आ रहा है जो टी वी पर अक्सर दिखाया जाता थाउसमें वो शुरुवात करते है हम पुल बनाते हैं, ट्रेन बनाते हैं, मकान बनाते है, यानि की देश चलाते है और लोगों कि जिन्दगी भी सुखमय बनाते हैं जब आप सोचने लगे कि ये ये सब क्युं कह रहे हैं वो लास्ट में बोलते है ‘ हम इस्पात भी बनाते हैं ‘आप की पोस्ट देख कर लगता है आप इंजिनियर हैं और रेल यातायात चलाते हैं ये महज इन्सीडेंटल है…असली में तो मनोवैज्ञानिक हैं…।:)आप का ये कहनाजैसे मैं यह पाता हूं कि रिजर्व नेचर (इण्ट्रोवर्ट होना) बहुत बार मेरी घबराहट/चिन्ता का संवर्धक होता है और मैं उचित समय पर उचित लोगों से संप्रेषण नहीं कर पाता। बॉस ये बात पचती नहीं, और इन्ट्रोस्पेक्शन की जरूरत है।
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विफलता मिलने पर मै पहले बहुत उदास हो जाता था, लेकिन धीरे धीरे विफलता से सबक लेना शुरू किया, ओर अब मै विफलता को देख कर मुस्कुरा देता हूं, क्योकि मुझे इतना भरोसा हो गया अपने ऊपर की मै जरुर सफ़ल हो जाऊगां, ओर हो भी जाता हूं, अगर ना भी सफ़ल हुआ तो दिल मै यह रंज नही रहता की मेने कोशिश नही की, ओर फ़िर से हिम्मत करता हु तो सफ़ल हो जाता हुं, यही शिक्षा मै अपने बच्चो को दे रहा हुं कि विफलता से लडॊ, देखो केसे सफ़ल नही होतॆ, मेरी जिन्दगी मै कई बाते ऎसी आई जिस के बारे शायद कोई सोच भी नही सकता था, ओर विफलता १००% थी लेकिन मेनेजब कोशिश की तो १००% सफ़ल हो गया.ग्याण जी जब निश्च्या पका हो दड्य हो तो सफ़लता जरुर कदम चुमेगी.धन्यवाद
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‘फेयर वेदर मित्रों’ के लिए रहीम ने बहुत बढिया बात कही है -रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।हित अनहित या जगत में, जानी परे सब कोय।।इसलिए विपदाओं का (असफलता भी छोटी विपदा नहीं होती) आगमन अन्तत: व्यक्ति को लाभदायक ही होता है।
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आप सचमुच ब्लागिंग के लिए रत्न ढूढकर लाते हैं—मेरा पृष्ठचाँद, बादल और शाम
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विफलता या सफलता दोनों तभीतक ठीक हैं जबतक किसी एक की आदत न पड़े.
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विफलता का डर जरुरी है, वर्ना कोई भी व्यक्ति काम ही न करे. लेकिन इतना डर नहीं होना चाहिये कि हम को काठ मार जाये.भाभी को याद दिला दें कि “इनीशियल एड्वांटेज” न मिलने के कारण जो दुख होता है उसे समझना सिर्फ मुझ जैसे लोगों के वश की बात है जो उसी नाव में सफर कर रहे हैं.सस्नेह — शास्त्री
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सरजी, मैंने आजतक कोई ऐसा सफल बंदा नहीं देखा, जो विफल नहीं हुआ हो। विफल और सफल लोगों में बहुत थोड़ा फर्क होता है. विफल अपनी विफलता को फाइनल मानता है और सफल विफलता को सेमीफाइनल मानता है। लगे रहो, मुन्नाभाई। यह सिर्फ इश्क का ही नहीं, सफलता का भी सूत्र वाक्य है.
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मेरी पत्नी मेरे आत्म-धिक्कार की मनोवृत्ति से बहुत खफा हैं। वे मेरी “इनीशियल एडवाण्टेज” न होने की फ्रेजॉलॉजी (phraseology – शब्दविन्यास) को निहायत घटिया सोच मानती हैं। इसे पढने के बाद भाभी जी को जानने की इच्छा तीव्र हो चली है!she must be a very strong woman.
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ग्लोबल-पोजिशनिंग सेटेलाइट्सयह तो बहुत बड़ी सफलता होगी रेलवे की ! हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ !
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”आप चुन सकते हैं कि आप वालण्टियर होंगे या विफलता से सीख कर सफलता का वरण करेंगे। सामान्यत: हम विफलता के वालण्टियर बनने की आदत पाल लेते हैं, जाने अनजाने में। विफलता का सही सबक लें तो लोगों की सही पहचान हो सकती है। विपदा में ही मित्र या शत्रु की सही पहचान होती है। फेयर वेदर मित्र तो सभी होते हैं। इन सही मित्रों का भविष्य की सफलता का भागीदार चुनना असफलता का बहुत बड़ा प्लस प्वॉइण्ट होता है।”इस मुद्दे पर गांठ बांध लेने लायक इस कथन से अधिक कुछ सोचना-समझना शायद मेरी मोटी बुद्धि से बाहर की चीज है। जीवन की असली पाठशाला विफलताएं ही होती हैं। आरंभिक दौर में ही जो इस पाठशाला में सबक सीख चुके होते हैं, भविष्य की सफलताओं का मार्ग शायद उनके लिए आसान हो जाता है। बहुत ही प्रेरणादायी व ज्ञानवर्धक पोस्ट।
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