फुदकती सोच पब और प्रार्थना को जोड़ देती है!1
मैं नहीं जानता पब का वातावरण। देखा नहीं है – बाहर से भी। पर यह समझता हूं कि पब नौजवानों की सोशल गैदरिंग का आधुनिक तरीका है। यह शराब सेवन और धूम्रपान पर आर्धारित है (बंगाल की अड्डा संस्कृति की तरह नहीं, जो शायद लम्बे और गहन बौद्धिक बातचीत से सम्बन्ध रखती है)।
मुझे आशंका है (पर ठीक से पता नहीं) कि पब स्वच्छंद यौन सम्बन्ध के उत्प्रेरक हैं। हों, तो भी मैं उनके उद्दण्ड मुथालिकीय विरोध का समर्थक नहीं। हिन्दू धर्म इस प्रकार की तालीबानिक ठेकेदारी किसी को नहीं देता।
मैं यहां सामाजिक शराब सेवन और धूम्रपान (जिसमें नशीले पदार्थ जैसे मरीजुआना का सेवन शामिल है) के बारे में कहना चाहता हूं। ये सेवन एडिक्टिव (लत लगाने वाले) हैं। अगर आप इनका विरोध करते हैं तो आपको खैनी, पान मसाला और तम्बाकू आदि का भी पुरजोर विरोध करना चाहिये। पर शायद तथाकथित हिन्दुत्व के ठेकेदार पानमसाला और जर्दा कम्पनियों के मालिक होंगे। हनुमान जी के कैलेण्डर जर्दा विज्ञापित करते देखे जा सकते हैं!
अनिद्रा और अवसाद की दवाइयों के एडिक्टिव प्रकार से मैं भली प्रकार परिचित हूं। और मैं चाहता हूं कि लोग किसी भी प्रकार की व्यसनी जकड़न से बचें। क्रियायोग अथवा सुदर्शन क्रिया शायद समाधान हैं – और निकट भविष्य में इनकी ओर जाने का मैं प्रयास करूंगा। पर समाधान के रूप में प्राणायाम और प्रार्थना बहुत सरल उपाय लगते हैं। सामुहिक या व्यक्तिगत प्रार्थना हमारे व्यक्तिगत महत्व को रेखांकित करती है। व्यक्तिगत महत्व समझने के बाद हमें ये व्यसन महत्वहीन लगने लगते हैं। ऐसा मैने पढ़ा है।
पब में एडिक्शन है, और एडिक्शन का एण्टीडोट प्रार्थना में है। यह मेरी फुदकती सोच है। उद्दण्ड हिन्दुत्व पब संस्कृति का तोड़ नहीं!
1. Hopping thoughts correlate Pub and Prayer!

पब या बार को नशे से जोड़कर देखना भी पूरी तरह सही नहीं है. कई बार मैं भी गया हूँ हमारे ग्रुप में आधे लोग ऐसे हैं जिन्होंने कभी दारु, सिगरेट छुई भी नहीं है ! एक-दो बार उत्सुकता से, और कई बार साथ के एकाध लोगों की इच्छा हो गई तब. पब में कॉफी, बार में दूध और जूस भी मिल जाता है ! हर जगह का तो पता नहीं लेकिन एक जगह दूध मंगाने का तो अपना अनुभव है. अपनी-अपनी जीवन शैली है, अच्छा-बुरा सोचना और अपने लिए कुछ भी करने के लिए व्यक्ति स्वतंत्र है. परिवार, स्कूल, संस्कार ये कुछ अच्छा-बुरा सिखाते हैं. उसके बाद जिसे जो अच्छा लगा वो करे ! ये लोग बीच में कहाँ से आते हैं अपनी समझ के बाहर है. ये जो तालिबानी कल्चर अपनाते हैं उन्हें सरे आम गोली मार दी जाय तो भी कोई बुराई नहीं है. मुझे इस बात का दुःख है की ये ‘हिंदू’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी विशालता और अच्छी बातें कभी कम नहीं पड़ती. इनका काम किसी भी तरीके से जस्टिफाई किया ही नहीं जा सकता. मुझे तो ये मानसिक बीमार लोग लगते हैं देश और धर्म का नाम बदनाम करने वाले दुश्मन. बाकी और भी कई नेक काम (जैसे प्रार्थना) हैं जो एंटीनोड का काम कर सकते हैं लेकिन एंटीनोड की तलाश किसे है ? इन तालिबानों को तो नहीं ही है ! कर्नाटक के मुख्यमंत्री को नहीं चाहिए, पर उनकी बेटी जो बीपीओ कंपनी चलाती हैं उनकी नजर में ये फैसला औरतों को करना है की उन्हें जाना है या नहीं ! या तो ये जेनेरेशन गैप है या मानसिक कुंठा ! जो भी हो मुझे परेशानी हिंदुत्व और भारत को बदनाम करने को लेकर ज्यादा हुई. हिंदुत्व और भारत उनके बाप का नही. अगर सरकार को कुछ करना है तो ऐसे नामों को इस्तेमाल करने पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए. धार्मिक और देश का नाम इस्तेमाल करके पार्टी नहीं बनाने दिया जाना चाहिए. और ऐसी घटनाएं तो सपने में भी घटित नहीं होने दिए जाने चाहिए. अगर पाकिस्तानी अखबार लिखते हैं की हिंदुस्तान में ख़ुद तालिबान है और फलां सेना के स्युसाइडबमर होते हैं ! तो क्या ग़लत कहते हैं? अगर हम अपने घर में इतना होने देते हैं तो उन्हें बढ़ा-चढा के कहने का हक़ बनता है.
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पब संस्कृति हमारी संस्कृटि तो कदापि नही, पब क्या ओर बहुत सी बिमारियां जो पाश्चात्य मै है, जेसे यह आने वाला वेलनटाईन डे, असल मै हम बन्दर है, नकल मारना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, चाहे फ़ुलहड ही दिखे नकल तो मारनी ही है, पाश्चात्य जगत मे बहुत सर्दी होती है, ओर यह सब इन के अपने तोय्हार है अपना कलचर है, मेने तो कभी किसी गोरे को दिपावली, होली, रक्षा बंधन मनाते नही देखा, बाल्कि यह शायद हमारे इन त्योहारो को जानते भी नही होगे, तो क्या यह आजाद नही ? पिछडे है? ओर हम बंदर ही तो हुये जो इन का अनुसरण करते है….:)ग्याण जी धन्यवाद आप ने बहुत अच्छा विषय उठाया, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है.
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मार-पीट या गुंडा-गर्दी से क्या साबित करना चाहते है । आज सुबह ही आउटलुक (९ feb. ) मे पढ़ रहे थे इसी विषय मे ।
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पब कभी गया नहीं अतः कह नहीं सकता कि वहाँ क्या होता है. हमारे यहाँ तो खूलेआम शराब बिकती भी नहीं. बंगाल में अड्डाबाजी समय को बरबाद करने का साधन था, क्या हासिल होता था/है पता नहीं. पब बौद्धिक कसरत के लिए नहीं, तनाव मुक्ति के लिए जाते है. पब अधिक संख्यक लोग नहीं जाते इसलिए पब जाने वालों का विरोध कर ईर्ष्यालुओं का समर्थन भी पाया जा सकता है. धूम्रपान तो हर वर्ग करता है.
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बहुत सटीक लिखा है दो एक बार कुछ पब वब टाइप की जगह पर जाना हुआ अगर सिगरेट का इरिटेटिंग धुआं कुछ ज्यादा नही हो तो हमें पब ज्यादा बार जाने में कोई परेशानी नही होती .खैर वो धुंआ तो पब के बाहर भी हर जगह मिल जाता है
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इस टिप्पणी को पब से लौटकर ही कर रहे हैं(बुधवार को ११ किमी दौडने के बाद दारू पीने के बाद)। कितनी अजीब बात है कि राईस विश्वविद्यालय अमेरिका के उन कुछ उंगली पर गिनने लायक स्कूल्स में से है जिन्होने कैम्पस परिसर पर ही पब चलाने की अनुमति दे रखी है। और मजे की बात है कि ये नो प्राफ़िट नो लास के चलते बहुत सस्ती बीयर बेचते हैं क्योंकि साकी (बारटेन्डर) भी ग्रेजुएट स्टूडेन्ट्स ही होते हैं (हम अगले सेमेस्टर में बनने का सोच रहे हैं) । http://valhalla.rice.edu (ये हमारे पब का पता है)राईस यूनिवर्सिटी टेक्सास (Consevative state) में है लेकिन हमारा स्कूल काफ़ी Liberal है। और तो और Gay & Lesbians से सम्बन्धित विद्यार्थी संघ भी मिल जायेंगे और Catholic/Baptist student organization भी, मजे की बात है कि इस सबके बाद भी स्कूल भ्रष्ट नहीं हुआ है जैसा बहुत से लोग सोच रहे हॊंगें। उदार सोच के बहुत से साईड इफ़ैक्ट्स होते हैं और जैसे सब अच्छे नहीं हो सकते, सभी बुरे भी नहीं हो सकते। ये बेईमानी है कि हम सब कुछ अच्छा चाहें, ये एक पैकेज्ड डील है जिसमें सब कुछ मिलेगा। बस जिस दिन लोग इस पैकेज्ड डील को समझ लेंगे सारी समस्यायें खतम। मां बाप चाहते हैं कि कन्या खूब पढे, नौकरी करे लेकिन अपनी समझ से सोचकर उनके अच्छे बुरे पर सवाल न करे, अपनी सोच से कोई लडका अच्छा लगे तो उसे जीवनसाथी न बनाये, ये सरासर बेईमानी है।आपकी बात से सहमत हैं कि नशा एक अच्छी बात नहीं, लेकिन अच्छा तो बहुत कुछ नहीं है। क्या करें, फ़िर वही पैकेज्ड डील….युवाओं पर भरोसा करें, वो भी अपना अच्छा बुरा सोचने में सक्षम हैं।
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हिन्दुत्ववादी जाहिल सोच रखते हैं। इन्हें हिन्दुत्व का अर्थ भी नहीं पता और पब का भी नहीं।…फुदकती सोच है बात गंभीर है…ताऊ को पहली बार बांग्ला बोलते सुना है….क्या राज़ है ?
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मैं पब में जाता रहता हू.. वहा दोस्तो के साथ बैठकर बतियाना अच्छा लगता है.. मैं सिगरेट और शराब नही पिता.. और इसके लिए मुझे किसी क्रियायोग अथवा सुदर्शन क्रिया की आवश्यकता नही.. पब जाने का ये अर्थ नही की मैं भारतीय नही हू.. और मैं भारतीय हू या नही इसका फ़ैसला लेने वाले कोई और नही होंगे.. आपने बिल्कुल ठीक कहा है.. “शायद तथाकथित हिन्दुत्व के ठेकेदार पानमसाला और जर्दा कम्पनियों के मालिक होंगे”
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जोर जबरद्स्ती से आप पब बन्द नहीं कर सकते… वेलनटाईन डे जिसे मनाना है मनायेगा.. और क्यों नहीं मनाये.. क्या भारतिय क्या पाश्चात्य..अगर लकिर खिचेंगे तो बहुत लम्बी हो सकती है.. और ’लंगोट’ तक भी जा सकती है.. जरुरत है विकल्प देने की.. आप युवाओ को पब से बेहतर विकल्प दें.. तो वो पब में क्यों जायेंगें.. आपकी फुदकती सोच भी एक विकल्प दे रही है.. चर्चा जारी रहे.. कुछ तो हल होगा ही..
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प्रणायम, सहज क्रिया आदि एक मानसिक स्थिरता दिलाने की प्रक्रिया को अपनाना भी एक मानसिक स्थिरता मांगती है.हम जैसे और आप जैसे चिर युवाओं एवं इस पब संस्कृति को अपनाये युवाओं की फुदकती स्थितियों के लिए कोई नई फुदकन प्रणायाम या फुदकन क्रिया की व्यवस्था आये तो काम बनें. डंडे से खैर कब क्या हासिल हुआ है-उसका तो विरोध होना ही चाहिये.
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