साहित्यकार हिन्दी का बेटा-बेटी है। शायद वसीयत भी उसी के नाम लिख रखी है हिन्दी ने। न भी लिख रखी है तो भी साहित्यकार मानता है कि उत्तराधिकार कानूनानुसार न्यायव्यवस्था उसी के पक्ष में निर्णय देगी। हिन्दी का जो भी है, उसका है, यह शाश्वत विचार है साहित्यकार का।* बेगारी पर पोस्ट ठेलक हम जैसेContinue reading “बेगारी पर हिन्दी”
Monthly Archives: Mar 2009
एक आत्मा के स्तर पर आरोहण
पर जो भी मेहरारू दिखी, जेडगुडीय दिखी। आदमी सब हैरान परेशानश्च ही दिखे। लिहाजा जो दीखता है – वह वही होता है जिसमें मन भटकता है। आत्मा कहीं दीखती नहीं। आत्मा के स्तर पर आरोहण सब के बस की बात नहीं। जैसे “युधिष्ठिर+५+कुकुर” चढ़े थे हिमालय पर और पंहुचे केवल फर्स्ट और लास्ट थे; वैसेContinue reading “एक आत्मा के स्तर पर आरोहण”
शिवजी की कचहरी
सूअरों, भैंसों और बजबजाती नालियों के बीच रहकर भी कुछ तो है, जिसपर मैं गर्व कर सकता हूं। सिद्धेश्वरनाथ जी के मन्दिर में वे अगरबत्ती जला रहे थे। मुझे लगा कि यही सज्जन बता सकते हैं शिवजी की कचहरी के बारे में। मेरे अन्दर का अफसर जागृत होता तो मैं सटक लिया होता। अफसर इसContinue reading “शिवजी की कचहरी”
