ट्रेन में मेरी यात्रा सामान्यत: वातानुकूलित क्लास में होती है अन्यथा कैरिज में या इन्जन पर। पर जब मुझे बताया गया कि वाराणसी से इलाहाबाद 2X2 की वातानुकूलित बसें चलने लगी हैं, मैने केवल अनुभव लेने के लिये उसमें यात्रा करने का निर्णय किया।
रात मैने कटका स्टेशन के पास अपने ससुराल के गांव विक्रमपुर में बिताई थी। अगले दिन मुझे वातानुकूलित कार में बनारस पंहुचाया गया और जब मैने पत्नीजी के साथ वातानुकूलित बस पकड़ी तो एक सुकून था कि मेरे आगे-पीछे रेलवे का अमला नहीं था। सी-ऑफ के लिये कोई स्टेशन मास्टर साहब नहीं थे। हमारा सामान उठाने के लिये कोई पोर्टर नहीं था। बस में अपनी सीट भी हमें तलाशनी थी और सामान भी स्वयं जमाना था। अच्छा ही लगा।
पत्नीजी को बस में बिठा कर मैने बस अड्डे की एक परिक्रमा कर डाली। वहां की सफाई को देख कर सुखद आश्चर्य हुआ। केवल यह देख खराब लगा कि लोग निर्बाध तरीके से कोने की दीवार के सहारे मूत्र विसर्जन कर रहे हैं। खैर, रेलवे स्टेशन पर भी यही सद्व्यवहार करते हैं लोग।
REFUND IN CASE OF FAILURE OF AIR-CONDITIONING EQUIPMENT
जब वातानुकूलन यात्रा के एक भाग के लिए काम नहीं किया है, तो रिफण्ड इस यात्रा के ऐसे हिस्से के लिए कंडक्टर/गार्ड का एक प्रमाण पत्र गंतव्य स्टेशन पर यात्रा समाप्ति के चौबीस घण्टे के अन्दर प्रस्तुत करने पर किया जायेगा। रिफण्ड निम्न होगा:
1) एसी प्रथम श्रेणी के मामले में, एसी प्रथम श्रेणी का किराया और प्रथम श्रेणी मेल/एक्स्प्रेस किराया के बीच का अंतर।
2) एसी 2 टियर स्लीपर/एसी 3 टियर स्लीपर क्लास के लिये एसी 2/ एसी 3 टियर किराया और स्लीपर श्रेणी के मेल/एक्सप्रेस किराया के बीच का अन्तर।
3) एसी चेयर कार वर्ग के लिये एसी चेयर कार वर्ग और द्वितीय श्रेणी मेल / एक्सप्रेस किराया के बीच का अंतर।
4) शताब्दी गाड़ियों की एग्जीक्यूटिव क्लास के टिकट के मामले में नोटीफाइड किराये और प्रथम श्रेणी के लिए संबंधित दूरी के लिए व्यक्त किराये का अंतर।
(मेरा यह अनुवाद गूगल ट्रांसलेशन की मदद से है, लिहाजा अटपटा लग सकता है! और यह अफीशियल अनुवाद नहीं माना जाये।)
बस यात्रा शाम पौने छ बजे शुरू हुई। शुरू के आध घण्टे ठीक चला। ड्राइवर के सामने के पैनल पर कई बत्तियां जल बुझ रही थीं। बस का प्रेशर हॉर्न खराब लग रहा था और ड्राइवर उसका प्रयोग भी ज्यादा ही कर रहा था। सीट ठीक थी और वातानुकूलन अच्छा। कुल मिला कर ठीक ठाक।
फिर जो हुआ, होना ही था। वातानुकूलन फेल हो गया। बस के ऊपर के वेण्टीलेटर खोल दिये क्लीनर ने। ड्राइवर ने मोबाइल पर इलाहाबाद डिपो से बातचीत कर थोड़ी ट्रबलशूटिंग की और आधे घण्टे में वातानुकूलन पुन: चालू किया। एयर कण्डिशनिंग यूनिट आधा घण्टा चली और फिर बैठ गयी। करीब घण्टे भर का सफर और बचा था। हम सोच रहे थे कि कट जायेगा। पुरवाई चल रही थी। मौसम गरम नहीं था। ज्यादा परेशानी न थी।
पर तभी उत्तरप्रदेश का क्रांतिकारी चरित्र जाग गया। पांच-छ यात्रियों ने बस रुकवा कर कहा कि या तो पीछे आ रही वातानुकूलित बस मैं एडजस्ट कराओ, या रिफण्ड दो। पीछे वाली बस में समायोजित कर पाने की बात बेकार थी। रिफण्ड का प्रावधान होना चाहिये था। पर कण्डक्टर और ड्राइवर ढेरों फोन मिलाते रहे अपने अधिकारियों का। टालमटोल जवाब मिले। अंतत: चालीस मिनट बरबाद कर एक निर्णय मिला कि प्रति टिकट पचास रुपया वापस मिलेगा। क्रान्तिकारी यूपोरियन चरित्र जीत गया। हंडिया से जब बस चली तो इतना समय बरबाद कर चुकी थी, जितने में इलाहाबाद पंहुच जाती।
कण्डक्टर ने अपने काटे टिकटों पर रिफण्ड दिया। पर आधे पैसेंजर, जिन्होंने बनारस डिपो से टिकट लिया था, जिनमें मैं भी था, अंगूठा चूस रहे थे। मैने कण्डक्टर के बताये फोन नम्बर पर इलाहाबाद के एक रोड ट्रांसपोर्ट अधिकारी से बात की तो पता चला कि उन सज्जन को रिफण्ड के नियम ही स्पष्ट नहीं थे। मैं बात में वजन देने के लिये उनसे जितना अंग्रेजी ठेलने का यत्न करने लगा, उतना वे अवधी में पसरने लगे। उनके ऊपर के इलाहाबाद/वाराणसी के अधिकारी फोन पर मिले ही नहीं!
इस बीच में इलाहाबाद के पहले हनुमानगंज के बाद ट्रैफिक जाम में बस रुकी तो कण्डक्टर धीरे से सटक कर बस से गायब हो गया। बेचारा निश्चय ही तनाव में था कि जो रिफण्ड उसने किया है, उसपर अधिकारी कायम रहेंगे या नहीं!
मेरे लिये तो यह अनुभव लेने की यात्रा थी। लिहाजा ज्यादा कष्ट न था। सौ रुपये का रिफण्ड न मिलना उस अनुभव के समक्ष कुछ खास न था। पर कुछ गुस्साये यात्रियों ने इलाहाबाद में बस से उतरते समय बस की कुछ सीटों की अपहॉल्स्टरी नोच ली थी।
ऐसे में रेलवे क्या करती? हम भी क्रुद्ध यात्रियों को फेस करते हैं। वातानुकूलन फेल होने पर दूसरा वातानुकूलित कोच उपलब्ध कराना बहुत ही कठिन होता है। पर रिफण्ड देने में तो कोई परेशानी ही न होती। उसके नियम तो बड़े साफ हैं। मैने बॉक्स में प्रस्तुत कर दिये हैं।

MPSRTC वाले अभी भी निजी बसे किराये पर लेकर कुछ रुटस पर संचालित कर रहे हैं.:)रामराम.
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मैं बात में वजन देने के लिये उनसे जितना अंग्रेजी ठेलने का यत्न करने लगा, उतना वे अवधी में पसरने लगे।:) मजेदार अनुभव रहा।
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एक बार और न करिए बस यात्रा रही सही कसर पूरी न हो जाय तो कहियेगा !
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AC fail hone par refund mil sakta hai..rochak ..lekin us ke kitne jhanjhat hotey hain…aur aksar kaun jhanjhaton mein padey soch kar..in ‘possible refunds’ ko hum bhool jatey hain.
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@ अनूप जी, यात्रा में कष्ट न हों तो क्या मजा? कष्टहीन यात्रायें यादगार नहीं रहतीं।सहमत हूँ । पोस्ट भी चक चकायमान है।
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“मैं बात में वजन देने के लिये उनसे जितना अंग्रेजी ठेलने का यत्न करने लगा, उतना वे अवधी में पसरने लगे।”बहुत मज़ेदार, ज्ञान सर!:)
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एक बार ट्रेन में भी वातानकूलक फेल हो गया था। मई का महीना था, खिड़की खोलने का विकल्प भी नहीं था। बहुत परेशान हुए थे उस दिन।
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ऐसा ही वाकया मेरे साथ ट्रेन में हुआ और आखिर में टी . सी भी गायब हो गया .
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मध्य प्रदेश मे नही छत्तीसगढ मे रोडवेज़ बंद हुई है और व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के चलते यात्रियो को बहुत बढिया सेवा मिल रही है।रोडवेज की खटारा बसों मे सफ़र करना अब मज़बूरी नही रही,एक से एक लग्ज़री बस चल रही है,और एक रूट पर काफ़ी बस चल रही है।उत्तर प्रदेश के लिये छत्तीसगढ से सीधी बस सेवा शुरू होना है लेकिन उ प्र रोडवेज अदालती चक्करो मे अट्का कर उसे शुरू नही होने दे रही है।रहा सवाल एसी बसों का तो बसो का एसी भी बढिया काम करता है।यंहा से भी कुछ बस चलती है और नागपुर से तो पूणे,हैदराबाद और अन्य शहरो के लिये एसी बसो की नियमित सेवा है।
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बहुत ही सुन्दर आलेख. एक नया अनुभव आपके लिए. वैसे आजकल कि luxury बसें अच्छी हो गयी हैं
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