ट्रक परिवहन


अपने जवानी के दिनों में एक काम जो मुझे कर लेना चाहिये था, वह था, एक दिन और एक रात ट्रक वाले के साथ सफर करना। यह किसी ट्रक ड्राइवर-क्लीनर के साथ संवेदनात्मक सम्बन्ध स्थापित करने के धेय से नहीं, वरन उनके रेलवे के प्रतिद्वन्द्वी होने के नाते उनके धनात्मक और ऋणात्मक बिन्दुओं को समझने के लिये होता। अब लगता है कि उनके साथ यात्रा कर उस लेवल का डिस-कंफर्ट सहने की क्षमता नहीं रही है।

ट्रक परिवहन में एक फैक्टर अक्षम ट्रैफिक सिगनलिंग और उदासीन ट्रैफिक पुलीस-व्यवस्था भी है। खैनी मलता ट्रेफिक पुलीसवाला – बड़े टेनटेटिव भाव से हाथ का इशारा करता और उसे न मानते हुये लोग, यह दृष्य तो आम है। अपनी लेन में न चलना, गलत साइड से ओवरटेक करना, दूसरी ओर से आते वाहन वाले से बीच सड़क रुक कर कॉन्फ्रेन्स करने लगना, यह राष्ट्रीय चरित्र है। क्या कर लेंगे आप?

फिर भी, मैं चाहूंगा कि किसी बिजनेस एग्जीक्यूटिव का इस तरह का ट्रेवलॉग पढ़ने में आये।

इतने इण्टरस्टेट बैरियर हैं, इतने थाने वाले उनको दुहते हैं। आर.टी.ओ. का भ्रष्ट महकमा उनकी खली में से भी तेल निकालता है। फिर भी वे थ्राइव कर रहे हैं – यह मेरे लिये आश्चर्य से कम नहीं। बहुत से दबंग लोग ट्रकर्स बिजनेस में हैं। उनके पास अपने ट्रक की रीयल-टाइम मॉनीटरिंग के गैजेट्स भी नहीं हैं। मोबाइल फोन ही शायद सबसे प्रभावशाली गैजेट होगा। पर वे सब उत्तरोत्तर धनवान हुये जा रहे हैं।

Truck किस स्तर की नैतिकता रख कर व्यक्ति इस धन्धे से कमा सकता है? वे अपनी सोशल नेटवर्किंग के जरीये काम करा लेते हों, तो ठीक। पर मुझे लगता है कि पग पग पर विटामिन-आर® की गोलियां बांटे बिना यह धन्धा चल नहीं सकता। जिस स्तर के महकमों, रंगदारों, नक्सलियों और माफियाओं से हर कदम पर पाला पड़ता होगा, वह केवल “किसी को जानता हूं जो किसी को जानते हैं” वाले समीकरण से नहीं चल सकता यह बिजनेस।

शाम के समय शहर में ट्रकों की आवाजाही खोल दी जाती है। अगर वे चलते रहें, तो उनकी ४०कि.मी.प्र.घ. की चाल से ट्रेफिक जाम का सवाल कहां पैदा होता है? पर उनकी चेकिंग और चेकिंग के नाम से वसूली की प्रक्रिया यातायात को चींटी की चाल पर ला देते हैं। इस अकार्यकुशलता का तोड़ क्या है? यह तोड़ भारत को नये आर्थिक आयाम देगा।

लदे ट्रक पर एक दिन-रात की यात्रा भारतीय रेलवे ट्रैफिक सर्विस की इण्डक्शन ट्रेनिंग का एक अनिवार्य अंग होना चाहिये – लेकिन क्या रेलवे वाले मेरा ब्लॉग पढ़ते हैं?!        


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

39 thoughts on “ट्रक परिवहन

  1. एक सीक्रेट फार्मूला ब्लागर भाई के पास है। सफल ट्रांसपोर्टर होने के लिये पत्रकार संघ का अध्यक्ष होना जरुरी है और वाइसे-वरसा। अरे अनिल भाई आप कहाँ हो? आपकी टिप्पणी का इंतजार है—-

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  2. मुझे न तो ट्रक पर विश्‍वास है .. न ट्रक ड्राइवरों पर .. उनके सामने रास्‍ते पार करते मेरे तो होश ही गुम रहते हैं .. इसी कारण कभी उनकी समस्‍याओं के बारे में न सोंच सकी।

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  3. माल ढूलाई में रेल का भ्रष्टाचार देख अपने को तो अजीब लगा था. वहीं जो माल रेल को यहाँ वहाँ ले जाना होता है वह भगवान भरोसे पड़ा रहता है. गोदामें देखी है. व्यवसायिक रूख अपना कर जिम्मेदारी निभाए तो रेल्वे का माल ढूलाई का काम सोना उगले और यह देश के लिए भी शुभ है. वैसे आज भी काम तो होता ही है, मगर प्रतियोगिता ट्रक से है तब….

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  4. हां इस धंधे मे विटामिन R तो अत्यंत जरुरी है यानि आप कह सकते हैं कि यह तो कैटेलिक एजेंट है.हमने एक नया ट्रक १९७३ मे ब्रांड न्यु खरीदा था..सारे प्रयत्नों के बावजूद भी इसको ड्राईवर को ही देना पडा. घाटा हुआ पर इससे इस धंधे की नई लाईन मिली जो हम यहां नही लिख स्कते.इस धंधे मे जो लोग सफ़ल कहलाते हैं वो कुछ अलग कारणों से सफ़ल हैं. जिनमे कुछ अवांछनिय वस्तुओं का परिवहन एवम अन्य कारण भी है.वैसे इतनी लूटमार के बाद इस ट्रकबाजी के धंधे मे अगर कोई अपने बीबी बच्चों को पाल ले तो गनीमत है. और वो भी हाडतोड मेहनत के बाद.रामराम

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  5. सही है. मैं कल्पना कर सकता हूं. रात का एक बजा है, हाइवे पर तेज रफ़्तार से एक ट्रक भागा जा रहा है. नशे में धुत्त ड्राइवर दायां हाथ स्टीयरिंग पर और बायां अपने कान पर टिका कर तान छेड़ता है…गड्डी जांदी है छलांगा मार दी s s s ….पीछे की सीट पर सींकिया सा क्लीनर आंखें बंद किये गाने पर झूम रहा है और ड्राइवर की बगल सीट पर विराजमान अनुभवोत्सुक आप दोनों हाथ जोड़े ईश्वर को याद कर रहे हैं. विकट सीन बनता है.————————–गम्भीर मुद्दे को ट्रिवियलाइज्ड करने के लिये क्षमा चाहता हूं.

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  6. बहुत ही सुन्दर आलेख. टिप्पणीकारों में हम श्री अनिल पुसदकर जी को ढूँढ रहे थे. वे इस व्यवसाय से शायद जुड़े हैं

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  7. सही है ,आज -कल ट्रक वाले परिवार बहुत आर्थिक संकट में चल रहें है .एक तो मंदी की मार से माल नहीं मिल रहा है दूजे जगह -जगह धन उगाही .मेरे गाँव में एक परिवार इस सब कारणों से तबाही के कगार पर पहुंच चुका है .उम्दा पोस्ट /रिपोर्ट के जरिये इस गंभीर विषय पर ध्याना कर्षण के लिए आभार .

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  8. ट्रकवालों की दुनिया ही निराली है, हमें वह रोमैंटिक लग सकता है, पर है उनकी जिंदगी बहुत कठिन। ये पैसे तो जरूर ही बनाते होंगे, वरना इस व्यवसाय में टिके कैसे रहते।पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए, तो रेल ही ट्रक से बेहतर है। उतने ही ईंधन पर रेल ट्रकों से कहीं ज्यादा सामान ढो सकती है, इससे कम प्रदूषण होता है। पर सुविधा के लिहाज से ट्रक बेहतर हैं। रेल सामान घर तक नहीं पहुंचा सकती, ट्रक पहुंचा सकते हैं।एक अन्य पहलू भी है, ट्रकरों से संबंधित। ऐड्स बीमारी को देश के कोने-कोने तक फैलाने में उनकी भी अहम भूमिका रही है!

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