हुन्दै वालों ने तम्बू तान लिया है हमारे दफ्तर के बाहर। दो ठो कार भी खड़ी कर ली हैं। हमारे दफ्तर के बाबूगण कार खरीदने में जुट गये हैं। ई.एम.आई. है तीन हजार सात सौ रुपये महीना।
सड़क का ये हाल है कि हाईकोर्ट के पास जाम लगा है। आधा घण्टा अंगूठा चूस कर दफ्तर पंहुचा हूं। जो काम दफ्तर पंहुच कर करना था, वह रास्ते में मोबाइल फोन पर किया।
हुन्दै (Hyundai Hundai) वाले की बजाय हीरो/एटलस साइकल वाला क्यों नहीं लगाता तम्बू? या आलोक पुराणिक छाप तम्बू आलू विपणन संघ क्यों न लगाता कि दस साल का फलानी ई.एम.आई पर ८० किलो महीने का आलू करार और साथ में एक कट्टा अरहर की दाल फ्री!
विक्रम टेम्पू, रिक्शा, बेशुमार कारें, साइकल की बजाय बढ़े स्कूटर/मोटरसाइकलें, सड़क के अतिक्रमण और बीच में गड़े बिजली के खम्भे/ट्रांसफार्मर – इन सब से वैसे ही नाक में दम है। ऊपर से यह हुन्दै के तम्बू हुन्दै बेच बेच कर सड़क-यातायात तंत्र की एंजियोप्लास्टी कराने लायक बना छोड़ेंगे।
हमारा गली मैं सब्जी वाला आवाज लगाता है – आलू ले लो, नेनुआ, भिण्डी, कटहर, आलू! उसी तर्ज पर हुन्दै की वान और तम्बू वाले आवाज लगाते प्रतीत होते हैं - हुन्दै ले लो हुन्दै!
आत्म-कुबूलन: मेरे पास कोई व्यक्तिगत वाहन नहीं है और अभी लेने की कोई योजना नहीं है। चाह है तो केवल एक साइकल या बिजली से चलने वाली मॉपेड लेने की। लिहाजा वाहन के विषय में मेरी सोच टेण्टेड हो सकती है।
यातायात जाम करने के निहितार्थ जितने समय की बरबादी में हैं, उससे अधिक पर्यावरण के क्षरण के हैं। अगर लोग अपना सड़क प्रयोग का अनुशासन नहीं सुधारते और अगर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान नहीं दिया जाता तो कार्बन उत्सर्जन बढ़ाने में अमेरिका की बजाय भारत को ज्यादा कोसा जायेगा।
मेकेंजी की एक रिपोर्ट ((The McKinsey Quarterly की मुफ्त में मिलने वाली सदस्यता जरूरी होगी यह पढ़ने को) के अनुसार चीन इस दिशा में बड़ी सार्थक योजनायें रखता है। और अगर उसके अनुसार चला तो वहां कार्बन उत्सर्जन सन २०३० में आज के स्तर से बढ़ेगा नहीं। आप यह रिपोर्ट यहां से पढ़ सकते हैं। इस रिपोर्ट मेँ घटाव का सीनेरियो बताता है कि उद्योग, बिजली उत्पादन और यातायात के क्षेत्रों में बेहतर तकनीकी प्रयोग, बेहतर भवन निर्माण, बहुतायत में बिजली से चलने वाले वाहनों का प्रयोग और कार्बन कैप्चर और स्टोरेज की तकनीकों से सन 2030 में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 7.8 गीगाटन होगा जो सन 2005 में 6.8 गीगाटन था। और चीन आज की तकनीकों के आधार पर चलता रहा तो यह उत्सर्जन 22.9 गीगाटन हो जायेगा!
लेकिन भारत क्या योजना रखता है? कोई घटाव की पॉलिसी (abatement scenario policy) भारत में बनी है या नहीं? यहां तो योजनाओं में जनता की लचर आदतें पलीता भी लगाती हैं।

हुन्दै (Hundai) वाले की बजाय हीरो/एटलस साइकल वाला क्यों नहीं लगाता तम्बू?काइण्डली Hyundai लिखें !
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मुझे तो नही लेनी जी…
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किसको चिंता है पर्यावरण और जाम की ,बस बनाये जाओ -बनाये जाओ ,खरीद दार तो मिल ही जायेंगे ,दो नम्बर का पैसा तो है ही .
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का दद्दा, चीन से काहे तुलना कर दिये, सारा मूड खराब कर दिया…। मुम्बई के सी-लिंक जैसे सैकड़ों ब्रिज बना दिये वे… हम 5 साल लेट करके 350 करोड़ का खर्चा बढ़ाकर, नामकरण "राजीव बाबू" के नाम कर दिये हैं और इसी पर इतरा रहे हैं… आप भी न दद्दा…। हमरी और चीनी की कौनो तुलना है का?
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मंदी के इस दौर में जैसे बिके वैसे ठीक.. वैसे emi इतनी कम सात या द्स साल की होगी?
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यहां तो योजनाओं में जनता की लचर आदतें पलीता भी लगाती हैं।लफडा यही तो है.. वैसे आलू और अरहर दाल तो कल ही लेकर आया हु मैं ई एम् आई पर
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अजी सन् 2050 में ही भारत एक काम में आगे होगा और वो है जनसँख्या …चीन से भी आगे
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(1) आपने एकदम सटीक लिखा है, हाल ठीक एसा ही है कि बैंक सब्ज़ी फ़ाइनेंस करके कहीं अधिक कमा सकते है.(2) गाड़ियां बिक तो खूब रही हैं पर पेट्रोल आैर ट्रैफिक की वजह से सभी लोग उन्हें नियमित चलाते नहीं हैं.
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कभी सुना था कि चीन में लोग साइकिल पर ज्यादा चलते हैं। हमारे यहॉं यह संभव नहीं लगता, लोग स्कूटर बेचकर नैनो लेने की सोच रहें हैं।
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पहले बताएं, भारत कब से योजना रखने लगा?
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