मछली पकड़ने वाले रहे होंगे। एक नाव पर बैठा था। दूसरा जमीन पर चलता नायलोन की डोरी से नाव खींच रहा था। बहुत महीन सी डोरी से बंधी नाव गंगा की धारा के विपरीत चलती चली आ रही थी। मैं अपनी चेतना के मूल में सम्मोहित महसूस कर रहा था।
एक महीन सी डोर! कभी कभी तो यूं लगे, मानो है नहीं। वह नाव को नेह्वीगेट कर रही थी। हममें भी नाव है जो न जाने कौन सी नायलोन की डोरी से बंधी बढ़ती जा रही है।
एक बार और जाल फैंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह हो!
गंगा किनारे के १०-१५ मिनट आपको ठोस दार्शनिक/आध्यात्मिक अनुभव देते हैं। अभेद्य!
आसमान में उड़ते पंक्तिबद्ध पक्षियों का झुण्ड एक लहरदार लकीर बनाता है और आपके मन में भी पैदा करता है लहरें। एक लगभग नब्बे अंश के कोण पर कमर झुका कर गंगा के घाट पर आती वृद्धा; मृत्यु, जीवन और जरा के शाश्वत प्रश्न ऐसे खड़बड़ाती है मन में; कि बरबस बुद्ध याद हो आयें!
गंगा किनारे एक मड़ई हो। एक छोटी सी नाव और यह लिखने-फोटो खींचने का ताम-झाम। अपनी बाकी जरूरतें समेट हम बन जायें आत्मन्येवात्मनातुष्ट:! जब यह वातावरण हो तो न बनने का क्वैश्चनवइ नहीं उठता।
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यह पोस्ट ड्राफ्ट में जमाने से रखी थी। पत्नीजी कहने लगीं थीं – क्या गंगा-गंगा रटते पोस्ट लिखते हो|
अब यह ७००वीं पोस्ट के रूप में पब्लिश कर रहा हूं। देखता हूं, आप गंगाजी विषयक टिप्पणी करते हैं या ७००वीं पोस्ट की बधाई ठेल अगले ब्लॉग पर चलते हैं!
और यह है गंगा किनारे गोधूलि वेला – कल की!
“हेलो नजीबाबाद” फोन-इन कार्यक्रम : हाय गजब!
इस फोन इन रेडियो कार्यक्रमवाले दक्षिणी सज्जन कोई प्रेम कुमार हैं। मुरादाबाद-सुल्तानपुर-एटा वाले यूपोरियन लोगों को फिल्मी गाने सुनवा रहे थे। गानो में मेरी खास दिलचस्पी नहीं थी। पर इस सज्जन का महमूद स्टाइल में हिन्दी बोलना और बात बात पर “हाय गजब” “ओय गजब” बोल कर श्रोताओं को बांधना बहुत पसन्द आया।
और एक हम हैं कि “आत्मन्येवात्मनातुष्ट:” छाप प्रस्थानत्रयी से श्लोकांश ठेल रहे हैं, इम्प्रेस करने को! लगता नहीं कि हमें भी हाय गजब छाप जुमला पकड़ना चाहिये अपना ब्लॉग हिट करने को! क्या ख्याल है!

आत्मन्येवात्मनातुष्ट…..700 post ke liye badhai ………….na dete hue…(देखता हूं, आप गंगाजी विषयक टिप्पणी करते हैं या ७००वीं पोस्ट की बधाई ठेल अगले ब्लॉग पर चलते हैं!)seedhe ganga ji ke liye kiye jaa rahe (with avaliable resources or rathe with the resources wich you r famalier with) prayasson ki badhai zarror doonga….Waiting for 701st post:"एक बार और जाल फैंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह हो!"
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1996 में वाराणसी गया था । सुबह सुबह ममेरे भाई के साथ गंगा तट पर गया । हमने एक नाव की जैसे ही नाव में बैठे नाव वाले ने एक कुत्ते की लाश नाव से बान्ध दी मैने कहा कि यह क्या कर रहे हो तो उसने जवाब दिया इसे बीच धारा मे ले जाकर छोड़ देंगे । मन वितृष्णा से भर गया । यह दृश्य भूले नहीं भूलता । शायद आपकी पोस्ट पढ़कर यह जुगुप्सा का भाव कम हो ।
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७०० वीं पोस्ट पर बधाई। ओर गंगा माई के दर्शन करवा दिये उस के लिये धन्यवाद
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"आत्मन्येवात्मनातुष्ट:" ….ये क्या बला है जी? क्या इसका भी नाता उस बारीक डोर से है जो इस जीवन को बांधे है:(
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"और एक हम हैं कि "आत्मन्येवात्मनातुष्ट:" छाप प्रस्थानत्रयी से श्लोकांश ठेल रहे हैं, इम्प्रेस करने को! लगता नहीं कि हमें भी हाय गजब छाप जुमला पकड़ना चाहिये अपना ब्लॉग हिट करने को! क्या ख्याल है! "काका ये सब लंठई तो आप हमारे जैसों के लिये छोड़ दो । आप तो लगे रहो गंगा पुराण रचने में और हम लोगों को रोज रोज पतित पावनी मां गांगा के ब्लाग पर दर्शन कराने में । गंगा दर्शन और आपका ब्लाग पढ़ना दोनो ही पुण्य अर्जन के दो रास्ते हैं । फिलहाल तो 700 वीं पोस्ट के साथ एक नया भतीजा भी मुबारक हो । गिरिजेश राव भी अब आपको चचा कहने लगे हैं ।
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७०० वी सराहनीय पोस्ट की हार्दिक बधाई ऐसी कई ७०० पोस्टो का इंतज़ार है . कोई एक शब्द जो आपको परिभाषित करे उसे खोज रहा हूँ औरो से मदद की गुहार है
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सात सौवीं पोस्ट…बापरे…आपतो ब्लॉग जगत के सचिन तेंदुलकर हैं…जय हो…सात सौ…हमारे लिए तो ये एक सपना ही है…गंगा किनारे वाली आपकी सारी पोस्ट्स अद्भुत हैं…ये श्रृंखला संग्रहणीय है…नीरज
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आदरणीय ज्ञानदत्त जी,७०० वीं पोस्ट पर बधाई।गंगा मईया कि जय बोलते हुये आगे यही कहना चाहता हूँ कि आप गज़ब ढाते रहें।सादर,मुकेश कुमार तिवारी
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गंगा पर आपकी इतनी पोस्ट पढ़ने के बाद कौन पाठक गंगामय न हो जाएगा। लेकिन इसके बाद भी उत्सुकता की कुलबुलाहट और और की भूख लगाए ही रहेगी, सो गंगा और उसके आसपास के वातावरण की कथाएं जारी रहे। इलाहाबाद में तो नहीं लेकिन बनारस में सन 99 में नवंबर की कुहरे से लिपटी सुबह में पैदल जाकर पहले घाट पहुंचना फिर नाव के माध्यम से उस पार जाकर दूर तक फैली रेत में दोस्तों के साथ धमाचौकड़ी मचाने के बाद वहां गंगास्नान अविस्मरणीय है। 700 पोस्ट! गजब! आप और मैं करीब करीब साथ ही ब्लॉग जगत पर प्रकट हुए हैं या यूं कहूं कि अवतरित हुए हैं ;) शायद मैं दो महीने पहले ही आया हूं आपसे, लेकिन आपने यह साबित कर दिया कि भारतीय रेल की गति नि:संदेह शानदार है।जारी रहे यह ज्ञान-गंगा।शुभकामनाएं
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हे बिलागर श्रेष्ठ यूँ ही ठेलते रहिये सदा,हम सभी को भा रही है आपकी ठेलन अदा,आजकल तो बोझ सब पर व्यस्तताओं का लदा,मिल रही है शान्ति आकर ब्लॉग पर यदा-कदा,आप ऐसे ब्लॉग पर ज्यों जबलपुर में नर्मदा,काश मेरे भाग्य में हो आपसे मिलना बदा,सप्त सेंच्युरियाँ मुबारक ब्लॉग लिखिए सर्वदा,सेंच्युरी की सेंच्युरी होंगी करें यह वायदा !
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