मछेरों का प्रभात


सवेरे छ बजे का समय। घाट पर एक नाव दिख रही थी। मैने पैर थोड़ी तेजी से बढ़ाये। वे छ मछेरे थे। अपने जाल सुलझा रहे थे। काम प्रारम्भ करने के उपक्रम में थे। उनकी नाव किनारे पर एक खूंटे से बंधी थी। किनारे पर जल का बहाव मंथर होता है। अत: स्थिर लग रहीContinue reading “मछेरों का प्रभात”

हटु रे, नाहीं त तोरे…


बांई तरफ है पण्डा का तख्त और छतरी। बीच में जमीन पर बैठे हैं इस पोस्ट के नायक! दांई ओर वृद्धगण। शिवकुटी मन्दिर से गंगा तट पर उतरती सीढ़ियां हैं। उसके बाद बैठते है पण्डा जो स्नान कर आने लोगों को संकल्प – दान कराते हैं। उन पण्डा जी से अभी मेरी दुआ-सलाम (सॉरी, नमस्कार-बातचीत)Continue reading “हटु रे, नाहीं त तोरे…”

मैं कहां रहता हूं?


अपने पड़ोस के भैंसों के तबेले को देखता हूं। और मुझे अनुभूति होती है कि मैं एक गांव में हूं। फिर मैं बजबजाती नालियों, प्लास्टिक के कचरे, संकरी गलियों और लोटते सूअरों को देखता हूं तो लगता है कि एक धारावी जैसे स्लम में रहता हूं। जब गंगा के कछार से शिवकुटी मन्दिर पर नजरContinue reading “मैं कहां रहता हूं?”

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