टिटिहरी


टिटिहरी या कुररी नित्य की मिलने वाली पक्षी है। मुझे मालुम है कि गंगा तट पर वह मेरा आना पसन्द नहीं करती। रेत में अण्डे देती है। जब औरों के बनाये रास्ते से इतर चलने का प्रयास करता हूं – और कोई भी खब्ती मनुष्य करता है – तब टिटिहरी को लगता है कि उसके अण्डे ही चुराने आ रहा हूं।

Pewit11 जिस तरह से एक ब्लॉगर अपनी पोस्टों के माध्यम से चमत्कारी परिणाम की आशा करता है, उसी तरह टिटिहरी विलक्षण करने की शेखचिल्लियत से परिपूर्ण होती है।
(चित्र हिन्दी विकीपेडिया से)

वह तेज आवाज में बोलते हुये मुझे पथ-भ्रमित करने का प्रयास करती है। फिर उड़ कर कहीं और बैठती है।

बहुत से कथानक हैं टिटिहरी के। एक है कि वह पैर ऊपर कर सोती है। यह सोच कर कि आसमान गिरेगा तो पैरों पर थाम लेगी। समुद्र के किनारे लहरें उसका अण्डा बहा ले गयीं तो टिटिहरा पूरे क्रोध में बोलता था कि वह चोंच में समुद्र का पानी भर कर समुद्र सुखा देगा। जिस तरह से एक ब्लॉगर अपनी पोस्टों के माध्यम से चमत्कारी परिणाम की आशा करता है, उसी तरह टिटिहरी विलक्षण करने की शेखचिल्लियत से परिपूर्ण होती है। टिटिहरी हमारी पर्यावरणीय बन्धु है और आत्मीय भी।

जब भदईं (भाद्रपद मास वाली) गंगाजी  बढ़ी नहीं थीं अपनी जल राशि में, तब टिटिहरी बहुत दिखती थी तट की रेत पर। हम लोग अनुमान लगाते थे कि उसके अंण्डे कहां कहां हो सकते हैं। एक बार तो गोल-गोल कुछ ढूंढे भी रेती पर। लेकिन वे कुकुरमुत्ता जैसे पदार्थ निकले। उसके बाद जब गंगाजी ने अचानक कछार के बड़े भूभाग को जलमग्न कर दिया तब मुझे यही लगा कि बेचारी टिटिहरी के अण्डे जरूर बह गये होंगे। एक रात तो टिटिहरी के अंडों की चिन्ता में नींद भी खुल गई!

अब, जब पानी कुछ उतर गया है, टिटिहरी देवी पुन: दिखती हैं। बेचारी के अण्डे बह गये होंगे। या यह भी हो सकता है कि मैं यूंही परेशान हो रहा होऊं! पर अब वह ज्यादा टुट्ट-टुट्ट करती नहीं लगती। यह रहा टिटिहरी का छोटा सा वीडियो, गंगा तट का। 


मैं श्री जसवन्त सिंह की जिन्ना वाली पुस्तक देख रहा था। पाया कि वे दादाभाई नौरोजी के शिष्य थे। दादाभाई नौरोजी चार सितंबर (आज के दिन) १८२५ को जन्मे। बम्बई में लगी, यह रही उनकी प्रतिमा और यह उसपर लगा इन्स्क्रिप्शन।

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मुझसे अभी यह मत पूछियेगा कि जिन्ना प्रकरण में कौन साइड ले रहा हूं। जरा किताब तो देख/पढ़ लूं! :-)

यह जरूर है कि पुस्तक पर बैन पर सहमत नहीं हूं। अन्यथा किताब लेता क्यूं?  


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

36 thoughts on “टिटिहरी

  1. गंगा के कछार और खुद गंगा माँ ने अपना आँचल आपके सर पर रखा है -विरले ही इतने खुश नसीब हो सकते हैं -जे हो गंगा मैया जिसने एक बलागर को एक स्थाई ठौर ठिकाना दे दिया है ! मगर टिटहरी (Lapwing ) कुररी नहीं है ! तुलसी ने 'ज्यो विलपति कुररी की नाईं " जब लिखा होगा तो भले ही उनके मन में आपकी ही तरह यही टिटहरी ही रही हो (?) क्योंकि यह सचमुच शोर बहुत करती है मगर कुररी दरअसल Tern है जिनकी चार प्रजातियों का सबसे प्रामाणिक उल्लेख सुरेश सिंह ने भारतीय पक्षी में किया है -व्हिस्कार्ड टर्न ,कामन टर्न ,ब्लैक bellied टर्न ,लिटिल टर्न !गूगलिंग से इनका फर्क देख लें !

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  2. टिटिहरी प्रयास से ब्लागर को जोड़कर आप टिटिहरी की तो बेइज्जती खराब कर ही रहे हैं। इधर बेइज्जती उधर फ़ोटो! वैसे वीडियो धांसू है! जय हो। आज ही दिनेशराय द्विवेदीजी का भी जन्मदिन है! उनको भी बधाई।

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  3. एक उपेक्षित और 'शापित' पक्षी को मान देने के लिए आभार। मेरी माँ जब भी इस पक्षी की आवाज सुनती हैं तो आँगन में पानी गिराने को कहती हैं। क्यों? पूछने पर डपट मिलती है ," हरदम टोका टोकारी कउनो जरूरी हे का ss?"किसी और ने बताया कि यह पक्षी दिन में बोले तो सूखा पड़ता है। !@#$यहाँ लखनऊ में मेरे घर के आगे पार्क में बगुले और टिटहरी दिखते हैं। कृपा है LDA की, ऐसा गड्ढेदार बनाया कि बॉयोडायवर्सिटी पनाह पा रही है :(

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  4. विचार कर रहा हूँ, टिटिहरी के अण्डे बह जाने की दुश्चिंता में आप सो न सके – यह गहरी संवेदना ही न आपसे इस तरह की प्रविष्टियाँ लिखवाती है । टिटिहरी के कथानकों का सत्य अपने भीतर महसूसना चाहता हूँ । वह आत्मविश्वास जिससे आपके लेखन के सूत्र और उसके भीतर छिपी हुई संवेदना की पहचान कर सकूँ । वीडियो नहीं देख पा रहा हूँ। पता नहीं क्यों चल ही नहीं रहा । दूसरे ब्राउजर में देखता हूँ ।

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  5. वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने और अच्छी जानकारी भी प्राप्त हुई!

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  6. टिटहरी एक आत्मविश्वास का संदेश देती है..कई बार टांग उठा कर सोने को जी मचलता है, तो कभी समुन्दर पी जाने का. एक बल मिलता है इस सोच से..कई बार ऐसा ही ऐसा शॆष नाग होने का होता है कि सारी दुनिया मेरे सर पर मेरे भरोसे चल रही है….ब्लॉगर भी ऐसा ही सोचते होंगे…तब न कहते हैं कि अब पाँच दिन लिख न पाऊँगा, माफी चाहता हूँ. :)अच्छा चिन्तन..प्रकृति दर्द और दवा, सब साथ देती है. उससे बेहतर सृष्टि की बैलेंस शीटा आवश्यक्तानुरुप अण्डे सुरक्षित बच रहे होंगे, इत्मिनान से सोया करिये.

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