उस दिन बीबीसी के अपूर्व कृष्ण जी सवारी रेलगाड़ियों के चार अंक के नम्बर देने की प्रणाली के विषय में जानना चाहते थे।
रेलवे पर आधिकारिक रूप से बोलना नहीं चाहता था। मुझे मालुम है कि ऑन द रिकार्ड बोलने का चस्का जबरदस्त होता है। माइक या पब्लिश बटन आपके सामने हो तो आप अपने को विशेषज्ञ मानने लगते हैं। यह विशेषज्ञता का आभामण्डल अपने पर ओढ़ना नहीं चाहता। अन्यथा रेल विषयक जानकारी बहुत ठेली जा सकती है। आप एक जानकारी दें तो उसके सप्लीमेण्ट्री प्रश्न आपको सदैव सजग रहने को बाध्य करते हैं कि कितना बोलना चाहिये!
लिहाजा मिट्टी का माधो बने रह कर बकरी-नेनुआ-टिटिहरी-ऊंट पर लिखना निरापद है! दूसरे, लोगों को वह समझने टिपेरने में दिक्कत नहीं होती।
फिर भी मैं चार अंक के ट्रेन नम्बरिंग प्रणाली पर सामान्य जानकारी देता हूं। यह प्रणाली तब लागू हुई थी जब रेलवे में ९ जोन थे। इन नौ जोन को अंक आवंटित हुये – मध्य – १, पूर्व – ३, उत्तर – ४, पूर्वोत्तर और पूर्वोत्तर सीमान्त – ५, दक्षिण – ६, दक्षिण मध्य – ७, दक्षिण पूर्व – ८, और पश्चिम रेलवे – ९. इसके अलावा सुपरफास्ट और महत्वपूर्ण गाड़ियों (राजधानी, शताब्दी छाप) को २ अंक दिया गया।
किसी ट्रेन के नम्बर में पहला अंक अगर २ है तो ट्रेन महत्वपूर्ण केटेगरी की है और तब दूसरा अंक जोनल रेलवे दर्शाता है। शेष दो अंक ट्रेन नम्बर पूरा करते हैं। उदाहरण के लिये फ्रण्टियर मेल का नम्बर २९०३/२९०४ है। इसमें पहला अंक २ इसके महत्वपूर्ण स्टेटस को और दूसरा अंक ९ इसके पश्चिम रेलवे की होने को दर्शाता है। शेष ०३-डाउन और ०४-अप इसका अपना अंक है।
अगर गाड़ी सुपरफास्ट श्रेणी की नहीं है तो पहला अंक उसकी जोनल रेलवे को, दूसरा अंक उसके मण्डल को और शेष दो अंक ट्रेन का नम्बर दर्शाते हैं। जोन में उसके मण्डलों के लिये अंक नियत किये गये हैं; जैसे मध्य रेलवे में – मुम्बई – ०, झांसी – १, भोपाल – २, अन्य – ४। अब ग्वालियर-बरौनी एक्सप्रेस पुराने मध्य रेलवे के झांसी मण्डल की ट्रेन है और इसका नम्बर ११२३/११२४ है।
इस दशक के पूर्वार्ध में ७ और जोन बढ़ गये हैं। पर ट्रेनों की नम्बरिंग पहले के निर्धारित आधार पर ही की जाती है।
अपूर्व जी ने यह भी पूछा था कि रेलवे में अप – डाउन कैसे निर्धारित होता है? जब अंग्रेजों के शासन काल में रेल बिछने लगी तो बम्बई और मद्रास मुख्य नोड थे। वहां से चलने वाली सभी गाड़ियां डाउन हुईं और वहां जाने वाली अप। कलकत्ता के बारे में अंग्रेजों का यह मत था कि जीआईपी (ग्रेट इण्डियन पेनिन्स्युलर रेलवे) बम्बई से अंतत कलकत्ता तक आ जायेगी, सो कलकत्ता आने वाली गाड़ियां डाउन ही मानी गयीं। इसी अप-डाउन के मोटे नियम से दिशायें तय हुईं। इनके कुछ छोटे हेर फेर भी हुये। पर वह डीटेल्स की बात है, उसका क्या जिक्र करना।
आगे पढ़ें और पोस्ट का संक्षेप दिखायें, ड्राफ्ट ब्लॉगर एडीटर के माध्यम से; के बारे में कोई न कोई हिन्दी तकनीकी ब्लॉग वाला पोस्ट ठेलने वाला है, जरूर। :-)

सुन्दर। हम भी कटियाज्ञानी हो गये। कटियाज्ञानी बोले तो जैसे कि आपके ब्लाग पर ज्ञान करेंट बह रही थी हम उसमें कटिया फ़ंसा के सप्लाई ले लिये। सब ले रहे हैं! न पैसा दिया न छदाम,मुलुब बनि अपना सारा काम!
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कुछ तो मुझे पहले से पता था ज्यादा यहाँ जाना -मगर यह अपर्याप्त है -क्या अंत के सम या विषम संख्याएँ अप या डाउन का भी बोध कराती है ? यह आनुषंगिक सवाल ! क्या कोलकाता ही इसका अपवाद है ?
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आप से ऐसी जानकारी की ही अपेक्षा थी । आभार ।
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आज तो हमारा सामान्य ज्ञान बढा दिया ! बढ़िया जानकारी देने के लिए आभार !
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रेलगाडी के नंबर तय करने की प्रणाली की जानकारी दे कर हमारी जानकारी में इजाफा करने का बहुत आभार ..!!
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लेखनी प्रभावित करती है.
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namaste aap hindi blog jagat ki shaan hain. aapke yahan hone se gaurav anubhav hota hai.dhanyvaadrakesh ravi
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apne kshetra ki jaankar na dene ka aapka sankalp ya dharna acchi lagi kyunki main bhi yahi sochta hoon,aur sabse badhiya baat ki aapne abki baar bhi jo jankari di hai (prashnotari ke roop main) wo bi technical nahi thi….no jargons .waise aap chahein to kewal rail aadi ki jaankari se sambandhit ek naya blog shuru kar sakte hain…
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बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! सही बात को लेकर बड़े सुंदर ढंग से आपने प्रस्तुत किया है!
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अपूर्व जी के बहाने हमें भी यह महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिल गयीं । उत्सुकता तो हमें भी थी इन सबकी- पर हम आपसे पूछने से बचते रहे ।
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