झुकी कमर सजदे में नहीं, उम्र से। और उम्र भी ऐसी परिपक्व कि समय के नियमों को चुनौती देती है। यहीं पास में किसी गली में रहती है वृद्धा। बिला नागा सवेरे जाती है गंगा तट पर। धोती में एक डोलू (स्टील का बेलनाकार पानी/दूध लाने का डिब्बा) बंधा होता है। एक हाथ में स्नान-पूजा की डोलची और दूसरे में यदाकदा एक लाठी। उनकी उम्र में हम शायद ग्राउण्डेड हो जायें। पर वे बहुत सक्रिय हैं।
बूढ़े और लटपटाते लोग आते हैं गंगा तट पर। वे अपना अतीत ढोते थकित ज्यादा लगते हैं, पथिक कम। शायद अपने दिन काटते। पर यह वृद्धा जब सवेरे उठती होगीं तो उनके मन में गंगा तट पर जाने की जीवन्त उत्सुकता होती होगी।
गंगा जब किनारे से बहुत दूर थीं और रेत में काफी पैदल चलना होता था, तब भी यह वृद्धा अपनी सम चाल में चलती वहां पंहुचती थीं। जब वर्षा के कारण टापू से बन गये और मुख्य जगह पर जाने के लिये पानी में हिल कर जाना होता था, तब भी यह वृद्ध महिला वहां पंहुचती थी। तट पर पंहुच डोलू और तांबे का लोटा मांजना, पानी में डुबकी लगा स्नान करना और अपनी पूजा का अनुष्ठान पूरा करना – सब वे विधिवत करती हैं। कोई सहायक साथ नहीं होता और तट पर किसी से सहायता मांगते भी नहीं देखा उन्हें।
लावण्ययुक्त गरिमामय वृद्धावस्था (Graceful Dignified Old Age) – आप कह सकते हैं कि मैं पेयर ऑफ अपोजिट्स का सेण्टीमेण्टल जुमला बेंच रहा हूं, इन महिला के बारे में। और यह सच भी है। मैं इस जुमले को मन में रोज चुभुलाता हूं इन वृद्धा को देख कर! ![]()
मैं अभय और अनूप सुकुल के कहे अनुसार परिवर्तन कर दे रहा हूं। उनके सुझाये शब्द निश्चय ही बेहतर हैं।
कबीर पर एक पासिंग विचार सूत्र (यूं ही!) –
“भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। जिस बात को उन्होने जिस रूप में प्रकट करना चाहा है उसे उसी रूप में भाषा से कहलवा लिया – बन गया तो सीधे सीधे, नहीं तो दरेरा दे कर। … वस्तुत: वे व्यक्तिगत साधना के प्रचारक थे। समष्टि-वृत्ति उनके चित्त का स्वाभाविक धर्म नहीं था।”
– आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी।
सात’ओ क्लॉक का अपडेट – आज मातृनवमी है। श्राद्ध पक्ष में दिवंगत माताओं को याद करने का दिन है। और आज गंगा जी रात बारह बजे से बढ़ी हैं। सवेरे चमत्कारिक रूप से और पास आ गई हैं इस किनारे। मानो स्वर्ग से माता पास आ गयी हों बच्चों के!
कहां बैराज खोला गया है जी?! चित्र में देखें – उथले पानी को पार कर कितनी दूर जा नहा रहे हैं लोग!

इस मां को ओर गंगा मां को नमन है,एक नियम है इस का… पता नही किस किस के लिये सुख मांगती होगी यह मां, ओर बच्चे….
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"आज मातृनवमी है। श्राद्ध पक्ष में दिवंगत माताओं को याद करने का दिन है। "चौदह दिन पुरुषों के तो एक दिन महिलाओं का!!! यह है हमारा पुत्र पक्ष:)
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क्या कहना चाह रहे हैं.. इनका बुढ़ापा नमकीन है? आप की पोस्ट से गरिमामय का आशय झलकता है, आप के दिमाग़ में शब्द आया होगा.. ग्रेसफ़ुल.. शब्दकोश में ग्रेसफ़ुल का अनुवाद लावण्ययुक्त मिल जाएगा.. पर मेरी समझ में वह सही नहीं है.. हिन्दी शब्दकोश में लावण्य का अर्थ देंखे.. लवण, नमक का मूल रूप है.. बकिया हलचल सही है..
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इस प्रकार एक छोटी सी पुस्तिका तैयार हो जाएगी, 'गंगा तट पर चहल कदमी और मेरी मानसीक हलचल'
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आपकी नज़र सूक्ष्मतर होती जा रही है. बारीकियाँ अच्छे से कैच हो रही हैं.एक मिठास है इस पोस्ट में, गंगा किनारे की शांति और स्निग्धता भी. बूढ़ी माई के बारे में और जानना रुचिकर होगा.
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लगता है जैसे झुकी हुई कमर से अपने बिते हुए बचपन और जवानी को तलाश रही हो। संवेदनशील रचना।
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ganga tat ke nazdeek ek aisa sthan bhi hai jahan pe vridh , jeern sheern apni mrityu ka intzaar karte hai, 'idscovery' main kabhi dekha tha.kya uske upar bhi prakash daailenge bhavishya main kabhi?waise aapki poori posts kahan padhi hain . kabhi likha bhi ho kya pata aapne.
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जीवटता देख ही खुश हो लेते हैं..आप तो फिर भी टहल रहे हैं..हम तो अबहिये ग्राउन्डेड टाईप है.शर्म आती है जब ऐसा कुछ देखते सुनते हैं.अभी भी लजाये टिपिया रहे हैं.
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जीवन्त उत्सुकता ही तो नियमित होने को प्रेरित करती है, और जीने की इच्छा भी पैदा करती है।सात’ओ क्लॉक अच्छा प्रयोग है वैसे कई बार जाने अनजाने इस तरह के शब्द बोलचाल में निकल जाते हैं। परन्तु हम ध्यान नहीं देते हैं।
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सही है, लावण्य सिर्फ महारानियों में नहीं होता। वह जीवन और कर्म में होता है।
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