कितना बोझ उठाये हैं हम सब!


… पर जिनके पास विकल्प हैं और फिर भी जो जीवन को कूड़ाघर बनाये हुये हैं, उनसे यह विनती की जा सकती है कि जीवन का सरलीकरण कर उसका स्तर सुधारें।

हमारे जीवन का बिखराव हमारी ऊर्जा का बिखराव होता है। मुझे सच में यह देखकर आश्चर्य होता है कि लोग अपने जीवन को इतना फैला लेते हैं कि उसे सम्हालना कठिन हो जाता है। जीने के लिये कितना चाहिये और हम कितना इकठ्ठा कर लेते हैं इसका आभास नहीं रहता है हमें। आने वाली सात पुश्तों के लिये 20 शहरों में मकान! बैंकों में आपका पैसा पड़ा रहा आपकी बाट जोहता रहता है और मृत्यु के बाद आपके पुत्रों के बीच झगड़े का कारण बनता है। आप जीवन जी रहे हैं कि भविष्य लिख रहे हैं?

शरीर जितना स्थूल होता है उसकी गति भी उतनी ही कम हो जाती है। शरीर हल्का होगा तो न केवल गति बढ़ेगी अपितु ऊर्जा बढ़ेगी। यही जीवन के साथ होता है। जीवन सादा रखना बहुत ही आवश्यक व कठिन कार्य है।

भारत में बहुत लोग ऐसे हैं जिनको जिजीविषा के लिये संघर्षरत रहना पड़ता है। उनसे जीवन और सादा करने की अपेक्षा करना बेईमानी होगी। पर जिनके पास विकल्प हैं और फिर भी जो जीवन को कूड़ाघर बनाये हुये हैं, उनसे यह विनती की जा सकती है कि जीवन का सरलीकरण कर उसका स्तर सुधारें।

100 thingsआप अपनी कपड़ों की अल्मारी देखें और जिन कपड़ों को पिछले 2 माह में प्रयोग नहीं किया है उन कपड़ों को किसी गरीब को दान कर दें तो आप के जीवन में बहुत अन्तर नहीं पड़ेगा। हर क्षेत्र में इस तरह की व्यर्थता दिख जायेगी। उन सारी की सारी व्यर्थ सामग्रियों को जीवन से विदा कर दीजिये, आपके जीवन की गुणवत्ता बढ़ जायेगी।

आजकल इन्टरनेट पर “100 थिंग चैलेन्ज” के नाम से एक प्रयास चल रहा है जिसमें व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत सामग्रियों की संख्या 100 करनी होती है। यह बहुत ही रोचक व कठिन प्रयास है।

हमारे मानसिक स्तर पर भी व्यर्थ विषयों की भरमार है। हमें दुनिया जहान की चिन्ता रहती है। किसके किससे कैसे रिश्ते हैं, कौन कब क्या कर रहा है, यह सब सोचने में और चर्चा करने में हम अपना समय निकाल देते हैं। चिन्तन का विस्तार तो ठीक है पर चिन्ता का विस्तार घातक है।

यह अतिथि ब्लॉग पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की है।


Simple प्रवीण के साथ ब्लॉग शेयर करने के खतरे (इसके अलावा कि वे मुझसे बेहतर लिखते हैं) नजर आते हैं! :-)

पहला कदम – पुरानी 0.7mm की पेंसिल और पुराने फाउण्टेन पेन/छ रुपये वाले रेनॉल्ड के जेल पेन से काम चलाना होगा! एक आदमी जो झौआ भर कलम-पैंसिल-किताब-कांपी-रबड़-गोंद-फेवीक्विक-दवात सरियाये रहता हो, उसके लिये कितना डिप्रेसिव विचार है जी यह १०० थिंग्स वाला! फंसी गये सरलीकरण के प्रारम्भिक स्टेप में!

आप क्या कम करने जा रहे हैं बोझे में से?!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

36 thoughts on “कितना बोझ उठाये हैं हम सब!

  1. " आने वाली सात पुश्तों के लिये 20 शहरों में मकान! बैंकों में आपका पैसा पड़ा "यह तो हुई ‘नोन सोर्स आफ़ इन्कम’ और जो स्विज़ बैंक में रखा है सो….:)

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  2. प्रवीण जी के साथ ब्लॉग शेयर करने में खतरा नज़र आ रहा है तो हमारे साथ करके देख लीजिए,पहली पोस्ट से ही पाठक न बिदक जाएं तो कहना :)अच्छा प्लेटफार्म मिल गया प्रवीण जी को उनका लेखन वाकई मानसिक हलचल पर छपने लायक है !

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  3. चलिए जी,इस लेख को पढ़ने के बाद आज से और अभी से अमल करना शुरु कर दिया। लेकिन यह विचार कब तक रहेगा इसकी कोई गारंटी नही है।सादा जीवन उच्च विचार!यह सब तो इनको खुश करने के लिए था :)

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  4. जैन दर्शन में अपरिग्रह का बहुत महत्त्व है, यानी चीजों के संग्रह को पाप माना गया है. जरूरत से रत्ती भर अधिक नहीं. भूख से एक निवाला अधिक नहीं. ऐसा जीवन आम दिनचर्या का हिस्सा होता था. अब वो संस्कार खत्म हो गए.

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  5. हम भी सौ के नीचे वाली श्रेणी में आते हैं। यदि किताबों को एक मद गिना जाय। नहीं तो वो अकेले ही आंकड़ा पार कर जाएंगी।हिन्दुस्तान में सादगी और त्याग के मूल्य तो बड़े पुराने हैं। पश्चिम वाले अब चेत रहे हैं।

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  6. "चिन्तन का विस्तार तो ठीक है पर चिन्ता का विस्तार घातक है।"वास्तव में हमारी चिंता, दूसरों के बारे में अधिक रहती है ! दूसरों के लिए समस्याएँ कैसे दें पूरा जीवन इसी समस्या से लड़ते हुए कटता है ! ;-)शुभकामनाएं ! !

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  7. @भारत में बहुत लोग ऐसे हैं जिनको जिजीविषा के लिये संघर्षरत रहना पड़ता है।जिजीविषा माने जीने की इच्छा। इसके लिए भी संघर्ष करना पड़े ! ये क्या कह दिया आप ने?हमारे पास कोई बोझा नहीं है। पुराने कपड़े वगैरह दान देने में गृह मंत्रालय सक्रिय है। घर भी ले पाया तो एकदम छोटा सा। अर्थ आड़े आ गया। रहता तो बड़ा प्लॉट लेकर आधे में घर बनाता और बाकी में पौधे उगाता। आदमी की हर इच्छा तो पूरी हो नहीं सकती !की बोर्ड पर घोंघों/सीपियों के छिलके क्यों लगा रखे हैं? इनमें से फालतू क्या है?

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  8. व्यापक चिंतन अभी बाकी है पर पिछली परफोर्मेंस को देखते हुए एक मारवाडी के लिए १०० चीजे राजाई ठाठ है.मज़े से चलेगा काम इत्ते में तो:)

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