पांच बच्चे थे। लोग नवरात्र की पूजा सामग्री गंगा में प्रवाहित करने आ रहे थे। और ये पांचों उस सामग्री में से गंगा में हिल कर नारियल लपकने को उद्धत। शाम के समय भी धुंधलके में थे और सवेरे पौने छ बजे देखा तब भी। सवेरे उनका थैला नारियल से आधा भर चुका था। निश्चय ही भोर फूटते से ही कार्यरत थे वे।
उनमें से एक जो कुछ बड़ा था, औरों को निर्देश देता जा रहा था। “देखु, ऊ आवत बा। हिलु, लई आउ! (देख, वह आ रहा है। जा पानी में, ले आ।)”
घाट पर नहाती स्त्रियां परेशान हो जा रही थीं। गंगा की धारा तेज थी। बच्चे ज्यादा ही जोखिम ले रहे थे। बोल भी रही थीं उनको, पर वे सुन नहीं रहे थे। पता नहीं, इन बच्चों के माता पिता होते तो यह सब करने देते या नहीं!
एक छोटा बच्चा नारियल के पीछे पानी में काफी दूर तक गया पर पकड़ नहीं पाया। मायूस हो पानी से निकल खड़ा हो गया। दो दूसरे दूर धारा में बहते नारियल को देख कर छप्प से पानी में कूद गये। उनका रिंग लीडर चिल्लाया – पकल्ले बे, नरियर! (पकड़ ले बे, नारियल!)
पर बहाव तेज था और नारियल दूर बहता जा रहा था। तैरे तो वे दूर तक, लेकिन पकड़ नहीं पाये।![]()
घाट पर नवरात्र की पूजा सामग्री फैंकने आये जा रहे थे लोग। पॉलीथीन की पन्नी समेत फैंक रहे थे। घाट पर कचरा पाट उसकी ऐसी-तैसी कर; गंगा का पानी सिर पर छिड़क रहे थे और बोल रहे थे – जय गंगा माई!
कलियुग है। सन्तान अपनी मां का वध कर दे रही है। इन सब की एक बाजू में श्रद्धा है और दूसरी में गंगाजी को मारने का फंदा, जिसे वे धीरे धीरे कस रहे हैं सामुहिक रूप से। बनारस में वरुणा की मौत देखी है। सईं और गोमती मृतप्राय हैं। गंगाजी कतार में हैं।
खैर, छोड़ें यह पर्यावरणीय रुदन!
पकल्ले बे, नरियर!

आधुनिक उपयोगितावादी मनस के लिए कौन माँ, कौन बाप, कौन गंगा मैया, कौन पर्यावरण… जैसे भी हो, बस "पकल्ले बे"।
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शायद हम अपने अंतिम दिनों में गंगा मैया को देख पाएं ! लगता तो मुश्किल है.
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गगा मैया आपको गजब का समृद्ध बना रही हैं। लेकिन, पता नहीं कितने बाद तक की पीढ़ी ऐसी समृद्धि पा सकेगी।
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सन्तान अपनी मां का वध कर दे रही है. वह नदी है, तालाब है, वह धरती है, पृथ्वि है.
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खैर, छोड़ें यह पर्यावरणीय रुदन! …nahi ye gyandutt ji nhai ho sakte…….ye shayad frustation se upja jumla ho !!nyways……aap jaise jagkrook prayavaran sanrakash (i mean it) ko ye jumla frustation main ya sarcasm main bhi shobha nahi deta……agar aap jaise log hi himmat har gaye to baaki 'kalyug main maa ka vadh karne wale ' to apne prays main safal ho hi jaiyenge:waise in kalugi logon ke liye ek she'r maine bhi likha tha kabhi:"ये कलयुग है इस कलयुग में ऐसा तो होना ही था ,बेटा माँ को अंधा करके श्रवण कुमार कहलाता है ."ganga ko dekhkar dukh hota hai kahi ye saraswati ki rah par to nahi ja rahi ?
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हमने अपने जंगल काट डाले,पहाड फ़ोड कर रास्ते बना लिये और अब बची नदियां,उसे भी मार डालेंगे और फ़िर खुद कैसे ज़िंदा रहेंगे ये सोचने वाली बात है।और नरियर पकडते बच्चों का रिस्क,तो गरीबी जो ना कराये वो कम है।बढिया पोस्ट,अब नदी-घाट पर पूजा सामग्री विसर्जित करते समय शायद हाथ भी कांपेंगे,मगर………………ये सिलसिला शायद बंद नही होगा।
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पूत कपूत सुने लेकिन माता न सुनी कुमाता . इसीलिए बच्चो के सब खून माफ़ कर देती है माँ चाहे वह उसका ही क्यों न हो . ठीक ही कहा गंगा जी मर रही है या कहे हम मार रहे है धीरे धीरे
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कलियुग है। सन्तान अपनी मां का वध कर दे रही है। इन सब की एक बाजू में श्रद्धा है और दूसरी में गंगाजी को मारने का फंदा, जिसे वे धीरे धीरे कस रहे हैं सामुहिक रूप से।बिल्कुल सटीक और सत्य कथन है.रामराम.
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@ गिरिजेश राव – इन बच्चों पर यह पोस्ट है – ई पापा बहुत हरामी हौ!
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क्या कहा जाये ऐसी स्थितियों पर..सिवाय दुख व्यक्त करने के.
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