जवाहिरलाल गंगदरबारी(बतर्ज रागदरबारी) चरित्र है। कछार में उन्मुक्त घूमता। सवेरे वहीं निपटान कर वैतरणी नाले के अनिर्मल जल से हस्तप्रक्षालन करता, उसके बाद एक मुखारी तोड़ पण्डाजी के बगल में देर तक मुंह में कूंचता और बीच बीच में बीड़ी सुलगा कर इण्टरवल लेता वह अपने तरह का अनूठा इन्सान है।
कुत्तों और बकरियों का प्रिय पात्र है वह। आदमियों से ज्यादा उनसे सम्प्रेषण करता है। कुत्तों के तो नाम भी हैं – नेपुरा, तिलंगी, कजरी। आप जवाहिरलाल से पूर्वपरिचित हैं। तीन पोस्टें हैं जवाहिरलाल पर –
हटु रे, नाहीं त तोरे…
देसी शराब
मंगल और तिलंगी
जवाहिरलाल गुमसुम बैठा था। मैने पूछ लिया – क्या हालचाल है? सामान्यत मुंह इधर उधर कर बुदबुदाने वाला जवाहिरलाल सम्भवत: अपनेपन का अंश देख कर बोल उठा – आज तबियत ठीक नाही बा (आज स्वास्थ्य ठीक नहीं है)।
क्या हुआ? पूछने पर बताया कि पैर में सीसा (कांच) गड़ गया था। उसने खुद ही निकाला। मैने ऑफर दिया – डाक्टर के पास चलोगे? उसने साफ मना कर दिया। बताया कि कड़ू (सरसों) के तेल में पांव सेंका है। एक सज्जन जो बात सुन रहे थे, बोले उस पर शराब लगा देनी चाहिये थी (जवाहिरलाल के शराब पीने को ले कर चुहुलबाजी थी शायद)। उसने कहा – हां, कई लेहे हई (हां, कर लिया है)।
जवाहिरलाल मूर्ख नहीं है। इस दुनियां में अकेला अलमस्त जीव है। अपनी शराब पीने की लत का मारा है।
अगले दिन मेरी पत्नीजी जवाहिरलाल के लिये स्वेटर ले कर गयीं। पर जवाहिरलाल नियत स्थान पर आये नहीं। तबियत ज्यादा न खराब हो गई हो!
श्री सतीश पंचम की प्रीपब्लिकेशन टिप्पणी (बाटलीकरण की अवधारणा):
मुंबईया टोन में कहूं तो आप ने सनीचरा (जवाहिरलाल) को काफी हद तक अपनी बाटली में उतार लिया है ( अपनी बाटली में उतारना मतलब – किसी को शराब वगैरह पिला कर विश्वास में लेकर बकवाना / कोई काम निकलवाना ….. हांलाकि आपने उसे मानवीय फ्लेवर की शराब पिलाई लगती है : )
बाटली का फ्लेवर मानवीय सहानुभूति के essence में डूबे होने के कारण सहज ही सामने वाले को अपनी ओर खींच लेता है। सनीचरा भी शायद आपकी ओर उसी essence की वजह से खींचा होगा…..तभी तो उसने खुल कर बताया कि कडू तेल के साथ दारू भी इस्तेंमाल किया है इस घाव को ठीक करने में :)
बहुत पहले मेरे बगल में एक कन्नड बुढिया रहतीं थी मलम्मा……खूब शराब पीती थी औऱ खूब उधम मचाती थी। पूरे मोहल्ले को गाली देती थी लेकिन मेरे पिताजी को शिक्षक होने के कारण मास्टरजी कह कर इज्जत से बुलाती थी। हमें अचरज होता था कि ये बुढिया इतना मान पिताजी को क्यों देती है।
दरअसल, उस बुढिया की बात पिताजी ही शांति और धैर्य से सुनते थे…हां …हूं करते थे। चाहे वह कुछ भी बके…बाकि लोग सुन कर अनसुना कर देते थे…. लेकिन केवल पिताजी ही थोडी बहुत सहानुभूति जताते थे….कभी कभी उसे भोजन वगैरह दे दिया जाता था……. यह सहानुभूति ही एक तरह से बाटली में उतारने की प्रक्रिया थी शायद….तभी वह अपने दुख सुख हमारे परिवार से बांटती थी …..
अब तो वह बुढिया मर गई है पर अब भी अक्सर अपनी भद्दी गालियों के कारण याद आती है…हंसी भी आती है सोचकर……
बाटली में उतारना अर्थात बाटलीकरण कितनी जबरदस्त ह्यूमन रिलेशंस की अवधारणा है, जिसपर हम जैसे टीटोटलर भी मुग्ध हो सकते हैं। यह बाटलीकरण में दक्षता कितना भला कर सकती है मानवता का! सतीष पंचम जी ने तो गजब का कॉंसेप्ट दे दिया!
अपडेट:
आज डाला छठ के दिन सवेरे घाट पर गये। जवाहिरलाल बेहतर था। अलाव जलाये था।
डाला छठ का सूरज 6:17 पर निकला। यह फोटो 6:18 का है:
और यह नगाड़े का टुन्ना सा 6 सेकेण्डी वीडियो (डालाछठ पर गंगा किनारे लिया):

आप के नगर में ब्लॉगर सम्मेलन हुआ है और बहुत कुछ घटित भी हुआ है। मुझे तद्विषयक आप के लेख की प्रतीक्षा है।. . जवाहिरलाल को मुल्तवी करिए न कुछ देर के लिए।
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जवाहिर को हमारा नमस्ते कहियेगा
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जय हो जवाहिर लाल अऊ बाटलीकरण-आभार
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बाटलीकरण एक नया शब्द हमने सहेज लिया है अपने शब्दकोश में, कभी उपयोग करके देखेंगे।
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@ स्मार्ट इण्डियन – आज डाला छठ देखने गये थे, सो स्वेटर ले कर नहीं गये थे। कल देखा जायेगा। वैसे पक्का नहीं कि जवाहिरलाल स्वीकार भी करेगा या नहीं।
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जवाहरलाल द्वितीय सकुशल हैं यह जानकार खुशी हुई. स्वेटर का क्या हुआ?
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सनीचरा के लिये 'गंगदरबारी' शब्द बहुत ही सटीक लग रहा है। अब चित्र में ही देखिये कि… सनीचरा के पीछे बाकी लोग खडे हैं और सनीचरा कैसे अलमस्त हो अलाव के पास गंगा किनारे दरबार लगाये बैठा है :) सनीचरा सीरीज की पोस्टें धीरे धीरे रोचक होती जा रही हैं।
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बाटली में उतारना अर्थात बाटलीकरण कितनी जबरदस्त ह्यूमन रिलेशंस की अवधारणा हैसही कहा आपने ये बाटलीकरण भी जबरदस्त है अब देखिये न आपने भी अपनी कलम से हम जैसे कईयों को बाटली में उतार रखा है जो सुबह उठते ही घुमने जाने के बजाय पहले आप की पोस्ट टटोलते है |
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लगता है यह गंगा भ्रमण निराला की भाव विह्वलता और परदुःख कातरता भी दम्पति में अता कर गयी है !
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जवाहिरलाल अकेला तो नही है. हर मुहल्ले, हर नुक्कड पर एक न एक जवाहिरलाल मिल ही जाता है.
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