एक व्यक्तिगत संकल्प का इतना सुखद और जोशीला रिस्पॉंस मिलेगा, मुझे कल्पना नहीं थी।
शनिवार रात तक मैं सोच रहा था कि मेरी पत्नी, मैं, मेरा लड़का और भृत्यगण (भरतलाल और ऋषिकुमार) जायेंगे गंगा तट पर और एक घण्टे में जितना सम्भव होगा घाट की सफाई करेंगे। मैने अनुमान भी लगा लिया था कि घाट लगभग २५० मीटर लम्बा और ६० मीटर आधार का एक तिकोना टुकड़ा है। उसमें लगभग चार-पांच क्विण्टल कचरा – ज्यादातर प्लास्टर ऑफ पेरिस की पेण्ट लगी मूर्तियां और प्लास्टिक/पॉलीथीन/कांच; होगा। लेकिन मैने जितना अनुमान किया था उससे ज्यादा निकला सफाई का काम।
रविवार सवेरे भ्रमण के लिये आने वाले एक सज्जन (जिनका नाम पता चला आद्याप्रसाद पाण्डेय) से जिक्र किया। वे बहुत उत्साही निकले। समय तय हुआ नौ बजे। वे बोले – पांच सात लोगों को ले कर आता हूं। पर जब हम सब इकठ्ठा हुये तो बाईस लोग थे – तीन बच्चों समेत।
हम सब तसला ले, पॉलीथीन बीन, दूर फैंक कर आने लगे (एक तरह का लैण्डफिल बनाने को)। पर जल्दी ही समझ आ गया कि उसकी ढेरी लगा कर अग्निदेव को ही अर्पित करना होगा। हम कुछ पतले पॉलीथीन के दस्ताने ले कर गये थे – गन्दगी से हाथ बचाने के लिये। पर अन्तत: कीचड़ और गन्दगी में हाथ लगाना ही पड़ा। पॉलीथीन की पन्नियां कीचड़ में सूख कर दब गई थीं। उन्हे खींच खींच कर श्रमसाध्य तरीके से निकाला। चूड़ियां और अन्य कांच को हाथ बचाते इकठ्ठा करना पड़ा। सारी मूर्तियां एक अलग जगह इकठ्ठी की गयीं। फावड़ा ला कर एक गढ्ढ़ा खोदा गया उन्हें रेत में दबाने को।
छोटे बच्चे बहुत उत्साही थे। वे अपना बैट-बाल का खेल त्याग कर आये थे और इसमें उन्हे कम रोचकता नहीं मिल रही थी। काम उन्होने कम नहीं, अधिक ही किया और आनन्द भी बहुत लिया होगा।
आनन्द तो हम सब को प्रचुर मिला। भरतलाल ब्रेड पकौड़ा और चाय ले आया घाट पर। कार्यक्रम का समापन इस अल्पाहार से हुआ।
सब बहुत जोश में थे। आगे के लिये सबकी अपने अपने तरह की योजनायें थीं। कोई स्थानीय सांसद को, कोई डिस्ट्रिक्ट मेजिस्ट्रेट को, कोई आई-नेक्स्ट वाले को रोप-इन करने की बात कर रहे थे (अंतत हम जैसे चुप्पे मनई को हाशिये पर जाना ही होगा! 🙂 )। कोई गंगा मुक्ति अभियान जैसी बड़ी चीज की बात कर रहे थे। सब की कल्पना/रचनात्मकता को पंख लग गये थे। अगले रविवार सवेरे आठ बजे इस कार्यक्रम के लिये पुन: मिलने का तय हुआ है। अभी काफी कुछ किया जा सकता है घाट पर!
घाट पर नहाने वाले और एक दो ऑनलुकर्स भी थे। वे शायद अगली बार जुड़ें। और पण्डाजी को भी जोश आ गया था – वे अपने स्थान के आसपास का क्षेत्र साफ करने लग गये थे।
मैं नीचे फोटो दे रहा हूं सवा घण्टे के इस कार्यक्रम के। दो सज्जनों के नाम पूछ पाया था – श्री आद्याप्रसाद और एक नौजवान श्री पंकज सिंह। अगली बार सबके परिचय प्रस्तुत करूंगा।
https://picasaweb.google.com/gyandutt/GangaGhatCleaning
इतना अटाला, पुरानी मूर्तियां, टूटी चूड़ियां, पूजा का सामान सब गंगाजी किनारे ऐसे फैंका गया था, जैसे गंगा माई न हों कचरापात्र हों! हिन्दू मानस का कथनी करनी में अन्तर यहां साफ नजर आता है। हर साल नई मूर्ति लो, पुरानी में से प्राण निकाल नई में घुसाओ और पुरानी मूर्ति को गंगाजी के कचरापात्र में ठूंस दो!
“गर्व से कहो हम हिन्दू हैं” – क्या गर्व करें जी? बस ऐसे ही यदाकदा पन्नियां बीनें, फोटो चमकायें और जेब में धर लिया करें गर्व! बाकी तो हरहर गंगे भागीरथी, पाप न आवै एक्को रत्ती!
बहुत ही बढ़िया कोशिश है पाण्डेय जी आपकी, मानना पड़ेगा. थोडा प्रयास इसमें भी होना चाहिए की लोगों को गंगा जी में कूड़ा न फेंकने के लिए प्रेरित किया जाए. ये काम संगम छेत्र और कई जगहों पर भी होना चाहिए. हर घाट के आस पास इस समबद्ध में लगे हुए बोर्ड कुछ लोगों को तो प्रेरित करेंगे ही. यद्यपि ये प्रयास सराहनीय है लेकिन जब पूरे के पूरे शहरों का सीवर ही सीधे गंगा में जा रहा हो तो इस तरह से गंगा जी को साफ़ करने का प्रयास कितना फल देगा, पता नहीं.
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"एक व्यक्तिगत संकल्प का इतना सुखद और जोशीला रिस्पॉंस" एक सत्कार्य के लिए किस तरह आप इतने लोगों को साथ ले पाए यह पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा. हाशिये को भी हमारा नमन!
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अगले रविवार को प्रातः आठ बजे। समय नोट कर लिया है। इस पुण्य के कार्य में सहभागी होने का अच्छा अवसर है। इलाहाबाद के डी.एम. साहब संगम क्षेत्र में आजकल सफाई अभियान चला रहे हैं। बहुत से अधिकारी जुट रहे हैं वहाँ। सफाई वे स्वयं भी करते हैं। यहाँ आपलोगों को देखकर मन प्रसन्न हो गया। साधुवाद।
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ज्ञानदत्त पाण्डेय जी आप ने तो सच मै बहुत सुंदर काम कर दिया काश हर भारतीया ऎसा सोचे, क्यो नही लोग समझते कि एक तरफ़ तो गंगा को गंगा मा कहते है फ़िर उसी मां को अपनी गंदी करतुतो से गंदा करते है.आप का धन्यवाद
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i can not resist to say thank you to you and my well wishes.rakesh
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आप को साधुवाद , कारवां बनते देर न लगेगी . गंगा मैय्या की कृपा बनी रहे आप पर और आपकी गंगा मैय्या पर
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इस काम की जितनी प्रशंशा की जाये कम है…एक झंडा उठा कर चलने वाला चाहिए…लोग अपने आप जुड़ जाते हैं…मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगरलोग खुद जुड़ते रहे और कारवां बनता गयानीरज
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दिनेश जी ने तो कह ही दिया .आपके प्रति सम्मान से मन भर आया.अपनी अलख जगा लें हम तो बूँद बूँद से समुद्र बन जाये.क्या गर्व से कहें की हम हिन्दू हैं ? शर्म से ही कहा जा सकता है !
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विवेक सिंह ने पूरी गंभीरता से कमेंट्स दिए है , मैं भी सहमत हूँ भाई जी 🙂
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आदमी अच्छे मालूम पड़ते हैं आप ।
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