अर्जुन प्रसाद पटेल

Kheti6 कछार में सप्ताहान्त तनाव दूर करने निरुद्देश्य घूमते मुझे दिखा कि मेरे तट की ओर गंगाजी काफी कटान कर रही हैं, पर दूर कई द्वीप उग आये हैं जिनपर लोग खेती कर रहे हैं। उन द्वीपों पर टहलते हुये जाया नहीं जा सकता। लिहाजा खेती करते लोगों को देखना इस साल नहीं हो पा रहा जो पिछली साल मैं कर पाया था।

देखें – अरविन्द का खेत। 

पर तभी इस पार पुआल की टटरी की मड़ई (झोंपड़ी) दिखी। मैं उसकी ओर बढ़ने लगा। वहां मिले अर्जुन प्रसाद पटेल। नाम से स्पष्ट है कि वे केवट नहीं हैं। नाव नहीं है उनके पास द्वीप पर जाने को। इस कारण से इसी पार खेती कर रहे हैं। बस्ती से सटे कछार में वे अपनी क्यारियां बना रहे थे।

Kheti5 अर्जुन जी काफी मुखर जीव थे। आपके ट्रिगर करने पर स्वत: बात आगे बढ़ाने वाले। पिछले बीस पच्चीस दिन से खेती का काम का रहे हैं। कई क्यारियों में पौध लग चुकी थी। नेनुआ, पालक टमाटर दिख रहा था। लौकी, कोंहंड़ा, लहसुन और प्याज लगाने वाले हैं अर्जुन जी।

यहीं रहते हैं रात में?

जी हां, अभी तो जमीन पर बिछाते हैं बिस्तर। पर सर्दी बढ़ रही है, सो पियरा पालने (जमीन पर पुआल की परत बिछाने) जा रहे हैं।  रात में यहीं रहते हैं। यद्यपि डेरा पास में गोविन्दपुरी में एक डाक्टर के यहां है। रात नौ बजे तक बाटी-चोखा के बनाने के लिये कौड़ा (अलाव) जलता रहता है सो कुछ लोग तापने के बहाने जुट जाते हैं। बाकी, रात में रखवाली के चक्कर में यहां रहना जरूरी है। सवेरे पांच बजे उठकर फिर कौड़ा जलाते हैं तो इधर उधर के लोग चले आते हैं।

Arjun link उनकी टटरी वाली मड़ई वैसी ही थी, जैसे कल्पवासी माघ मेले में बना कर रहते हैं संगम तट पर। एक रात उनके साथ रहना हो तो आनन्द आ जाये!

खेती के लिये पानी कहां से लेते हैं? गंगाजी की धारा तो दूर है।

अर्जुन पटेल जी ने मुझे नाला दिखाया – वही वैतरणी नाला[१]। बाप रे, उस विसर्जित जल की सब्जी! मैने अपने चेहरे पर अरुचि का भाव आने नहीं दिया। पूरी बम्बई में ट्रैक के किनारे इसी तरह से तो सब्जी उगाते हैं।

खैर अर्जुन पटेल जी की खेती और मड़ई मुझे पसन्द आई। मैं उनके पास जाता रहूंगा और आपको आगे उनके बारे में जानने को और मिलता रहेगा!

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अर्जुन पटेल की क्यारियां। पृष्ठभूमि में वैतरणी नाला है।

[१] वैतरणी नाला (मेरा अपना गढ़ा नाम) – जो शिवकुटी-गोविन्दपुरी का जल-मल गंगा में ठेलता है।

Kheti1 मुझे अन्दाज नहीं कि अर्जुन प्रसाद पटेल ने मुझे क्या समझा होगा। मैने कुरता पायजामा और हवाई चप्पल पहना हुआ था। मेरे बोलने के एक्सेंट में अवधी पुट था। प्रश्न मेरे जरूर देशज नहीं थे, पर मेरा अन्दाज है कि मेरा पूरा व्यक्तित्व कोई साहबी आउटलुक नहीं दे रहा होगा। अगली बार मैं उनकी बाटी शेयर करने की बात करूं तो शायद वे सहमत भी हो जायें। उनके पास एक मूक-बधिर बच्चा खड़ा था और कुछ दूर पर एक स्त्री घास छील रही थी – शायद उनके परिवार के हों।

यह सब लिख रहा हूं। ब्लॉगजगत में किसे रुचि होगी अर्जुन प्रसाद पटेल और उनके परिवेश में?!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

26 thoughts on “अर्जुन प्रसाद पटेल

  1. आप न होते तो इस ब्लॉगजगत में अर्जुन प्रसाद पटेल जैसों को कोई कैसे जानता ? आप न होते तो इनको जानने की जरूरत भी क्यों पड़ती इस ब्लॉग जगत को ! अच्छा है कि किसी संवेदित-हृदय ज्ञानदत्त पाण्डेय के प्रातः-भ्रमण की राह पर ऐसे अनगिन चरित्र मुठभेड़ लेते रहें ।

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  2. हम तो रहते ही ऐसे अर्जुनों के बीच हैं। आपका वर्णन रोचक लगा ध्न्यवाद

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  3. "पर सर्दी बढ़ रही है, सो पियरा पालने (जमीन पर पुआल की परत बिछाने) जा रहे हैं।"अब तो हमारा कोई गाँव नहीं है किन्तु बचपन में दादी माँ के साथ ठंड के दिनों में गाँव जाया करते थे तो हम भी जमीन पर धान का पैरा बिछाकर तथा उस पर चादर डाल कर सोया करते थे। सच में बहुत गरमाता था वो बिस्तर!

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  4. कुछ लोगों से उम्मीद बड़ी होती है…यहीं श्रीश डांट खा जाता है..मुझे एक मैसेज देना था, ये आप के ऊपर है आप इसे कैसे लेते हैं..बाकी ये विश्वाश है .."you are so mature to handle your criticism."

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  5. आप देख ही रहे हैं किसान को कितनी तपस्‍या करनी पडती है इन सब्जियों को उगाने में..

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  6. @ श्रीश> अरे मूर्ख श्रीश..! टिप्पणी बड़ी नहीं करते…वरिष्ठ ब्लोगरों से सीखो.—————–वरिष्ठ ब्लॉगरों से कम अब्राहम लिंकन से अधिक सीखो। उन्होने कहा था कि मैं छोटा पत्र लिख सकता था, पर मेरे पास समय कम था!

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  7. अंतिम वाक्य…?"..जानते हो श्रीश ,,,..ऐसे वाक्य क्यों लिखे जाते हैं..?":):)अरे यह तो गंगा तट की पत्रकारिता है.nice..!"अरे मूर्ख श्रीश..! टिप्पणी बड़ी नहीं करते…वरिष्ठ ब्लोगरों से सीखो…":):)

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  8. अर्जुन पटेल अनजाना नही है. हमारे गाँव मे भी न जाने कितने अर्जुन पटेल की राते इसी तरह कटती थी. 'थी' इसलिये क्योकि शहरीकरण के चक्रव्यूह ने समूचा गाँव को निगल लिया है.

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