यह जो हो रहा है, केवल मीडिया के दबाव से संभव हुआ है। और बहुत कम अवसर हैं जिनमें मीडिया का प्रशस्ति गायन का मन होता है।

यह उन्ही विरल अवसरों में से एक है। मीडिया का दबाव न होता तो राठौड़ जी आज प्रसन्नवदन होते। शायद अन्तत वे बरी हो जायें – और शायद यह भी हो कि वे वस्तुत: बेदाग हों। पर जो सन्देश जा रहा है कि लड़कियों/नारियों का यौन-उत्पीड़न स्वीकार्य नहीं होगा, वह शुभ है।
अपने आस पास इस तरह के कई मामले दबी जुबान में सुनने में आते हैं। वह सब कम हो – यही आशा बनती है।
फुट नोट: मैं यह लिख इस लिये रहा हूं कि कोई शक्तिशाली असुर किसी निर्बल का उत्पीड़न कर उसे आत्महत्या पर विवश कर दे – यह मुझे बहुत जघन्य लगता है। समूह या समाज भी कभी ऐसा करता है। कई समूह नारी को या अन्य धर्मावलम्बियों/विचारधारा वालों को दबाने और उन्हे जबरी मनमाना कराने की कोशिश करते हैं। वह सब आसुरिक वृत्ति है।
well done — Rathore is a blight on humanity
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मीडिया के इस नये अवतार की जितनी भी तारीफ़ हो कम है, किंतु सोचता हूँ कि इस अवतार की पहुंच इतनी कम क्यों है कि ये सीमित होकर रह गया है महज मेट्रो तक…छोटे शहरों की रुचिकाओं और आरुषियों का क्या?
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मीडिया का यह रूप निस्सन्देह प्रशंसनीय है किन्तु है आपवादिक ही। फिर भी खुश होने के लिए तो पर्याप्त से अधिक ही है।
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मिडिया को इस एक कार्य के लिए अच्छा मान सकते है ,और अगर न्यायलय भी शीघ्र निर्णय देते है तो मिडिया कि जिम्मेवारी और बढ़ जाती है वो जनता का विश्वास फिर से जीते |
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