नहुष महाभारत का एक महत्वपूर्ण और एक अत्यंत रोचक चरित्र है। इसलिये कि हम सब में नहुष है। हम सब, जो कालखण्ड के किसी न किसी अंश में सफल रहे हैं। सत्ता, यश, शौर्य और आत्ममुग्धता को हासिल कर चुके हैं। और उसे, “ज्यों की त्यौं धर दीनी चदरिया” जैसे त्याग नहीं पाये हैं। शिखर से हटने पर भी मन में नहुष-भाव बना ही रहता है, मैथिलीशरण गुप्त जी के शब्दों में –
फिर भी उठूंगा और बढ़ के रहूंगा मैं। नर हूं, पुरुष हूं मैं, चढ़ के रहूंगा मैं।
नहुष गुप्त जी का महत्वपूर्ण खंड काव्य है। वह महाभारत का एक उपाख्यान है। इंद्र शापित होने के बाद नहुष को इंद्र का आसन दिया जाता है और वह शची पर मुग्ध हो जाता है। सुर सरिता से सद्यः स्नात शची पर।
खण्ड काव्य का अंश देखें –


शची उपाय ढूँढती है नहुष से बचाव का। वह प्रस्ताव भेजती है कि नहुष को वरण करने को तैयार है अगर नहुष सप्त ऋषियों की ढोई पालकी में उसे लेने आयें। उतावली में नहुष एक ऋषि को लात मारता है और क्रोधित ऋषि उसे स्वर्ग से पतित कर देते हैं।
मैथिली शरण गुप्त जी के नायक नहुष में स्वर्ग से पतित होने पर भी मानवीय दर्प बना है। यही दर्प आज भी सफलता से डंसे पर अन्यथा कर्मठ मानवों में दिखता है। यही शायद मानव इतिहास की सफलताओं की पृष्ठभूमि बनाता है।
आप तिहत्तर पेज के नहुष खंड काव्य को इन्टरनेट आर्काइव से डाउनलोड कर सकते हैं ;पीडीएफ फार्मेट में।
मुझे गंगा किनारे लूटा बीर घाट पर यह गिरा बबूल का पेड़ दिखा। और उसे देख गंगा नदी के पवित्र तट पर पतित नहुष की याद हो आई। इसके धरती पर पड़े तने से अनेक अनेक टहनियां ऊर्ध्व उठ रही थीं। उनमे उठने और स्वर्ग की ओर जाने की अदम्य इच्छा स्पष्ट नजर आ रही थी। नहुष ही तो था वह पेड़। पतन और मृत्यु से दो चार होता वह वृक्ष हार नहीं मान रहा था।

मुझे खंड काव्य का अंश याद हो आया। उसका स्केन किया अंश प्रस्तुत हैं –

वह बबूल का पतित पेड़, सुरसरि गंगा का किनारा और सवेरे का समय – सब मुझे नहुष की याद दिलाते रहे। वैसे भी; जीवन की दूसरी पारी में नहुष जैसे नायक चरित्र आकर्षित करते हैं। महाभारत के उप-आख्यान से पता नहीं चलता कि नहुष ने स्वर्ग से पतित होने पर क्या किया, पर कोई आधुनिक कालिदास (अभिज्ञान शाकुंतल के रचनाकार), या वी.एस. खाण्डेकर (ययाति नामक उपन्यास के लेखक) जैसा रचनाकार नहुष के साथ एक नयी कथा का ताना-बाना बुन सकता है। री सरेक्शन ऑफ अ फेल्ड बिजनेस एम्पायर के कई किस्से तो होंगे ही। हम तलाश करें तो आधुनिक काल में दूसरी पारी के सफल नहुष मिलेंगे और अनेक मिलेंंगे।

बेहतरीन आर्टिकल । काफी समय बाद नहुष के बारे में पढ़ा , लगभग भूल सा गया था
धन्यवाद।
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बहुत अच्छा लेख और विचार ज्ञानदत्त जी। आप ऐसे ही विचार साझा करते रहें। हमें पढ़कर अच्छा लगता है।
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ययाति मैंने इतनी बार पढ़ा है की गिनती भूल गयी हूँ पर हर बार पढ़ने पर मन में एक नया गवाक्ष खुलता है! महान लेखन की यही पहचान है मेरे लिए।
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