पाठक बनाम अनियत प्रेक्षक (irregualar gazer/browser)

भाई साहब, माफ करें, आप जो कहते हैं ब्लॉग में, अपनी समझ नहीं आता। या तो आपकी हिन्दी क्लिष्ट है, या फिर हमारी समझदानी छोटी। – यह मेरे रेलवे के मित्र श्री मधुसूदन राव का फोन पर कथन है; मेरी कुछ ब्लॉग पोस्टों से जद्दोजहद करने के बाद। अदूनी (कुरनूल, रायलसीमा) से आने वाले राव को आजकल मेरे ब्लॉग की बजाय तेलंगाना बनाम सम्यक-आंध्र की खबरों में ज्यादा दिलचस्पी होगी।

राव मेरा बैचमेट है, लिहाजा लठ्ठमार तरीके से बोल गया। अन्यथा, कोई ब्लॉगर होता तो लेकॉनिक कमेण्ट दे कर सरक गया होता।

scroll-mouseमैं समझ सकता हूं, अगर आप नियमित ब्लॉग पढ़ने वाले नहीं हैं; अगर आप दिये लिंक पर जाने का समय नहीं निकाल सकते; तो पोस्ट आपके लिये ठस चीज लग सकती है। ठस और अपाच्य।   

एक अपने आप में परिपूर्ण पोस्ट कैसे गढ़ी जाये? अगर आप एक कविता, सटायर या कहानी लिखते हैं  तो परिपूर्ण सम्प्रेषण कर सकते हैं। पर अगर ऐसी पोस्टें गढ़ते हैं, जैसी इस ब्लॉग पर हैं, तो बेचारे अनियत प्रेक्षक (irregular gazer/browser) के लिये परेशानी पैदा हो ही जाती है।

ब्लॉग पर आने वाले कौन हैं – पाठक, उपभोक्ता या कोई और? पिछली एक पोस्ट पर पाठक या उपभोक्ता या ग्राहक शब्द को ले कर थोड़ी मतभेदात्मक टुर्र-पुर्र थी। गिरिजेश राव और अमरेन्द्र त्रिपाठी उपभोक्ता शब्द के प्रयोग से असहज थे। मेरा कहना था

2174 @ गिरिजेश राव –
उपभोक्ता शब्द का प्रयोग जानबूझ कर इस लिये किया गया है कि पाठक या लेखक शब्द के प्रयोग ब्लॉग पोस्ट को लेखन/पठन का एक्स्टेंशन भर बना देते हैं, जो कि वास्तव में है नहीं।
पोस्ट लिखी नहीं जाती, गढ़ी जाती है। उसके पाठक नहीं होते। क्या होते हैं – उपभोक्ता नहीं होते तो?! असल में ग्रहण करने वाले होते हैं – यानी ग्राहक।

अब मुझे लगता है कि ब्लॉग पर आने वाले पाठक या ग्राहक नहीं, अनियत प्रेक्षक भी होते हैं – नेट पर ब्राउज करने वाले। अगर आप अनियत प्रेक्षक को बांध नहीं सकते तो आप बढ़िया क्वालिटी का मेटीरियल ठेल नहीं रहे ब्लॉग पर।

शोभना चौरे जी ने अनियत प्रेक्षक का कष्ट बयान कर दिया है टिप्पणी में –

shobhna chaure बहुत ही उम्दा पोस्ट। थोड़ा वक्त लगा समझने के लिये, पर हमेशा पढ़ूंगी तो शायद जल्दी समझ में आने लगेगा।

बहुत बहुत आभार।

और एक ब्लॉगर के रूप में हमारा दायित्व है कि स्वस्थ, पौष्टिक, स्वादिष्ट – सहज समझ आने योग्य सामग्री उपलब्ध करायें। मधुसूदन राव की उपेक्षा नहीं की जा सकती। हिन्दी की शुद्धता के झण्डे को ऊंचा किये रखने के लिये तो कतई नहीं। 

पता नहीं मधुसूदन यह पोस्ट पढ़ेंगे या नहीं, पर पूरी सम्भावना है कि इसपर भी वही कमेण्ट होगा जो ऊपर उन्होने दिया है! :-(  


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

48 thoughts on “पाठक बनाम अनियत प्रेक्षक (irregualar gazer/browser)

  1. @ घोस्ट बस्टर > क्या हिडन मैसेज ये है कि मेरे नियमित पाठक बनें. :o)——— नहीं। कम से कम पोस्ट लिखते समय तो यह नहीं था। पर अनियत पाठक को नियमित बनाने का कोई तरीका तो होना चाहिये।

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  2. १) मैं यहां अनियत नहीं हूं, इसलिये आपकी ब्लॉग पोस्ट समझने में कोई कष्ट नहीं है.:o) जिस दिन कायदे से पीसी ऑन करने का भी समय नहीं होता, तब भी कैसे भी करके आपकी पोस्ट जरूर पढ़ लेता हूं और जब सिर्फ़ पोस्ट पढ़ने भर का समय होता है तो कमेन्ट भी छोड़ देता हूं.२) कविता, कहानी आदि लिखना सही अर्थों में "ब्लॉगिंग" नहीं है. अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के लिये एक और मंच का जुगाड़ करना भर है. सही ब्लॉगिंग वही है जो इस ब्लॉग पर देखने को मिलती है. अपने मन के भावों और विचारों का उचित रूप से सम्प्रेषण.३) पाठक पर निर्भर करता है कि वह किस ब्लॉग को कितना समय खर्च करने लायक मानता है. ४) आप सभी को एक साथ सन्तुष्ट नहीं कर सकते.सन्तुष्टों की संख्या असंतुष्टों से अधिक रहे, यही काफ़ी है.५) शब्दों को लेकर बहस बेमानी है. वैसे मुझे लगता है कि उपभोक्ता में कुछ गलत नहीं है. आपके ब्लॉग की लगभग हर पोस्ट से कुछ सीखने को मिलता है. प्राप्त जानकारी का उपभोग करूं और उपभोक्ता ना कहलाऊं, ऐसा कैसे हो सकता है?अंग्रेजी में आम कथन होता है. "….then I am not buying this." यहां कहने वाले का आशय है कि मैं आपके तर्क को मानने को तैयार नहीं हूं.६) हिंदी ब्लॉगिंग में कम होंगे जो ब्लॉगिंग को आपसे ज्यादा गम्भीरता से लेते होंगे. इसीलिये इतना विचारपूर्ण लेखन इस विषय पर.———————–क्या हिडन मैसेज ये है कि मेरे नियमित पाठक बनें. :o)

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  3. देव !मैंने आपकी पोस्ट पढी और पूर्वोक्त टिप्पणियाँ भी ..शब्द-प्रयोग पर कोई क्या विचार रखेगा पर कुछ जो अब तक समझता आया हूँ , रखना चाहता हूँ —……………………………शब्दों के साथ दुहरा दायित्व जुड़ा होता है , प्रयोग करते वक़्त ..१— शब्द के परंपरागत अर्थ को रखना , और २— प्रयोक्ता द्वारा नया अनुभव , नयी संवेदना और एक हद तक अछूताअर्थ को प्रयुक्त शब्द में समाहित करने का दवाव ..———– इन दोनों के बीच हमें सम्प्रेषण का दवाव भी उठाना पड़ता है , कदाचित इसीलिये सृजन यंत्रणाभरी क्रिया के रूप में देखा गया है , जैसा अज्ञेय कह चुके हैं .. इसी के साथ हमें 'सहज-अर्थ-बोध' और सब्द की सांस्कृतिक-संगति भी बिठानी होती है .. इसीलिये नव-शब्द-प्रयोग अपनी चमक के साथ ग्रहण-जन्य 'खटकन' ( असहजता ) से बचा होना चाहिए .. …. सच कह रहा हूँ मैं स्वयं भी इन पैमानों पर कितना खरा उतरता हूँ , आत्मविश्वास से नहीं कह सकता पर कोशिश जरूर करता हूँ ..अस्तु , असहजता की शिकायत को सहजता से लिया जाय तो भाषा के साथ कुछ असहज नहीं होगा ..इसलिए मतभेद तो होना चाहिए पर ' टुर्र – पुर्र ' या ' लाग-डाट' नहीं ..अगर कुछ गलत कहा तो क्षमा – प्रार्थी हूँ .. जिससे उम्मीद रखी जाती है , कहा भी उसी से जाता है ……………………………………अब पूर्वोक्त टिप्पणियों पर …@ सतीश पंचम आप अपनी बात को सीधे-सीधे रखें तो उत्तम , वह ( फ्रीक्वेंसी न मिला पाने वाला ) जवाब तो दे …जहाँ तक आपसे 'फ्रीक्वेंसी' मिल रही है उसके अनुसार कहना चाहता हूँ —…….. आँख मूंद कर फ्रीक्वेंसी क्यों मिलाई जाय ? , आप-सी और आपसी ! @ बी एस पाबला कसरत करने का समर्पण कौन करता है यहाँ , अधिकांश तो भाषा की कतरन में उल्लू सीधा करते हैं ..आप ऐसा सोचते हैं , जानकार अच्छा लगा ..

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  4. मैं तो स्मार्ट इन्डियन जी की बात से सहमत हूँ क्या कहें जी हमे भी सरल हिन्दी म और सरल शैली मे ही समझ आता है धन्यवाद्

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  5. "एक ब्लॉगर के रूप में हमारा दायित्व है कि स्वस्थ, पौष्टिक, स्वादिष्ट – सहज समझ आने योग्य सामग्री उपलब्ध करायें"मैं आपसे सहमत हूँ , और आपका लगभग नियमित पाठक हूँ ! स्मार्ट इन्डियन से चौकन्ना रहें :-)..

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