भीष्म उठ निर्णय सुनाओ

भीष्म का अभिशाप यह था कि उन्होने जिस कलह से कुल को बचाने के लिये अपने सुखों की बलि देते हुये भीष्म प्रतिज्ञा ली, उसी कुल के संहार महाभारत के प्रथम सेनानायक बने। जिस कुल की कलह कम करने के लिये अपना मुँह नहीं खोले, उसी कुल का पूर्ण विनाश युद्धक्षेत्र में लेटे हुये देखे। इस विषय पर अध्याय लिखे जा सकते हैं कि भीष्म का कितना दोष था। मन पर मानता नहीं है कि कोई बुजुर्ग जो श्रेष्ठ था, वह उस समय भी मौन क्यों साधे रहा जब सबके नेत्र उनकी ओर टिके थे। भविष्य के किस कोने से यह घटना बिना उत्तर दिये निकल जाने दी जायेगी?

मृत्यु शैया पर भीष्म - विकीमेडिया कॉमन्स सेमृत्यु शैया पर भीष्म – विकीमेडिया कॉमन्स से

देश के साथ भी यही हो रहा है। दुर्योधनों की ईर्ष्यायें चहुँ ओर छिटक छिटक विनाशोन्मुख हैं, समाज के भीष्म अपनी व्यक्तिगत निष्ठायें समेटे बैठे हैं। जिनकी वाणी में ओज है, वे भविष्य के संकोच में बैठे हैं।

यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। प्रवीण बेंगळुरू रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल वाणिज्य प्रबन्धक हैं।

हम सबको एक दिन भीष्म का दायित्व निभाना है। जब पीढ़ियाँ हमारा मौन ऐसे विषयों पर देखेंगी, जहाँ पर बोलना अनिवार्य था, कोसे जाने के अतिरिक्त और क्या निष्कर्ष होगा हमारा। यह उद्गार व्यक्तिगत नहीं, सार्वजनिक हैं और अपने भविष्य के दायित्वों की कठिन प्रारूप सज्जा है। क्रोध था, व्यक्त हुआ, पर यदि यह अगला महाभारत बचा सके तो यह भी सात्विक माँनूगा मैं।


भीष्म उठ निर्णय सुनाओ (03-04-10)

द्रौपदी के चीर की तुम चीख सुनते क्यों नहीं,

विदुर की तुम न्यायसंगत सीख सुनते क्यों नहीं,

पाण्डवों का धर्मसंकट, जब मुखर होकर बह रहा,

यह तुम्हारा कुल कराहे, घाव गहरे सह रहा,

धर्म की कोई अघोषित व्यंजना मत बुदबुदाओ,

भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।

राज्य पर निष्ठा तुम्हारी, ध्येय दुर्योधन नहीं,

सत्य का उद्घोष ही व्रत , और प्रायोजन नहीं,,

राज्य से बढ़ व्यक्ति रक्षा, कौन तुमसे क्या कहे,

अंध बन क्यों बुद्धि बैठी, संग अंधों यदि रहे,

व्यर्थ की अनुशीलना में आत्म अपना मत तपाओ,

भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।

हर समय खटका सभी को, यूँ तुम्हारा मौन रहना,

वेदना की पूर्णता हो और तुम्हारा कुछ न कहना,

कौन सा तुम लौह पाले इस हृदय में जी रहे,

किस विरह का विष निरन्तर साधनारत पी रहे,

मर्म जो कौरव न समझे, मानसिक क्रन्दन बताओ,

भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।

महाभारत के समर का आदि तुम आरोह तुम,

और अपनी ही बतायी मृत्यु के अवरोह तुम,

भीष्म ली तुमने प्रतिज्ञा, भीष्मसम मरना चुना,

व्यक्तिगत कुछ भी नहीं तो क्यों जटिल जीवन बुना,

चुप रहे क्यों, चाहते जब लोग भीषणता दिखाओ,

भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।

ध्वंस की रचना समेटे तुम प्रथम सेनाप्रमुख,

कृष्ण को भी शस्त्र धर लेने का तुमने दिया दुख,

कौन तुमको टाल सकता, थे तुम्हीं सबसे बड़े,

ईर्ष्यायें रुद्ध होती, बीच यदि रहते खड़े,

सृजन हो फिर नया भारत, व्यास को फिर से बुलाओ,

भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

23 thoughts on “भीष्म उठ निर्णय सुनाओ

  1. @ प्रवीण शाह…कर्ण का चरित्र पोपुलर कल्चर के कारण अधिक महिमामंडित हो गया सा लगता है. निस्संदेह वह सहानुभूति का पात्र है और उसके प्रति सहानुभूति उपजती भी है. वह वीर भी था और दानी भी, इसमें कोई संदेह नहीं परन्तु सब कुछ जानते हुए भी उसने अधर्म का साथ दिया, इसे उसकी दुर्योधन के प्रति कृतज्ञता मानकर स्वीकार नहीं किया जा सकता. कर्ण के रूप में दुर्योधन को केवल पांडवों का सामना करने में सक्षम योद्धा मात्र मिला था.कोई भी पांडव किसी भी परिस्तिथि में नारी का अपमान नहें करता और अधार्मिक तथा कुटिल कार्यों को भी किसी पांडव ने नहीं किया यद्यपि इसके छोटे अपवाद हो सकते हैं. कर्ण ने द्रौपदी का किन अवसरों पर कितना अपमान किया यह बताने की आवश्यकता नहीं है. उसका यह व्यवहार तब भी तर्कसंगत नहीं है जब द्रौपदी ने उसे सूतपुत्र कहकर स्वयंवर में लज्जित किया. द्रौपदी तब केवल परम्परानुसार ही व्यवहार कर रही थी. द्रौपदी के उन शब्दों को उसने उसके अपमान का आधार बनाया जो उसके जैसे दानी-ज्ञानी को शोभा नहीं देता.सदाचरण और नियमपालन में कर्ण किसी भी पांडव के समक्ष नहीं है. ऐसे में वह दुर्योधन की टोली का एक ताकतवर सदस्य मात्र है जो उसके हर अपकर्म में उसका साथ देता है. वीर होने के नाते उसे पांडवों का लाक्षाग्रह में जलाये जाने का षड्यंत्र में शामिल होना शोभा नहीं देता. यद्यपि वह तेजस्वी है, परमदानी है… पर उसका चरित्र ओछा है. वह अनुकरणीय नहीं है.

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  2. देश और समाज के भीष्मों (आयु के नहीं, बल्कि अधिकारों के भीष्म) ने इतने वर्षों में जो करना था वो नहीं किया है। भीष्मता का कुछ योगदान हमारा भी है। अब तो बर्बरीक अपने कर्म में लगे हुए हैं।

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  3. सुन्दर और सामयिक!भीष्म के बारे में क्या कहें यहाँ तो दुर्योधन और ध्रितराष्ट्र का बोलबाला है.@ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey महाभारत का पात्र बनने की च्वाइस हो तो पहली होगी अर्जुन, फिर भीष्म और फिर कर्ण!कन्हैया के बारे में क्या?

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  4. आपकी लेखनी को नमन….मन की व्यग्रता को बहुत सुन्दर शैली में ढाला है….दिनकर जी की कुरुक्षेत्र याद आ गयी….

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  5. "महाभारत का पात्र बनने की च्वाइस हो तो पहली होगी अर्जुन, फिर भीष्म और फिर कर्ण!"आदरणीय ज्ञानदत्त पान्डेय जी,आपकी इस राय का सम्मान करते हुऐ असहमति जताऊंगा… कवच कुन्डल जो कि उसे अजेय बनाते थे… सब कुछ जानते बूझते हुऐ भी उन्हें दान करने वाले कर्ण के नायकत्व के सामने अर्जुन का चरित्र कहीं नहीं ठहरता मेरी राय में… भीष्म तो हैं ही बेमिसाल… अर्जुन महाभारत के विजेता हैं नायक नहीं… कम से कम मैं तो यही मानता हूँ।

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  6. भीष्‍म ने सत्‍य का नहीं, इन्‍द्रप्रस्‍थ (सत्‍ता) का साथ दिया था। बोलते वे ही हैं जो सत्‍य का साथ देते हैं। इन्‍द्रप्रस्‍थ (सत्‍ता) का साथ देनेवाले भला बोले हैं कभी?

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  7. @ प्रवीण शाह > आप ही बतायें कौन योद्धा श्रेष्ठ है… वह जो अपने नेता के नेतृत्व में अपने देशवासियों के साथ-साथ लड़ते हुऐ वीरगति को प्राप्त हुआ… या वो जो न्याय-अन्याय, सिद्धान्त आदि-आदि की दुहाई दे पाला बदल कर या भाग कर अपनी जान बचाने में कामयाब रहे… ————भीष्म ने जो मृत्यु शैय्या पर कहा, वह दर्शन है, और जो जिया वह कर्म। महाभारत का पात्र बनने की च्वाइस हो तो पहली होगी अर्जुन, फिर भीष्म और फिर कर्ण!

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  8. …आदरणीय प्रवीण पान्डेय जी,कविता वाकई बहुत ही अच्छी और दिल को छूती है… परंतु भीष्म इसके अतिरिक्त कुछ और कर ही नहीं सकते थे… वह भीष्म हैं ही इसीलिये… महाभारत के कर्ण तथा भीष्म और रामायण के मेघनाद और कुम्भकर्ण… यह सब ऐसे ज्ञानी, समर्थ और बलवान योद्धा हैं जो जानते हैं कि वह जिसके पक्ष में लड़ रहे हैं वह पक्ष न्याय नहीं कर रहा… परंतु फिर भी लड़ते हैं… महाभारत के कर्ण तथा भीष्म क्रमश: दुर्योधन के प्रति अपनी कृतज्ञता व कुरूराज सिंहासन के प्रति अपनी वफादारी के चलते तथा रामायण के मेघनाद और कुम्भकर्ण क्रमश: अपने पिता और पिता समान अग्रज का कर्ज उतारने के लिये… यह सभी 'जागृत निर्णय' थे, 'अनिर्णय' नहीं… यही वह कारण है जो इन सभी चरित्रों को अविस्मरणीय, अनुकरणीय और आकर्षक बनाता है ।ऐसा निर्णय करना होता है कभी-कभी हर इंसान को… हाल फिलहाल में इसका उदाहरण आपको किसी भी युद्ध में मिल जायेगा… आप ही बतायें कौन योद्धा श्रेष्ठ है… वह जो अपने नेता के नेतृत्व में अपने देशवासियों के साथ-साथ लड़ते हुऐ वीरगति को प्राप्त हुआ… या वो जो न्याय-अन्याय, सिद्धान्त आदि-आदि की दुहाई दे पाला बदल कर या भाग कर अपनी जान बचाने में कामयाब रहे… इस बात पर हमेशा दो राय रहेंगीं ।

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  9. आपकी लेखनी को शत शत नमन….बस ये ही भाव अंतस को ऐसे मैथ रहे थे की मन प्राण व्याकुल थे….आपने जिस सिद्धहस्त्ता प्रखरता से उसे अभिव्यक्ति दी है कि क्या कहूँ….युगबोध से उद्बुद्ध आपकी यह रचना कालजयी है…

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