कहीं बहुत पहले सुना था,
बाप मरा अँधियारे में, बेटा पॉवर हाउस ।
आज जब हमारे लैपटॉप महोदय कायाकल्प करा के लौटे और हमारी लैप पर आकर विराजित हुये तो यही उद्गार मुँह से निकल पड़े। अब इनकी वाइटल स्टेटिस्टिक्स इस प्रकार हैं।
विन्डो 7 प्रोफेशनल – 64 बिट, रैम – 3 जीबी, प्रोसेसर – 2 गीगा हर्ट्ज़, डुओ कोर, हार्ड डिस्क – 500 जीबी, बैटरी – 12 सेल (5 घंटे)
कहने को तो पिछले 60 वर्षों में यह कम्प्यूटर की चौथी पीढ़ी है पर इनके पुरखों ने अपना कम्प्यूटर जैसा दिखने वाला जीवन इनके रैम के 10000000वें (जी हाँ 7 जीरो) भाग से प्रारम्भ किया था। जहाँ इनके पुरखे हिलने से पहले ही थक जाते थे हमारे लैपटॉप महोदय आज जहान जोतने की क्षमता रखते हैं। 32 बिट सिस्टम में यह रैम 3.3 जीबी से अधिक नहीं हो सकती थी, 64 बिट से यह 64 जीबी तक बढ़ायी जा सकती है। अर्थ यह हुआ कि कम्प्यूटर की सारी क्रियाओं को उछल कूद मचाने के लिये अब 18 गुना बड़ा मैदान उपलब्ध है। जी भर कर उछलें, पोस्टें भी, टिप्पणियाँ भी।
प्रोसेसर की महानता यह है कि वह कितना जल्दी आपके काम निपटाते हैं। जिन्न की तरह एक साथ कई। विचार प्रक्रिया से भी तेज। आप सोचिये नहीं कि उसके पहले आपका काम आपके हाथ में। डुओ कोर जिन्न दोनों हाथों में यह क्षमता रखते हैं। लैपटॉप महोदय इस प्रकार लगभग 4 गीगा हर्ट्स से सुसज्जित हैं। इस गति से उत्पन्न ऊष्मा कुछ तो इसमें लगे लघु एक्हॉस्ट पंखे से निकल जाती है, शेष से अपनी लैप को बचाने के लिये एक छोटी गद्दी का प्रयोग करना पड़ता है। कहने को तो 6 गीगाहर्ट्स की गति पायी जा चुकी है पर प्रयोग में कूलिंग के लिये लिक्विड नाइट्रोजन का उपयोग हुआ था।
रही बात 500 जीबी हार्ड डिस्क की। अभी तक सारी पुस्तकें, गाने, फोटो, वीडियो और मनपसन्द फिल्में उदरस्थ करने के बाद भी ‘यह दिल माँगे मोर’ बोल रहा है। चलिये और मसाला ढूढ़ते हैं।
12 सेल बैटरी से थोड़े भारी हो गये हैं लैपटॉप महोदय पर अब हमारे साथ 5 घंटे तक बिना चार्जिंग के मस्तिया सकते हैं। अब बताइये, एकमुश्त इतना समय और कौन देगा आपको जीवन में, नींद के सिवाय।
सोना भी है। अब पॉवरहाउस बन्द, रात का अँधियारा और मैं चला सोने।
प्रवीण अपने कायाकल्पित लैपटॉप पर मगन हैं तो मुझे पिलानी के पैंतीस साल पहले के आई.बी.एम. कम्प्यूटर की याद आ रही है। शायद IBM1130 था। हम लोग फोर्ट्रान फोर में प्रोग्रामिंग करते थे। जैसा शेफाली पाण्डे कहती हैं कि वे अपनी पोस्टें पहले कागज पर लिखती हैं, वैसे ही हम प्रोग्राम कागज पर बना कर होलेरियथ पंचकार्ड पर पंच कर कार्ड्स का रबरबैण्ड लगा गठ्ठा कम्प्यूटर सेंण्टर में दे कर आते थे। दिन में दो बार आउटपुट मिलता था। ज्यादातर कम्प्यूटर सिंटेक्स एरर बताते हुये हमारे कार्ड और प्रिण्टआउट बाहर भेज देता था और हम फिर प्रोग्राम परिमार्जन में लग जाते थे।
फोर्ट्रान फोर की प्रोग्रामिंग कर मैने एक हिन्दी कविता लिखने का प्रोग्राम बनाया था, और उसकी मेरे वर्ग में बहुत चर्चा हुई थी।
उस समय एक नक्शा छपा था भारत का साप्ताहिक हिन्दुस्तान या धर्मयुग में – भारत भर में २४ कम्प्यूटर के स्थान अंकित थे और उनमें पिलानी भी एक था। बहुत गर्व महसूस करते थे हम लोग।
अब मेरे पास घर में एक डेस्क टॉप, एक लैपटॉप, एक नेटबुक तो है ही। मोबाइल भी कम्प्यूटर ही माने जाने चाहियें। वे IBM1130 से तो ज्यादा ही गणना-सक्षम होंगे!
यह सब मेरी जिन्दगी में हुआ है; और मैं अभी चुक नहीं गया हूं। बहुत कुछ देखना बाकी है।

हम तो अभी गधे से उतर कर घोड़े पर सवार हुए है और एक आप हैं…कि हवाई जहाज पर चड़ कर बैठे हैं….और राकेट पर सवारी की तमन्ना कर रहे हैं….चलो जी हम भी धीरे धीरे ही सही….. कभी तो पहुँच ही जाएगें :)टेक्नालोजी का कमाल !! …अभी देखते है और कहाँ तक ले जाएगी यह दोड़…बढिया प्रस्तुति।
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मैं गिन रहा हूँ… २००५ से दो डेस्कटॉप, दो लैपटॉप और तीसरा मोबाइल. अभी जो लेटेस्ट (?) मेरे पास है वो भी आउटडेटेड लगता है. अब घर में कोई बचा नहीं जिसे देकर नया खरीद लूं :) मूर्स ला के हिसाब से १० साल तक ट्रेंड कंटिन्यु होना था. और ये है की चला ही जा रहा है… रोज नए मॉडल, नयी तकनीक…हमारे संस्थान में तीन साल पहले स्टैनफोर्ड के एक प्रोफ़ेसर आये थे वो १९६५ में विजिटिंग फैकल्टी हुआ करते थे. उन्होंने बताया था कि तब बैलगाड़ी पर लादकर आईबीएम १६२० आया था, जीटी रोड के गड्ढों को झेलते हुए… तब से तो बहुत बदल गया. आगे भी बदलता ही रहेगा…
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बात तो सही है,हमें अपनी जिन्दगी में तकनीक के तरक्की के न जाने और कितने आयाम देखने हैं…एक मजेदार वाक्य याद आता है हमेशा…एक महाशय ने 1997 में हमसे एक 286 कम्प्यूटर खरीदा था,लगभग पचहत्तर हज़ार रुपये में..2004 में एकदिन उन्होंने फोन कर पूछा की लेटेस्ट कम्प्युटर कितने में आ जाएगा…हमने कीमत बतायी जो उनके कम्प्युटर से लगभग आधी थी…फिर क्या था ,उन्होंने कहा कि हम उनका पुराना कम्प्युटर ले लें और उसके बदले उन्हें एक नया दे दें और हमें उन्हें बाकी पैसे लौटाने की जरूरत नहीं…जब हमने कहा कि उनके पुराने कम्प्युटर का रीसेल वेल्यू तो दो हजार भी नहीं,तो वो इतने आग बबूला हुए कि बस क्या कहा जाय…
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बस, आपके आसपास ही हैं हमारे लैपटाप ललुआ।
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सही है जिस तीव्र गति से टेक्नोलोजी अपने पैर पसार रही है…और क्या क्या ना देख लें हम. इस "बाप मरा अँधियारे में, बेटा पॉवर हाउस" ।कहावत ने बड़ी पुरानी याद ताज़ा कर दी…मेरे दादा जी इसे कुछ यूँ कहा करते थे…"बाप का नाम घास-पात और बेटे के नाम परवल ":)
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अभी तो आपको चाँद जाते ट्राफिक को कंट्रोल करना है :) कम्प्यूटर तेज से तीव्रतम होते जा रहे है, वहीं जरूरते भी इतनी बढ़ती जा रही है कि गति कम पड़ती है. जितना मिले कम है.
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एक मेरा लैपटॉप है जो दूरदर्शन पर आने वाले धीमी गति के समाचार की तरह खुलता है और घोंघे की तरह चलता है.. घोंघा बसंत! फिर मन को सांत्वना देता हूँ कि हमारा कंप्यूटर तो सरकारी स्कूल में पढा छात्र है जो आगे की शिक्षा भी सरकारी विश्वविद्यालय से प्राप्त करता है और सरकारी नौकरी में लग जाता है। एक आपका है जो कॉन्वेंट में पढ़ा, आई.आई.एम. तरह की संस्था से डिग्री लेकर विदेश चला गया सॉफ़्टवेयर टाइप विषय का ज्ञान प्राप्त करने और फिर लग गया किसी मल्टी नेशनल में। धराधर्र … फर्र-फर्र काम करता है, काम आता है। एक मेरा निठल्ला, नालायक!न काम के न काज के ! सौ मन अनाज के!!
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"मैं अभी चुक नहीं गया हूं। बहुत कुछ देखना बाकी है।"कम्प्युटर तो आते जाते रहते हैं .यही है असली माद्दा :)
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और मैं अभी चुक नहीं गया हूं। बहुत कुछ देखना बाकी है.. यही है लाख टके की बात,जब उमंग है फिर सब कुछ है.
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बाप मरा अँधियारे में, बेटा पॉवर हाउस ।आज जब हमारे लैपटॉप महोदय कायाकल्प करा के लौटे और हमारी लैप पर आकर विराजित हुये तो यही उद्गार मुँह से निकल पड़े। बहुत अच्छी प्रस्तुति!
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