हम चाहें या न चाहें, सीमाओं के साथ जीना होता है। घाट की सीढियों पर अवैध निर्माण गंगा किनारे घूमने जाते हैं। बड़े सूक्ष्म तरीके से लोग गंगा के साथ छेड़ छाड़ करते हैं। अच्छा नहीं लगता पर फिर भी परिवर्तन देखते चले जाने का मन होता है। अचानक हम देखते हैं कि कोई घाटContinue reading “सीमाओं के साथ जीना”
Monthly Archives: May 2010
छलकना गुस्ताख़ी है ज़नाब
हिमांशु मोहन जी ने पंकज उपाध्याय जी को एक चेतावनी दी थी। “आप अपने बर्तनों को भरना जारी रखें, महानता का जल जैसे ही ख़तरे का निशान पार करेगा, लोग आ जाएँगे बताने, शायद हम भी।” यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। प्रवीण बेंगळुरू रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल वाणिज्य प्रबन्धकContinue reading “छलकना गुस्ताख़ी है ज़नाब”
नाले पर जाली – फॉलोअप
मैने इक्कीस फरवरी’२०१० को लिखा था : गंगा सफाई का एक सरकारी प्रयास देखने में आया। वैतरणी नाला, जो शिवकुटी-गोविन्दपुरी का जल-मल गंगा में ले जाता है, पर एक जाली लगाई गई है। यह ठोस पदार्थ, पॉलीथीन और प्लॉस्टिक आदि गंगा में जाने से रोकेगी। अगर यह कई जगह किया गया है तो निश्चय हीContinue reading “नाले पर जाली – फॉलोअप”
