निठल्ला

Mags बिना अपना काम किये कैसे जिया जा सकता है? पिछले डेढ़ महीने मेरे लिये बहुत यातनामय रहे, जब मेरी कार्यक्षमता कम थी और सरकारी काम के प्रति पूरा न्याय नहीं हो पा रहा था।

पढ़ा कि कई उच्च मध्य वर्ग की महिलायें स्कूल में मास्टरानियों के पद पर हैं। पर स्कूल नहीं जातीं। अपना हस्ताक्षर कर तनख्वाह उठाती हैं। घर में अपने बच्चों को क्या जीवन मूल्य देती होंगी!?

दफ्तर के बाबू और रेलवे के इन्स्पेक्टर जिन्हें मैं जानता हूं; काम करना जानते ही नहीं। पर सरकारी अनुशासनात्मक कार्यवाई की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि वे बच निकलते हैं। पूरी पेंशन के साथ, बाइज्जत।

शाम के समय जब पैर दर्द करते हैं या मन होता है खिन्न; तब यह सब याद आता है।

खैर छोड़ें। क्या बना है जी रात के भोजन में? फिर वही लौकी! अच्छा, जरा दाल बना लेना – न हो तो आटे में सतुआ भर कर रोटी बना देना।

छोटे आदमी, छोटे संतोष, छोटे सुख। ये सुख स्थाई भाव के साथ मन में निवास क्यों नहीं करते जी! मन में कुछ है जो छोटाई को सम भाव से लेना नहीं चाहता। वह कुटिया में रहना चाहता है – पर एयरकण्डीशनर लगा कर!   


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

27 thoughts on “निठल्ला

  1. छोटे आदमी, छोटे संतोष, छोटे सुख। ये सुख स्थाई भाव के साथ मन में निवास क्यों नहीं करते जी! …बात तो सोचने की है …!

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  2. 1. समाजशास्त्रियों को मानना है कि अध्यापा लोग मध्यवर्गीय मूल्य बांटते फिरते हैं, क्योंकि वे स्वयं इसी वर्ग से आते हैं. सो, उच्चवर्गीय मास्टरनियां समाजशास्त्रियों को झुठलाना नहीं चाहतीं.2. पेंशन के साथ बाइज़्ज़त रिहायी पाने वाले बाबूजन पहले से ही जानते हैं कि काम करने से ही तो पेंशन के साथ बाइज़्ज़त रिहायी पाने में अड़चन आ सकती है..3. कुटिया और एअरकंडीशनर अभी उसी दौर में हैं जब टेलीविज़न ड्राइंग रूम में रखा जाता था.

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  3. ब्लॉग की खांचे के लिए एक सर्वथा फिट पोस्ट ….मजा तो एक्दमै निताला बन जाने में है ! और एक बार मुझे महिला विद्यालयों की जांच मिली तो देखा प्रधानाचार्य (उम्रदार सह्रीफ महिलायें ) बेचारियां खीझ रही थी किसी न किसी बहाने से आधे से ज्यादा टीचर महिलायें मैटेर्निती ,लालन पालन अवकाश आदि पर ड्यूटी से अनुपस्थित थीं .. …

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  4. आप 80-20 Rule के बारे में जानते होंगे?किसी भी सरकारी दफ़्तर में २० प्रतिश्त कर्मचारी, ८० प्रतिशत काम करते हैं।प्राईवेट कंपनियों में भी ऐसा ही होता है लिकिन ये आँकडे सुधर जाते हैं।मालिक के डंडे के डर से शायद 80-20 सुधरकर 70-30 या 67-33 बन जाते होंगे।निठल्लेपन का एक इलाज है जो हर स्थिति में लागू नहीं हो सकता और वह है self-employment.मुझे सरकारी (सार्वजनिक क्षेत्र), प्राईवेट और स्वयं अपना ही व्यवसाय चलाने का अनुभव है।कर्मचारी 100 प्रतिशत योगदान तब देता है जब वह अपना खुद का काम करता है।

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  5. सर कृपया बुरा ना मानें आजकल के कर्मी कामचोर हो गए है … यदि सरकारी हैं तो समझिये की वे काम करें या ना करें …. वे तो सरकारी दामाद हो जाते हैं …बैठे ठाले पूरी की पूरी पक जाती है . सर ३४ वर्षो तक मैंने भी सरकारी नौकरी की है और पाया है की पहले के कर्मी निष्ठावान की भावना से सेवा कार्य करते थे हालत बदलने के साथ साथ आज के कर्मी काम नहीं करना चाहते है . निठल्लों की फौज अब हर सरकारी दफ्तर में भीड़ में तैनात हैं ….

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  6. पोस्ट से इतर केवल एक वाकया बयान कर रहा हूँ.एक आई ए एस की पत्नी शौकिया पढ़ाती थीं. उन्हें केवल तीन हज़ार तनखा मिलती थी. उनके आने जाने के लिए दफ्तर का ड्राइवर और एम्बेसेडर थी जिसका पूरा खर्चा सरकारी खाते से जाता था. स्कूल शहर से बाहर था और पढ़ाकर आने में कुल पांच घंटे लगते थे. ड्राइवर और कार का बस इतना ही उपयोग था. उन मैडम को शौकिया पढ़ाकर तीन हज़ार वेतन दिलवाने के लिए सरकार के पच्चीस-तीस हज़ार रुपये यूं ही उड़ जाते थे.हमारे यहाँ भी पुराने लोग सीखना नहीं चाहते. कहते हैं कि विन्डोज़ 98 और लोटस इंस्टाल करो तब काम करेंगे. कहते हैं कि कम्प्युटर पर टाइप नहीं कर सकते, मैनुअल टाइपराइटर चाहिए. अब मैनुअल तो सौ रूपये नग के भाव से नीलम हो गए. चूंकि वे काम नहीं करते इसलिए कोई गलती भी नहीं करते. उनकी ACR खराब नहीं होती. जो आदमी काम करने का जोखिम उठाता है उसे और भी काम से लादा जाता है और गलत कर बैठने पर या काम नहीं कर सकने की सूरत में उसकी अच्छी लानत-मलानत होती है. कोई काम आ जाने पर उसे ही याद किया जाता है भले ही वह पहले से ही बोझ तले दबा हुआ हो. जब वह शिकायत करता है कि बाकी लोग तो बिलकुल काम नहीं करते तो उसे सुनने को मिलता है "आप भी उनके जैसे नाकारा बनना चाहते हैं क्या?"ऐसे लोग जब रिटायर होते हैं तब भी उनके प्रति बहुत सम्मान रखते हुए उनको रुखसत दी जाती है. कोई भी यह नहीं कहता कि आप पूरी ज़िंदगी दूसरों को अपना काम करते देखते रहे, आज आपको कैसा लग रहा है:)इकोनोमिस्ट और बिजनेस मैगजीन के ऊपर अखंड ज्योति! हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा!

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