मैने कभी नहीं सोचा कि मैं इतिहास पर लिखूंगा। स्कूल के समय के बाद इतिहास बतौर एक डिसिप्लिन कभी देखा-पढ़ा नहीं। पर यहां इलाहाबाद के जिस शिवकुटी क्षेत्र में रहता हूं – गंगा के तट पर कोई चार-पांच सौ एकड़ का इलाका; वहां मुझे लगता है कि बहुत इतिहास बिखरा पड़ा है। बहुत कुछ को बड़ी तेजी से बेतरतीब होता जा रहा अर्बनाइजेशन लील ले रहा है। अत: यह जरूर मन में आता है कि इससे पहले कि सब मिट जाये या विकृत हो जाये, इसको इस ब्लॉग के माध्यम से इण्टरनेट पर सहेज लिया जाये।
मेरा किसी व्यक्तिगत काम के सन्दर्भ में श्री सुधीर टण्डन जी से मिलना हुआ। श्री टण्डन इलाहाबाद के प्रतिष्ठित टण्डन परिवार से हैं। मेरे घर के पास का रामबाग उन्ही की पारिवारिक सम्पत्ति है। (विकीमेपिया पर मेरी प्रस्तुत यह सामग्री देखने का कष्ट करें, जिसमें रामबाग की प्लेक के चित्र हैं। प्लेक में रामबाग के मालिक श्री रामचरन दास के साथ उसका सन भी लिखा है – सन 1898!)

श्री सुधीर टण्डन के पास इलाहाबाद के इतिहास की बहुत स्मृतियां हैं। बदलते इलाहाबाद पर वे बहुत अच्छी पकड़ के साथ लिख सकते हैं। मैने उन्हे कहा कि वे एक पुस्तक लिखें तो उनका जवाब था कि वे तो बस यूं ही चर्चा या गपबाजी (?) कर सकते हैं!
श्री सुधीर टण्डन ने इस इलाके के इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होने बताया –
अठारह सौ सत्तावन के विद्रोह के बाद की बात होगी। नेपाल के राजाधिराज किसी कारण से नाराज हो गये अपने प्रधानमंत्री श्री पराक्रम जंग बहादुर सिंह राणा से। उन्हे सपरिवार चौबीस घण्टे में देश छोड़ने का आदेश दिया गया। श्री पराक्रम जंगबहादुर सिंह राणा के 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों से अच्छे सम्बन्ध बन गये थे। राणा को अंग्रेजों ने इलाहाबाद के शिवकुटी इलाके में गंगा के किनारे 150-200 एकड़ जमीन दे कर बसा दिया।
राणा परिवार यहां समृद्धि अर्जित न कर सका। राणा के निधन के बाद उनका परिवार अपनी चल सम्पत्ति (गहने इत्यादि) बेच कर समय यापन करने लगा। कालांतर में अचल सम्पत्ति भी और लोगों ने खरीदी।
राणा की बहन नारायणी देवी ने विवाह नहीं किया था। वे आध्यात्म की ओर आकर्षित थीं और साध्वी बन कर उन्होने शिवकुटी में आश्रम की स्थापना की जो कालांतर में नारायणी आश्रम बना। राणा की विधवा ने भी सन्यास ले कर बतौर नारायणी देवी की शिष्या के रूप में आश्रम में अपना स्थान बनाया।
सुन्दरबाग (जिसपर मेरा मकान स्थित है) और रामबाग ( श्री रामचरणदास टण्डन का बाग) भी राणा की जमीन से लिये गये स्थान हैं।
मेरे घर के बगल मेँ श्री जोखू यादव का प्लॉट/मकान है। श्री सुधीर टण्डन ने बताया कि जोखू के पूर्वज और (शायद जोखू भी) राणा परिवार की सेवा में रहे हैं। कई यादव परिवार यहां हैं और वे शायद श्री जोखू यादव के वंशज हैं।
इस क्षेत्र में कोटेश्वर महादेव का मन्दिर है। कुछ ही दूरी पर शिव जी की कचहरी है; जहां अनेक शिवलिंग हैं। श्री सुधीर टण्डन ने बताया कि (शायद) कोटि कोटि शिवलिंगों की परिकल्पना के आधार पर शिव मन्दिर के शिव कोटेश्वर महादेव कहलाये। कोटेश्वर महादेव के शिवलिंग के पीछे देवी पार्वती की एक प्रतिमा है। लोग कहते हैं कि वे विलक्षण और सिद्ध देवी हैं। उनके कारण यहां श्रावण शुक्लपक्ष की अष्टमी को शिवकुटी का मेला सदियों/दशकों से लगता आया है।
स्वामी राम ( हिमायलन योगी) ने सन 1964 में यहां रामबाग में चौमासा किया था। उन्होने यहां की कोटेश्वर महादेव की देवी को सिद्ध देवी कहा था। इन देवी जी पर लोग अन्ध-श्रद्धा वश तेल, अक्षत, फूल, पानी आदि उंडेल कर प्रतिमा को चीकट बनाये रखते थे। अब उनके दरवाजे पर ग्रिल लगा कर उन्हे श्रद्धा के बम्बार्डमेण्ट से बचा लिया जाता है। पर कोटेश्वर महादेव के मन्दिर को तो पुरी-पुजारियों ने जीविका का साधन होने पर भी रख रखाव के मामले में उपेक्षित ही रखा है।
सुधीर जी ने बताया कि राणा मूलत: नेपाली नहीं थे। वे कन्नौज के ठाकुर थे और वहां से नेपाल गये। उनका प्रारब्ध उन्हे इलाहाबाद में शिवकुटी ले आया!
यह तय है कि श्री सुधीर टण्डन के पास (भले ही इतिहास के अनुशासन पर कसी न कही जा सके) बहुत सी जानकारी है इस क्षेत्र के बारे में। मुझे पक्का नहीं कि मैं उनके साथ एक दो और बैठक कर इस ब्लॉग के लिये और पोस्टनीय सामग्री जुटा पाऊंगा या नहीं। पर जो सामग्री है, आपके सामने है।
आप सब को होली की कोटिकोटि शुभकामनायें!
सचाई की कसौटी पर कसा हुआ लगा टण्डन जी का सुनाया इतिहास.
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हां भारत में स्मार्त और श्रुतियों की परम्परा रही है!
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Quite Informative!!!
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ज्ञान जी,
आपकी मानसिक हलचल के साथ-साथ हमें धीरे-धीरे शिवकुटी के बारे में भी जानकारी मिल रही है। राणा परिवार के बारे में पढकर न जाने क्यों मीराबाई के शाश्वत काव्य की एक पंक्ति याद आ गयी:
राजा रूठे, नगरी राखे, हरि रूठे कहाँ जासूँ …
पक्का पता नहीं मगर इलाहाबाद तो आयी ही होंगी मीराबाई!
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मीराँ नहीं तो नारायणी देवी थीं। पता नहीं वे भक्ति मार्ग की थीं या नहीं। कृष्ण का मन्दिर तो है उनके आश्रम के प्रांगण में।
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आप को सपरिवार होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
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आज से पच्चीस साल पहले मैं इतिहास को एक ही बार पढ़ता था और कंठस्थ हो जाता था. बिल्कुल कहानी की तरह.
इतिहास के इन पन्नों की जानकारी पाकर अच्छा लगा.
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आपके मस्तिष्क में भाषा और एक्स्प्रेशन का घटक बहुत सशक्त होगा, निश्चय ही। मेरे साथ वैसा नहीं है। लोगों के नाम तक याद नहीं रहते! 😦
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बढ़िया जानकारी रही। वैसे तमाम राजे रजवाड़ो के इतिहास को लेकर बहुत रोचक बातें होती हैं जिन्हें यदि वर्तमान समय में पता किया जाय कि उनके वंशज आज क्या कर रहे हैं तो बहुत सी बातें दिलचस्प अंदाज में सामने आएंगी।
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यह हमेशा रोचक रहा है जानना कि धन, सत्ता और जमीन कैसे हस्तांतरण करते हैं। समय के साथ कई अन्य घटक होते हैं जो यह फ्लक्स तय करते हैं। It is very very interesting indeed! And that probably is important ingredient of study of History!
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सच है! धातु का एक ही टुकडा है शरीर पर – शादी की अंगूठी। अक्सर सोचता हूँ कि कितने हाथों से गुज़रा होगा वह, न जाने कितने अन्याय, षडयंत्र और हत्यायों का साक्षी रहा होगा। भगवान की कब कहाँ लूटी गयी मूर्ति का अंश रहा हो, किसे मालूम? मुझसे परे के इतिहास की मेरी खिडकी – एक अंगूठी!
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ओह – वास्तव में।
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ये तो बड़ी अच्छी जानकारी दी आपने। आपका साधुवाद! साथ में होली की मुबारकबाद! 🙂
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धन्यवाद। पोस्ट में लगे चित्र लेने के लिये जो पैदल चक्कर लगाया तो अहसास को गया कि स्वास्थ्य को बढ़िया नहीं कहा जा सकता! इस सिम्पल पोस्ट ने बहुत मेहनत ली! 😦
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एक स्थान इतिहास के कितने अध्याय छिपाये रहता है, कुछ जीवित रहते हैं और कुछ छिप जाते हैं। यह श्रंखला चलाते रहें।
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अर्बनाइजेशन इतनी तेजी से परिवर्तन कर रहा है कि इतिहास सदियों में नहीं, दशकों में बदल रहा है!
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इतिहास सदा लुभाता रहा है. आपने बहुत ही सीधे साधे शब्दों में वर्णित किया है. बिना ‘बोर’ हुए पढ़ने लायक इतिहास.
होली की शुभकामनाएं.
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यह तो शायद होली का प्रताप है कि आप बोर न हुये। वर्ना मुगलिया सल्तनत में कौन किसका बाप था और किस सन में – यह बारम्बार रटना पड़ता था! 🙂
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इतिहास से हम भी हमेशा कोसो दूर रहे है …….. खैर इतिहास से बचा नहीं जा सकता ….बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने हमारे
कियेलिये नयी ही है।होली की हार्दिक शुभकामनायें।
http://rimjhim2010.blogspot.com/2011/03/blog-post_19.html
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मेरे ख्याल से बतौर एक गम्भीर ब्लॉगर (?) अगर आप अपने परिवेश को समेटना चाहते हैं ब्लॉग पर तो उसमें हो रहे परिवर्तनों या इतिहास पर निगाह डाले बिना नहीं रह सकते। और अगर यह लाज लगे कि आपने लोक-श्रुति वाले इतिहास वर्णन को कौन घास डालेगा, तो आप कुछ पोस्ट करने से रहे! 🙂
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