हरीलाल का नाव समेटना


विनोद प्वॉइण्ट पर भूसा के बोरे और डण्ठल के गठ्ठर दिख रहे थे। एक नाव किनारे लग चुकी थी और दो लोग उसकी रस्सी पकड़ कर उसे पार्क कर रहे थे। हमने तेजी से कदम बढ़ाये कि यह गतिविधि मोबाइल के कैमरे में दर्ज कर सकें। पतला सा नब्बे-सौ ग्राम का मोबाइल बड़े काम की चीज है भविष्य के लिये स्मृतियों को संजोने के लिये। मेरी ब्लॉगिंग का महत्वपूर्ण औजार। कम्यूटर न हो तो काम चल सकता है पर मोबाइल बिना तो शायद ही चले। आखिर जिसके पास शब्द का टोटा हो, वह चित्र से ही काम चलायेगा!

एक साठ साल का आदमी और एक जवान थे नाव के साथ। उनके नाम पूछे तो बड़े थे हरीलाल और जवान रिंकू। समय के साथ नाम ऐसे ही ट्रैण्डी तरीके से रूपांतरित होते जा रहे हैं। हरीलाल एक गठ्ठर और टमाटर की एक पन्नी उतार रहे थे नाव से। रिंकू नाव को खींच किनारे पार्क कर रहे थे। मुझे लगा कि लंगर से नाव बांध कर किनारे खड़ी कर देंगे वे दोनो। रिंकू ने लंगर लगा कर नाव खड़ी कर दी थी; पर अचानक उन लोगों ने अपना इरादा बदला। लगा कि उनका उपक्रम नाव को उठा कर जमीन पर लाने का हो गया है।

दोनो ने पकड़ कर नाव जमीन पर खीच ली। नाव के ऊपरी भाग पर लगे पटरे उतार कर एक जगह तरतीबवार जमा दिये। फिर नाव को और जमीन पर सरकाया। अंतत: उसको दोनो ने पलट दिया। पलटने पर एक पटरे को नीचे अटका कर नाव को पच्चीस-तीस डिग्री के कोण पर टिका दिया।

उस पार खेती का काम खतम हो गया।  गेहूं, सरसों और भूसा की अंतिम खेप भी वे उठा लाये इस पार। अब नाव का कोई उपयोग नहीं। अक्तूबर-नवम्बर में खेती फिर करेंगे कछार में, तब जरूरत पड़ेगी नाव की। हरीलाल ने पूछने पर यह बताया।

अभी कुछ दिन यहीं सूखेगी नाव। सूखने के पहले एक बार उसे रगड़ कर तीन चार बाल्टी पानी से धोयेंगे उसे। फिर तारकोल की एक नयी परत लगाई जायेगी नाव के पृष्ठभाग में। उसके बाद बारह-पन्द्रह लोग मिल कर इसे हरीलाल के घर तक उठा ले जायेंगे। बाकी, नाव काफी अच्छी अवस्था में है। यह बताते हुये उस पर हरीलाल जिस तरह से हाथ फेर रहे थे, उससे लगता था कि वे नाव को अपनी बहुमूल्य सम्पत्ति मानते हैं!

खेती का सीजन खत्मप्राय है।  हरीलाल के चेहरे पर सुकून सा झलकता है। पूछने पर वे बताते हैं कि गेहूं पर्यप्त मिल गया इस साल की खेती में।

हम लोग हरीलाल से पूछते हैं विनोद के बारे में। उनका कहना है कि वह अभी गंगा उसपार काम कर रहा है। सम्भवत: चिल्ला में उनके पड़ोस में रहता  है विनोद का परिवार। पत्नीजी कहती हैं कि चलें उस पार विनोद से मिलने। अगर हम ऋग्वैदिक ऋषि होते तो शायद पानी पर चल पाते कोई मंत्र पढ़ कर। अब तो किसी केवट की तलाश है जो उस पार ले जाये!

इस सब में छ बज गया है। हम लोग सवेरे की सैर से वापस चल देते हैं। पीछे मुड़ कर देखते हैं – हरीलाल, रिंकू और दो छोटी लड़कियां (जो हरीलाल को नाना कह रही थीं) अभी अपने गठ्ठर और नाव के पटरे सहेज रहे थे। ओह! इतनी जल्दी सैर से क्यों लौटना होता है जी?! [मैं हर बार सोचता हूं कि नौकरी में कोई साइडी पोस्ट ले कर सवेरे का बहुत सा समय गंगा किनारे गुजारा जाये। पर तब भय लगता है कि अगर इन सब कृत्यों से मन उचाट हुआ और नौकरी में अपनी वैल्यू तलाशने लगा तो क्या होगा!]

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

31 thoughts on “हरीलाल का नाव समेटना

  1. नाव आजकल भी बहुत बहुमूल्य है

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  2. गंगा किनारे के लोग कहते होंगे कि रोज सुबह एक रेलवे के बड़े अधिकारी आते हैं… और हम लोगों का फोटो खिचते हैं :) पीठ पीछे लोग बड़ी रोचक बाते करते होंगे आपके बारे में। नहीं?

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    1. मुझे नहीं लगता कि वे बड़ा अधिकारी समझते होंगे! उत्तरप्रदेश में बड़ा अधिकारी वह है जो किसी की ऐसी तैसी कर सकता हो, या लोगों को नौकरी दिला सकता हो (भले ही घूस खा कर दिलाये)! :)

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    1. मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि आपके पास शब्दों का टोटा है ही नहीं। वरन कम शब्दों में आपके बराबर मारक क्षमता देखने में नहीं आती। :)

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  3. नाव बहुमूल्य होती थी पुराने समय में क्योंकि माँग बहुत अधिक थी, आजकल भी बहुत बहुमूल्य है क्योंकि नावें बहुत कम हैं।

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    1. नाव व्यक्ति के आवागमन को एक और आयाम देती है – जल में निर्बाध आवागमन का!

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