मन्नत-ए-हीरालाल


डेढ़ साल पहले हीरालाल पर रिपोर्ट थी – हीरालाल की नारियल साधना। उसमें है कि हीरालाल ने केश बढ़ा रखे थे और दाढ़ी भी रखी थी किसी मन्नत के चलते। उस समय हीरालाल ने बताया था कि वह मनौती पूरी होने वाली थी।

देश के इस इलाके में मन्नत मानने का चलन है। दक्खिन में भी तिरुपति में केशदान शायद मनौती पूरा होने पर या मनौती मानने के लिये होता है। श्राद्ध पक्ष में लोग बाल नहीं कटाते, दाढ़ी भी नहीं बनवाते। और उसके बाद सिरे से अपने को मूंड लेते हैं।

मनौती में दो पक्ष हैं – मानव की कामना और एक अदृष्य़ शक्ति के अस्तित्व पर विश्वास जो मनौती पूरी करती है।

हम, पढ़े-लिखे भद्रजन भले ही मनौती के इस ऑउटवर्ल्डली अनाउंसमेण्ट को सही न मानते हों और इस तरह का जटा जूट रखना हमें दकियानूसी लगता हो, पर हमारी कही, अनकही प्रेयर्स में वह ऑपरेशन-मन्नत ही तो होता है। लिहाजा हीरालाल का बाल बढ़ाये रखना मुझे अटपटा नहीं लगा था। इसके अलावा इस तरह का वेश रखना तो आदिशंकर के जमाने से जस्टीफाई किया गया है – जटिलोमुण्डी लुञ्चितकेश:… ह्युदरनिमितम बहुकृत वेश: (भजगोविन्दम)।

पर जब अभी हीरालाल से मिला तो पाया कि वे अभी भी केश धारी हैं। पूछने पर बताया कि मन्नत अभी पूरी नहीं हुई।

“अभी साल भर और लगेगा।”

हीरालाल मुझसे आंख मिला कर कम ही बात करते हैं। पता नहीं यह आत्मविश्वास की कमी है या आदत। जब मैने देखा तो दूसरे के खेत से टमाटर तोड़ रहे थे और अपने डोलू (पानी या दूध ले जाने का कमण्डल नुमा डिब्बा) में डाल रहे थे। एक गेन्दे के पौधे में फूल भी अच्छे खिले थे। वह भी तोड़ कर उन्होने सहेज लिये। मैने देखा – डोलू में एक खीरा भी था। खेत वाला नहीं था, पर शायद खेत वाले की उपस्थिति में भी सहजता से तोड़ते हीरालाल।

कछार के खेतों में घूमते हुये मैने नियम बना रखा है कि किसी खेत की रत्ती भर चीज भी नहीं लेनी है, भले ही दूर दूर तक कोई न हो। हीरालाल की तरह वर्जनाहीन होता तो क्या मजे होते! पर क्या होते?

शायद इस जटाजूट के वेश का प्रभाव है या उम्र का, कि हीरालाल का अपनी बिरादरी में असर दीखता है। हीरालाल का केश-वेश मन्नत के लपेट में है, पर है ह्युदरनिमित्त (सरल भाषा में अपने भौकाल और पापी पेट के लिये) ही!

क्या ख्याल है?


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

29 thoughts on “मन्नत-ए-हीरालाल

  1. रेलवे में यहाँ एक खलासी थे जिन्होंने यह मन्नत माँगी (या कसम उठाई) थी कि जब तक उनके साहब रिटायर नहीं हो जायेंगे तब तक वह बोरा ही पहनेंगे. साहब से उनका कुछ झगड़ा था.
    वे पेटीकोट की तरह एक बोरे को छाती से लपेटे रहते थे. यह बात लगभग बीस साल पुरानी याद आ गयी. पता नहीं उनकी मन्नत पूरी हुई या नहीं.
    मैं भी एक मन्नत मानना चाहता हूँ. कुछ ठानना चाहता हूँ. क्या… किसलिए… पता नहीं.

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    1. कसम उठाने के तो मजेदार किस्से मिलेंगे। एक सज्जन रेलवे में त्रिची में क्लर्की करते थे। उनका विचार था कि तनख्वाह बहुत कम देती है रेलवे, अत: अपना मकान रेलवे की ईंटों से ही बनायेंगे। रोज दफ्तर से लौटते वख्त दो-तीन ईंटें ले आते थे। उन्ही से मकान बना। यह मैं किसी काम से तिरुचिरापल्ली गया था, तो वहां एक सज्जन ने बताया!

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  2. एक बार जटाधारी होने का मन मेरा भी है…..पोनी वाली चुटिया तो कुछ दिन रख भी चुका हूँ..चलिये, यही मन्नत मांग लेते हैं …… :)

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    1. तब की फोटो कहाँ है? उसके बगल में चोटी धारी नत्तू पांड़े की फोटो सटानी है! :)

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      1. अरे अपनी खेती है..फिर उगा लेंगे…हिंचा कर भेजते हैं..नाती के साथ सटेगी सोच कर तो जल्दी बढ़ जायेगी. :)

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  3. मन्नत पूरी करवाने के के लिए लोग न जाने क्या क्या करते हैं…हमारे यहाँ एक सज्जन जूते चप्पल नहीं पहनते हैं… एक अन्य अपने बच्चों को खुद खरीद कर कपडे नहीं पहनाते हैं! उनके कपड़ों का खर्च रिश्तेदार ही वहन करते हैं!

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    1. ये कपड़ा न खरीदने वाले सज्जन तो बड़े दुनियाँदार हैं! इनकी मन्नत न पूरी हो तो भी इनका नफा ही नफा है! :)

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