1. भुल्लर यादव की पतोहू गाय की नांद में कबार डालती जा रही थी और कान से सटाये मोबाइल से बतियाये भी जा रही थी। अच्छा लगा। भुल्लर यादव की पतोहू का पति एक सड़क दुर्घटना में पर साल चला गया था। जिन्दगी जीने का अपना रास्ता खोज लेती है।
2. वह बुढ़िया पगलोट है। कनेर का फूल तोड़ते कुछ गुनगुना रही थी। क्या मधुर गला पाया है! एक राह चलता पूछ रहा था – गंगा नहा आई? तुरंत जवाब दिया – “देखत नाहीं हय, तबियत खराब बा। बारह बजे नहाब। आपन फिकिर खुदै करे पड़े न!”
3. जल्लदवा आता है कमीज के बटन खुले। लुंगी गमछे की तरह अधोवस्त्र के रूप में लपेटे। मुंह में मुखारी। एक उलटी नाव के पास बैठ कर देर तक दातुन करता है। मोटा और गठे शरीर वाला है। तोन्द निकली है। मेरा अनुमान है कि निषाद घाट पर कच्ची शराब का डॉन है वह। एक और नौजवान पास में ही एक लाठी दोनो कन्धों पर पीछे से फंसा कर दांये बायें शरीर घुमाता है, देर तक। उसके गले में सोने की चेन है और उसमें बड़ा सा लॉकेट। सुपरवाइज करता जा रहा है नाव से पानी निकालने की प्रक्रिया। उसी नाव में कच्ची शराब के पीपे जाते हैं उस पार। हैण्डसम है बन्दा!
4. पण्डा ने अपनी चौकी की पोजीशन बदल कर घाट की सीढ़ियों पर कर ली है। जवाहिर लाल वहीं बैठा था पुरानी जगह पर मुखारी करता! सवर्ण और विवर्ण अलग अलग हो गये। बहुत बड़ी खबर है ये।
5. गायों का एक झुण्ड रेत में बैठा था। अनयूजुअल! गंगा की रेती में ऊंट और खच्चर चरते देखे हैं, पर गायें नहीं। एक कुत्ते ने उन्हे लोहकारा तो उठ कर पास के परित्यक्त खेत में जा कर चरने लगीं। मेरा फोटो खींचना असहज महसूस कर रही थीं। आदमी होतीं तो जरूर कहतीं – काहे फोटो हैंचत हय हो?
6. एक भैंस एक नाव के पास चर रही थी। गायें और भैंसे लगता है छुट्टा छोड़ दी हैं चिल्ला वालों ने। अब सब्जी नहीं निकलनी हैं तो बची बेलें ही चर लें ये। ऊंट तो पहले से चर रहा था॥ … पर मिस्टेक हो गयी। बोले तो गलती! जब फोटो लेने लगा तो भैंस मुंह ऊपर कर अपने नथुने सिकोड़ कर सांस छोड़ने लगीं। ध्यान से देखा तो पाया कि वह भैंस नहीं, भैंसा है। दवे पांव वापस होना पड़ा! ह्वाट अ ब्लॉगर अनफ्रेण्डली क्रीचर!
7. रामदेव का पक्ष मुझे नहीं भाता। बन्दा अपनी पॉलिटिक्स चमका रहा था। पर रात में सोते लोगों पर लाठी चार्ज जमा नहीं। आज सुप्रीमकोर्ट में पी.आई.एल. है इस दमन के खिलाफ। देखें क्या होता है। मैने तो एक चीज सोची है – फेसबुक पर मेरे तथाकथित मित्रों में जो इस दमन से प्रसन्न हो कर माइक्रोब्लॉगिंग ठेल रहे थे, उनको चुन कर डिलीट कर दूंगा। ऐसे लोग मित्र नहीं हो सकते। बहन-बच्चों के अपमान में साडिस्ट प्लेजर लेने वाले लोग!
8. पिछले कुछ दिनों में कई ब्लॉग पोस्टें देखी हैं – बहुत सही। कण्टेण्ट – लिखित और फोटो संयोजन लाजवाब। हिन्दी ब्लॉगरी में हीहीफीफी बढ़ी होगी पर लोग पहले से कहीं बेहतर अभिव्यक्ति भी देने लगे हैं। चिठ्ठाचर्चा चला रहा होता तो लिंक-फिंक देता। फिलहाल तो अहो भाव ही व्यक्त कर रहा हूं। बाकी, सुकुल तो कर ही रहे होंगे लिंकाने का काम?!
9. बाकी, फिर कभी!
‘भुल्लर याद’ को कृपया भुल्लर यादव पढें।
और हां, रही बात ही ही फ़ीफ़ी की, तो चिट्ठा चर्चा नहीं तो ब्लागर हंसना ही भूल गए… का करी? 🙂
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बेचारी भुल्लर यादव की पतोहू का पति एक सड़क दुर्घटना से पारसल हो गया था। भुल्लर
यादयादव की पतोहू मोबाइल से बात कर रही थी…. शायद पति से !!!!LikeLike
कम से कम कपड़ा तो पहनने दीजिये –शायद यही कह रहा भैंसा|
आपके महत्वकांक्षी चन्द्रगुप्त ने चाणक्य को साथ नहीं रखा अन्यथा चक्रव्यूह में नही फंसते|
“इडियट बाक्स” से दूर रहें|
और यह भजन सुने|
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भैंसा तो मुझे बिना वारण्ट दिये जिलाबदर करने के चक्कर में था! हम तो बाबाजी की तरह अड़े नहीं। अनशन टप्प से खतम कर दिया! खुद ही अपनी कुटिया को लौट लिये! 🙂
और यह ट्वीट: Baba may be excellent with the mike, but he is poor negotiator in meetings. 😦
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अपन ने भी तय किया है …जब तक भ्रष्टाचार से लड़ने वालों के लिए नियम-कायदे, जात-पात, कपड़ों के रंग, धर्म, पार्टी, खर्चा करने की लिमिट, कमाने की लिमिट, आन्दोलन में शामिल होने वाले लोगों की संख्या आदि तय नहीं हो जाते, दिग्विजय सिंह जैसों से एनओसी नहीं मिल जाता तब तक अपन किसी भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम का समर्थन नहीं कर्नेगे.
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डिग्स जी की मानें तो हम सब ठग हैं! 🙂
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सुबह सुबह आपकी पोस्ट पढके..आनंद आ गया ..
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@संगीन अपराधों के लिए जेल में बंद मुलजिम तक राजनीति में चमकने से बाज नहीं आये तो एक योग शिक्षक ने ऐसा कर लिया तो क्या अपराध किया ..कम से कम वे जाति, धर्म ,वर्ण, संप्रदाय ,प्रान्त , भाषा के आधार पर भ्रष्टाचार का उन्मूलन करने की बात तो नहीं कर रहे हैं !
विचारों की बेतरतीबी का सौंधापन भी क्या खूब है !
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अपराधी, मुलजिम आदि से बाबा रामदेव की तुलना नहीं कर रहा हूं। शुचिता के उत्कर्ष के प्रतिमान से तुलना कर रहा हूं। और जिस तरह की मुहिम में लगे हैं वे, उसमें यह अपेक्षा अनुचित नहीं है!
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प्रश्न यह उठता है कि राजनीति चमकाता कौन नहीं. और फिर जो रैली, महारैली और रैले होते हैं वे किस श्रेणी में आयेंगे.
क्या आपको नहीं लगता कि बीस साल के नौजवान से लेकर नब्बे साल के बुजुर्ग तक जो अपने खर्च पर दिल्ली पहुंचे उनमें कोई भी अच्छा-बुरा, सही-गलत जानने की कूवत नहीं रखता.
क्या क, ख और ग दल अभी तक कुछ अच्छा सोच भी सके हैं और किया हो तो बहुत बेहतर…
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भैंस पूछती हुयी
लहलग रही है कि आपसे क्या मतलब जी।LikeLike
अभी हॉट टब में आराम कर रहा था वाईन के गिलास के साथ एक घंटा…इससे भी खतनाक विचारों के टुकड़े मंडरा रहे थे क्षितिज पर…दर्ज नहीं करेंगे..आपको पढेंगे बस..ऐसा सोचा है रामदेव की हालत देख कर. 🙂
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आप तो दर्ज करा ही दीजिये!
बाबा रामदेव तो चकाचक हैं अब। दिन में पच्चीस घण्टे प्रेस कांफ्रेंस कर रहे हैं हरदुआर में!
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“भुल्लर यादव” पसंद आया. ऐसे ही कहीं कोई “यादव शर्मा” या “यदुवंशी पाण्डेय” भी होगा.
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भुल्लर रीयल हैं, उनकी पतोहू भी रीयल है। बस, उनका नाम भुल्लर नहीं है।
बाकी, सतीश पंचम ने बताया है ही – सुन्नर पांड़े की पतोह!
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