नत्तू विवस्वान पाण्डेय इलाहाबाद आ रहे हैं। बहुत अनाउंस्ड दौरा नहीं है। उनके नाना बीमार हैं, शायद इस लिये आ रहे हैं। पर प्रधानमंत्री हैं, भावी ही सही, तो असमंजस की दशा है।

वे चम्बल एक्सप्रेस से आयेंगे धनबाद से। साथ में उनकी सेकरेट्री (उनकी मम्मी) और एक बॉडीगार्ड होंगे, बस। ऐसे में क्या किया जाये – रेलवे और रेलवे स्टेशन को खबर की जाये या नहीं? चम्बल के टाइम तक तो साफ सफाई भी नहीं होती प्लेटफॉर्म की। नत्तू जी ने औचक निरीक्षण कर लिया और भड़क गये, तब? फिर मीडिया को खबर करनी है क्या? इस विजिट पर वे उनसे मिलना चाहेंगे? यह सब उनकी सेकरेट्री से पता नहीं किया गया है। महत्वपूर्ण है यह – विभाग आवण्टन में रेलवे उन्ही के पास जो है। मुझे फिक्र नहीं कि सिविल प्रशासन क्या करेगा; मुझे सिर्फ रेलवे की फिक्र है।
मैं नत्तू पांड़े जी से फोन पर इण्टरव्यू लेता हूं।
माह – नत्तू जी आपके पास भारत में बढ़ते स्वास्थ्य खर्चे को ले कर क्या सोच है। आप अपने नाना को ही लें। पिछले एक माह की बीमारी में रेलवे उनपर एक-दो लाख खर्च कर चुकी होगी। यह खर्चा उन्हे अपनी जेब से करना होता तो…
नत्तू जी प्रश्न लपक लेते हैं। उनके आदेश पर उनकी सेकरेट्री उनके बस्ते से एक छोटी सी पिचकारी निकालती हैं।
नत्तू – छुई।
सेकरेट्री बताती हैं कि नत्तू जी के सेमी-मौन का दिन है। एक दो शब्द बोलते हैं। बस। उनका आशय है कि सब को इस पिचकारी से सुई लगा देंगे। घर में और आस पास में – यहां तक कि अपने डाक्टर संजय अंकल को भी लगा चुके हैं। छुई के बाद व्यक्ति को स्वस्थ होना ही है!
माह – आपका क्या ख्याल है; इतने दशकों बाद भी भारत में निरक्षरता है। जो साक्षर हैं, उनमें से भी कई सिर्फ आंकड़ों में हैं।
नत्तू – भींग-भींग।
उनकी सेकरेट्री फिर समझाती हैं। नत्तू जी पुस्तक आत्मसात करने के लिये उसे वैसे धोते हैं, जैसे कपड़े धोये जाये हैं – भींग भींग कर। उसके बाद साफ धुली पुस्तक दिमाग में दन्न से डाउनलोड हो जाती है। शिक्षण और ज्ञानार्जन का सबसे सरल और प्रभावी तरीका है यह।
तबियत ठीक न होने के कारण मैं लम्बा इण्टरव्यू नहीं ले पाता।
ऊपर जो लिखा वह तो हास्य है। पर एक दो मूल बातें तो हैं ही। जब मैं 2035-40 में नत्तू के इस रोल की सोचता हूं तो इतना स्पष्ट होता है – उसको, चूंकि उसके अपने बाबा श्री रवीन्द्र पाण्डेय के गिरिडीह सांसद वाली राजनीति की तकनीकें नहीं चलेंगी लम्बे समय तक; राजनीति को नये आयाम दे कर गढ़ना होगा। सत्ता बड़ी तेजी से मुद्रा, गहना, खेती, जमीन, उद्योग, मकान से होती हुई इलेक्ट्रानिक बीप में घुसती जा रही है। यह बीप चाहे बैंकों के मनी ट्रांसफर की हो या ट्विटर के सोशल मीडिया की। उसे यह खेल समझना होगा बारीकी से। उसके नाना भी अपने सिद्धांत-फिद्धांत के ख्याली सिक्के जेब में खनखनाते रहे। बिना काम के – बेकार। इसकी अनुपयोगिता और धूर्तता/चालबाजी की निरर्थकता – दोनो समझने होंगे उसे अपनी बाल्यावस्था में।
खैर, बाकी तो गोविन्द जानें कैसे गढ़ेंगे उसे!
भावी प्रधानमंत्री के नानाजी के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए शुभकामनायें।
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हमारी शुभकामनाएं…
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आपको शुभकामनाएं. समय अच्छा बीतेगा.
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दीपक चौरसिया रिपोर्टिंग फ्रॉम गैंजेस…..
जैसा कि आप देख रहे हैं कि भावी प्रधानमंत्री जी आने वाले हैं, उनकी तैयारी में पूरा घर लगा हुआ है, भावी प्रधानमंत्री के नानाजी लैपटाप घेरे बैठे हुए हैं, नानी उनसे लैपटाप दूर रख आराम करने को कह रही हैं लेकिन नाना हैं कि लगे हुए हैं कमेंट माडरेशन में 🙂
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भावी प्रधान मंत्री जी के आने की खबर से ही आपकी तबियत में भी सुधार दिख रहा है !
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भावी प्रधानमंत्री ने दोनों समस्याओं के जो हल बताए हैं, वे इतने सटीक हैं, कि भविष्य की सारी समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हैं। और वर्तमान की स्वास्थ्य संबंधी भी, लेकिन आपका दुरुस्त होना उनके आने पर ही निर्भर है… कदाचित यह उन्हें बुलाने का बहाना भी हो सकता है 🙂
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भावी प्रधानमन्त्री अपना मार्ग गढ़ लेंगे। यदि हमें उपाय ज्ञात हो तो परिस्थितियाँ अभी से ही सुधरने लगेंगी।
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स्वास्थ्य सेवा वाकई बहुत महंगी होती जा रही है। जेब में खनखनाते सिद्धांत-फिद्धांत के ख्याली सिक्के बिना काम के नहीं हैं, न कभी बेकार होने वाले| भावी प्रधानमंत्री को सफल होने के लिये अपने बाबा के साथ-साथ अपने नाना से भी बहुत कुछ सीखना पडेगा। वैसे शुरूआत के लिये अपने देश के एक तत्कालीन वृद्ध नागरिक की यह सलाह भी पढी जा सकती है।
अच्छे स्वास्थ्य के लिये आपको शुभकामनायें!
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संवाददाता की तबियत फ़टाफ़ट चकाचक होने की शुभकामनायें।
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माननीय प्रधानमंत्री महोदय {वेटिग २०३५-४०} का हार्दिक स्वागत .
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