जवाहिरलाल वापस आ गया है

जवाहिरलाल वापस आ गया है। दो महीना पहले उसे सांप ने काट खाया था। अस्पताल में भर्ती कराया गया। फिर उसके बन्धु गण आये और उसे मछलीशहर ले गये। अब वह ठीक है। कल सवेरे वह शिवकुटी के गंगाजी के घाट की सीढ़ियों के पास अपने नियमित स्थान पर बैठा पाया गया। इससे पहले कि मैं अपने सैर की वापसी में उसे देखता, मुझे जो भी रास्ते में मिला, बताता गया – जवाहिरलाल वापस आ गया है। अब ठीक ठाक है! यह मानो बैनर हेडलाइन्स वाली खबर हो शिवकुटी टाइम्स की।

घाट पर अपने नियत स्थान पर वापस बैठा जवाहिरलाल। मुंह में मुखारी है।

जवाहिरलाल मेरे ब्लॉग का एक खम्भा है। उसपर कई पोस्टें हैं –

हटु रे, नाहीं त तोरे…
मंगल और तिलंगी
देसी शराब
जवाहिरलाल बीमार है
अघोरी
गंगा तीरे बयानी
जवाहिर लाल को सर्पदंश

कल जवाहिर लाल से पूछा, क्या हुआ था?

सांप काटे रहा। एत्ता बड़ा क रहा नाग। नागिनियऊ रही। दुन्नौ काटे रहें। (सांप ने काटा था। इतना बड़ा था नाग। नागिन भी थी। दोनो ने काटा था)

जवाहिर हाथ से बताने लगा कितना बड़ा था नाग, लगभग डेढ़ हाथ का था।

जवाहिर हाथ से बताने लगा कितना बड़ा था नाग, लगभग डेढ़ हाथ का था। कोबरा के लिये तो यह लम्बाई कम है – लगता है कोई और जाति का रहा होगा सांप। उसने जो बताया उससे पता चला कि पेड़ की कोटर में मुखारी रखी थी उसने। उसे लेने के लिये हाथ डाला तो वहां बैठे नाग नागिन दोनो ने काट खाया।

मैने पूछा कि मुखारी (नीम की दातुन) वहां क्यूं रखते हो? इसपर उसने कुछ आश्चर्य से मेरी तरफ देखा – अऊर केहर रखाये? (और कहां रखी जायेगी?)

फक्कड़ी जवाहिरलाल। गंगाजी के कछार में भोर में निपटान करता है। कोटेश्वर महादेव जी के मन्दिर की नीम से दातुन तोड़ता है। अगले एक दो दिन के लिये नीम की कोटर में दातुन रख देता है और अपने नियत स्थान पर बैठ कर एक घण्टा भर मुखारी करता है। बीच बीच में कुकुर, बकरी, सूअर, पक्षियों से बातचीत भी करता जाता है।

अब वह वापस आ गया है। घाट की रौनक आ गयी है। मेरी पत्नीजी का सोचना है कि नाग-नागिन के काटे पर भी वह इस लिये बच गया कि खाद्य-अखाद्य खाने-पीने के कारण उसके रक्त में बहुत प्रतिरोधक क्षमता है। आखिर शिवजी का गण है वह – फक्कड़ी और अघोरी![1]


[1] जवाहिर लाल पर नवम्बर’2009 में लिखी अघोरी पोस्ट का अंश:

पण्डाजी ने मानो (अघोरी) शब्द लपक लिया।

“अघोरियै तो है। पहले कभी बंगाल गया था वहां का जादू सीखने। जान गया था। तान्त्रिक बन गया था । फिर किसी और बड़े तांत्रिक ने इसका गला बांध (?) दिया। अब साफ साफ नहीं बोल पाता तो वे तान्त्रिक मन्त्र स्पष्ट उच्चारित नहीं कर सकता।”

जवाहिरलाल यह स्मित मुस्कान के साथ सुन रहा था – मानो हामी भर रहा हो।

पण्डाजी ने आगे बताया – यह खटिया पर नहीं सोता। जमीन पर इधर उधर सो जाता है। कुकुर बिलार आस पास रहते हैं। एक बार तो कोई पगलाया कुकुर बहुत जगह काटा था इस को। कोई इलाज नहीं कराया। जब मन आता है जग जाता है। कभी कभी आटा सान कर इसी अलाव में बाटी सेंक लेता है। और कभी मन न हो तो पिसान को पानी में घोर (आटा पानी में घोल) यूंही निगल जाता है।

“अघोरियै तो है। आदमियों के बीच में अघोरी।”


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

32 thoughts on “जवाहिरलाल वापस आ गया है

  1. BTW…..

    जवाहिरलाल के इस तरह के जीवन को देख सोचता हूँ जवाहिरलाल को वन एंवम् पर्यावरण मंत्रालय देने हेतु प्रधानमंत्री से सिफारिश करूं। उस पर बात न बने तो स्वास्थ्य विभाग ही दे दिया जाय।

    यदि वहां भी दलगत राजनीति के तहत न दे सकें तो आबकारी और औषधि विभाग तो दिया ही जा सकता है। आखिर वो जवाहिर लाल ही हैं जिन्होंने अपने घावों पर शराब उड़ेलकर उसे ठीक किया था, दो विपरीत प्रकृति के विभागों के संयुग्मन से चिकित्सा क्षेत्र में एक नई क्रांति लाई थी :)

    ई ससुरे नोबल पुरस्कार वाले न जाने कहां मर गए…..

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    1. वाह, जवाहिर को कहें कि हम उसे नोबेल प्राइज़ के लिये नामित कर रहे हैं, तो जाने क्या बोले वह! :lol:

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      1. कुछ कुछ रागदरबारी के उसी दृश्य की तरह जिसमें सनिचरा को वैद्यजी जब ग्राम प्रधान बनने का ऑफर देते हैं और सनिचरा मगन हो कहता है –

        सिरीमान जी जब कह रहे हैं तो सहिये होगा :)

        बाकि तो ग्राम प्रधानी आज के जमाने में किसी नोबल प्राइज से कम थोड़े है :)

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        1. मेरे साले जी ग्राम प्रधान हैं, अब एमेले बनने की जुगाड़ में हैं। माने एमेले नोबल प्राइज़ से बड़ी चीज है! :-)

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  2. जवाहिर लाल को पुन: स्वस्थ देख बहुत अच्छा लगा। अब कुछ और रोचकता आएगी गंगा रिपोर्टिंग में।

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  3. मन प्रसन्न हो गया, जवाहिर लाल के नए चित्र देख कर। वह भोजन कहाँ से? कैसे जुटाता है? यह जानने की जिज्ञासा है। जवाहिर के अपने जीवन के कुछ साहसिक कारनामे भी अवश्य रहे होंगे। मौका लगे तो उस से जानकर बताएँ। उन्हें जानने की भी जिज्ञासा है।

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    1. जैसे जैसे पता चलेगा, ब्लॉग पर प्रस्तुत करूंगा। उसके सिवाय लिखने को है भी क्या मेरे पास! :-)

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    1. उनका स्वास्थ्य रिपोर्ट करने के लिये हमारा स्वास्थ्य भी चहुचक रहना जरूरी है!

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  4. वेलकम बेक जवाहिर लाल जी …बड़ा समय रह गए मछली शहर में..जब आप का मूड हो
    तो जरा वहा के बारे में बतियेगा | नोट करने वाली बात ..जवाहिर भाई के बाल करीब करीब
    एकदम काले है ..बिना किसी कलर के.. जवाहिर भाई पर निरंतर शोध जारी रखने की नितांत
    अवयस्कता है | हम सब पाठक गन की तरफ से एक बार पुनः अभिनन्दन …उम्मीद है कुकुर
    बकरी और अन्य मित्र भी प्रफुलीत होंगे ….लॉन्ग लाइव जवाहिर लाल ….

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      1. बालों के नीचे जो ग्रे-मैटर है, उसका हम घणा दुरुपयोग करते हैं। इस लिये बाल या तो गायब हो जाते हैं या सफेद! :-)

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  5. जवाहिरलाल मछलीशहरी की वापसी का स्वागत है। आदमी तो जीवटवाला ही है। सदा ज़मीन पर सोना तो फिर भी समझा जा सकता है परंतु कुत्तों और सांपों से काटा जाना, दद्दा रे, कुछ तो विशेष है (शायद सर्प विषहीन और कुत्ते रेबीज़-हीन रहे हों)

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