पुला पर रेलगाड़ी

कन्धे पर बच्चा और नेपथ्य में फाफामऊ पुल।

छोटा सा बच्चा अपने अभिभावक के साथ गंगा किनारे खड़ा था और नदी की गतिविधियों पर तरह तरह के सवाल पूछ रहा था। अवधी-भोजपुरी में बात कर रहा था। बहुत मीठी आवाज थी उसकी। नाव, चिड़ियाँ, किनारे की खेती आदि के बारे में प्रश्न कर रहा था और अभिभावक बहुत प्रेम से उत्तर दे रहा था।

इतने में फाफामऊ पुल पर ट्रेन आने की आवाज हुई। अभिभावक ने कहा – देखअ, गाड़ी आवत बा।

केहर?

पुला पर।

बच्चे को पुल नहीं दिखा साफ साफ। अभिभावक ने उसे कन्धे पर उठा कर दिखाया। गाड़ी देखते ही उसके बारे में बहुत सवाल प्रारम्भ हो गये उस बच्चे के। गाड़ी कहां जा ता (फैजाबाद, बस्ती); कब पंहुचे (कुछ देर बाद, दुपहरिया में); घरे जाये (जाये, तोहके बईठाइ देयी?); गाड़ी बहुत बड़ी बा (हां, पसीजड न होई)।

बच्चा प्रसन्न हो गया गाड़ी देख कर। वापसी में फुदकता पैदल आ रहा था। उसकी पैण्ट सरक रही थी। बार बार उसे खींच कर ठीक कर रहा था। मैने उससे नाम पूछा तो बताया – ओम, ओम नम: शिवाय। फिर एक ही सांस में अपने भाई बहन और कुनबे के लोगों के नाम भी बताने लगा। गांव का नाम भी बताया – भलुहा। अभिभावक ने स्पष्ट किया कि सिद्धार्थ नगर में गांव है। उसके बारे में बता रहा है।

अब पुल से उसका परिचय हो गया था। उसकी तरफ देखते हुये बोला – पुला बहुत बड़ा बा। रेलगडियऊ बहुत बड़ी रही।

रेल, नाव, पुल, नदी का तिलस्म बहुत होता है। मुझ अधेड़ को भी मैस्मराइज करता है तो बच्चे को तो करता ही है।  

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फाफामऊ पुल

इलाहाबाद के उत्तर में गंगानदी के उस पार है फाफामऊ। फाफामऊ को इलाहाबाद से जोडते हुये पहले एक रेल-कम-रोड पुल था। वह अभी भी है, जिसपर हल्के वाहन आते जाते हैं। इस पुल के एक तरफ रेल का नया पुल और दूसरी तरफ रोड का नया पुल बन गये हैं। नीचे के चित्र में रोड के नये पुल से फोटो खींचा गया है। बीच में रेल-रोड का पुराना पुल है और उसके पार रेल का नया पुल।

यह फाफामऊ के रोड के नये पुल से खींचा गया चित्र है। बीच में गंगा नदी पर रेल-रोड का पुराना पुल है और उसके पार रेल का नया पुल। दाईं ओर इलाहाबाद है और बाईं ओर फाफामऊ।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

19 thoughts on “पुला पर रेलगाड़ी

  1. कभी बच्चों की सी यह जिज्ञासा अपनी भी थी ……पर अब उनका प्रकार बदल गया है ! कल ही ब्लॉगर विजेंद्र एस० विज से कितने तो सवाल कर डाले ….थे !

    जिज्ञासा का सामना करने वाले पिता के साहस की भी तारीफ़ करनी ही चाहिए !

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  2. बचपन का कौतुहल और प्रश्न पूछना बडा अच्छा लगता है… कितने भोले और मासूम प्रश्न … पर कभी कभी उनका उत्तर देना भी कठिन हो जाता है, ठीक उसी तरह जैसे किसी गणित के प्रोफ़ेसर से दूसरी कक्षा का प्रश्न पूछने पर असमंजस में पड जाता है। आज फ़ाफ़ामऊ की जानकारी पहली बार मिली और कई प्रश्न जागे उसी बालक की तरह! ओम नमः शिवायः॥

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  3. बपचन में जब रेलगाड़ी को सामने से जाते हुये देखते थे तो साँस रुक सी जाती थी, आकार व गति, आवाज सहित, बस इतना ही पर्याप्त है…

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  4. कई बार आपकी पोस्ट्स में फाफामाउ पुल का उल्लेख होता है. इसका नाम बड़ा अजीब है, क्या कोई जगह है या फिर उस नदी का नाम है जिस पर यह स्थित है !!

    बच्चों की जिज्ञासाएं खत्म नहीं होती और एक उम्र में एकदम से खत्म हो जाती हैं :(

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    1. मऊ या महू शब्द कई स्थानों से जुड़ा है। मेरे ख्याल से यह मिलिटरी छावनी से सम्बन्धित है – Military House Of War (MHOW) या ऐसा कोई शब्द। इलाहाबाद में गंगा के उसपार यह स्थान है फाफामऊ। उसके पास एक पुरानी हवाई पट्टी भी है। यह मिलिटरी के काम आती थी/है।

      शायद फाफमऊ नाम उससे कुछ सम्बन्धित हो। फाफामऊ एक रेलवे जंक्शन है।

      वैसे इस पन्ने पर फाफामऊ स्थान का उल्लेख है और बात सन 1494 की हो रही है – http://bit.ly/we31YM
      अत: मेरा उक्त Mhow का कयास गलत भी हो सकता है।

      पुल के बारे में मैने अपडेट पोस्ट में डाल दिया है।

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  5. बच्चों का मनोविज्ञान समझने के लिए, बच्चों की तरह सोचना या उन सा हो जाना होता है.
    भूल जाना होता है बड़े होने के एहसास को.

    हम भी सिद्धार्थ नगर के ही है, पर भलुहा नहीं सुना कहाँ है.
    वैसे आपके पोस्ट पर ‘ सिद्धार्थ नगर ‘ पढ़कर अच्छा लगा.

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      1. नहीं ऐसा नहीं है, मेरा ही सामान्य ज्ञान कमजोर है.
        बस मैं बता रहा था की भलुहा नहीं सुना कहाँ है.

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  6. @Gyan Dutt Pandeyji…

    Even I am quite fascinated by the amazing landscape that forms the backdrop of Rail Bridges. When I was on way to Varanasi, the experiences that I had as I crossed the Jhunsi Bridge left an indelible impression on my mind’s landscape. It’s beauty is as breathtaking as Phaphamau’s bridge.

    In this article a pic, borrowed from the net, is enough to let anybody have an interaction with the beauty of this bridge. To feel it better just enlarge it and then view again.

    http://indowaves.wordpress.com/2010/11/07/from-kashi-with-bliss/

    -Arvind K.Pandey

    http://indowaves.wordpress.com/

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