
बैंगळूरु से वापस आते समय सेवाग्राम स्टेशन पर ट्रेन रुकी थी। सेवाग्राम में बापू/विनोबा का आश्रम है। यहां चढ़ने उतरने वाले कम ही थे। लगभग नगण्य़। पर ट्रेन जैसे ही प्लेटफॉर्म पर आने लगी, पकौड़ा[1] बेचने वाले ट्रेन की ओर दौड़ लगाने लगे। सामान्यत वे अपने अपने डिब्बों के रुकने के स्थान को चिन्हित कर बेचने के लिये खड़े रहते हैं, पर लगता है इस गाड़ी का यहां ठहराव नियत नहीं, आकस्मिक था। सो उन्हे दौड़ लगानी पड़ी।
पिछली बार मैं जुलाई’2011 के अंत में सेवाग्राम से गुजरा था। उस समय भी एक पोस्ट लिखी थी – सेवाग्राम का प्लेटफार्म
सेवाग्राम की विशेष गरिमा के अनुरूप स्टेशन बहुत साफ सुथरा था। प्लेटफार्म पर सफाई कर्मी भी दिखे। सामान्यत अगर यह सूचित करना होता है कि “फलाने दर्शनीय स्थल के लिये आप यहां उतरें” तो एक सामान्य सा बोर्ड लगा रहता है स्टेशनों पर। पर सेवाग्राम में गांधीजी के केरीकेचर वाले ग्लो-साइन बोर्ड लगे थे – “सेवाग्राम आश्रम के लिये यहां उतरीये।”
स्टेशन के मुख्य द्वार पर किसी कलाकार की भित्ति कलाकृति भी बनी थी – जिसमें बापू, आश्रम और सर्वधर्म समभाव के आदर्श स्पष्ट हो रहे थे।
अच्छा स्टेशन था सेवाग्राम। ट्रेन लगभग 5-7 मिनट वहां रुकी थी।
सेवाग्राम वर्धा से 8 किलोमीटर पूर्व में है। यहां सेठ जमनालाल बजाज ने लगभग 300एकड़ जमीन आश्रम के लिये दी थी। उस समय यहां लगभग 1000 लोग रहते थे, जब बापू ने यहां आश्रम बनाया।
तीस अप्रेल 1936 की सुबह बापू यहां आये थे। शुरू में वे कस्तूरबा के साथ अकेले यहां रहना चाहते थे, पर कालांतर में आश्रम में साबरमती की तर्ज पर और लोग जुड़ते गये। बापू ने जाति व्यवस्था के बन्धन तोड़ने के लिये कुछ हरिजनों को आश्रम की रसोई में खाना बनाने के लिये भी रखा था।
इस गांव का नाम शेगांव था। पर उनकी चिठ्ठियां शेगांव (संत गजानन महाराज के स्थान) चली जाया करती थीं। अत: 1940 में इस जगह का नाम उन्होने सेवाग्राम रख दिया।
यहीं पर विनोबा भावे का परम धाम आश्रम धाम नदी के तट पर है।
सेवाग्राम के मुख्य गांव से लगभग 6 किलोमीटर दूर है सेवाग्राम स्टेशन। पहले यह वर्धा पूर्व स्टेशन हुआ करता था।
[1] यह बताया गया कि यहां का पत्तागोभी का पकौड़ा/बड़ा प्रसिद्ध है।
पिछली पोस्ट पर श्री मनोज कुमार जी ने सेवाग्राम के इतिहास को ले कर एक विस्तृत टिप्पणी की है। आप शायद देखना चाहें। उस पोस्ट पर श्री विवेक रस्तोगी और श्री राहुल सिंह ने जिज्ञासायें व्यक्त की हैं; उनके उत्तर शायद इस पोस्ट में मिल सकें।

यकीन नहीं होता के ये भारतीय रेलवे स्टेशन है…इतना साफ़…हद हो गयी…कमाल का वर्णन.
नीरज
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bahut saari baaton ki jaan kari aapke is post par aakar hui –sar—–bahut bahut hi achha laga aur usse bhi achha aapke mere blog par aakar mujhe protsahit karna ye mere liye garv ki baat hai—
sadar naman
poonam
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सेवाग्राम और पवनार आश्रम जाने का अवसर मिला है। प्लेटफार्म तो ‘होनहार बिरवान’ के ‘चीकने पात’ है। वहॉं जाने का अपना आनन्द है।
उम्मीद है, सेवाग्राम की मेरी अगली यात्रा आपकी किसी ऐसी ही सार्थक पोस्ट के जरिए ही होगी।
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आपको पढ़ के हम भी आतंकित नहीं होते , कोहड़ा की बरी भी स्वादिष्ट होती है . कभी इस पर लिखें .
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एक पुरानी पोस्ट है इस बारेमें – कोंहड़ौरी (वड़ी) बनाने का अनुष्ठान – एक उत्सव
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मेरे लिए तो यह प्रथम यात्रा है सेवाग्राम की.. और सचमुच यह यात्रा भी आनंददायक रही!!
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सेवाग्राम पर पुनश्चर्या से मन आनंदित हुआ
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बहुत अच्छा लगा. हमारा इस स्टेशन से कई बार गुजरना हुआ है और होता ही रहेगा. एनी टिप्पणियों को पढ़कर ज्ञान वृद्धि भी हुई. आभार.
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स्टेशन की सफाई वास्तव में ही देखते ही बन रही है. दूसरी तरफ़, नई दिल्ली का स्टेशन (जैसा मुझे याद है) हुआ करता था, आठ नंबर से रेल जानी हो तो वहां जाने की सोच कर ही घिन आती थी..
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बहुत सुन चुका हूँ इस जगह के बारे में पर वहाँ जाने का अवसर कभी नहीं मिला।
स्टेशन की सफ़ाई देखकर प्रभावित हूँ।
मनोज कुमारजी की टिप्पणी ध्यान से पढा। सूचना के लिए उनको मेरा धन्यवाद्।
मैं नहीं जानता आपको टॉप ब्लॉग्गर कहूँ या नहीं पर आप अवश्य हमारे लिए एक “प्रिय” ब्लॉग्गर है।
ब्लॉग जगत में आप इतने सालों से डटे रहे हैं यही क्या कम है?
staying power, regularity, variety और simplicity के लिए हम आपको top marks देंगे।
आपके लेखों से हम कभी आतंकित नहीं होते।
आपका ब्लॉग “information rich” है
अनावश्यक विवादों से आप जूझते नहीं।
यहाँ आना हमें अच्छा लगता है और आपके जरिए ही हमने हिन्दी ब्लॉग जगत में कई रिश्ते जोडे।
लिखते रहिए।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
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रेग्यूलॉरिटी के लिये आपकी अतिथि पोस्टों का सहारा हुआ करता था। आजकल वह मिल नहीं रहा है! :-(
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अरे यह मैंने क्या कर दिया!
अपने ही जाल में अपने आप को फ़ँसा लिया।
ठीक है साहबजी, कुछ लिख भेजेंगे आपको।
थोडा समय दीजिए। अभी तो सोचा भी नहीं क्या लिखूँ।
हमें तो कोई विषय चाहिए!
आप तो इसमे माहिर हैं।
जब विषय न हो तो आलू और मक्खी पर भी पोस्ट तैयार करते हैं
यह एक और कारण है जो हमें यहाँ खींच लाता है।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
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