महाशिवरात्रि की भीड़

कोटेश्वर महादेव मन्दिर। इसका डोम एक नेपाली मन्दिर सा लगता है।

हर हर हर हर महादेव!

कोटेश्वर महादेव का मन्दिर पौराणिक है और वर्तमान मन्दिर भी पर्याप्त पुराना है। शिवकुटी में गंगा किनारे इस मन्दिर की मान्यता है कि भगवान राम ने यहां कोटि कोटि शिवलिंग बना कर शिवपूजन किया था। पास में है शिवजी की कचहरी, जहां अनेकानेक शिवलिंग हैं।

यहां मुख्य शिवलिंग के पीछे जो देवी जी की प्रतिमा है, उनकी बहुत मान्यता है। नेपाल के पद्मजंगबहादुर राणा जब वहां का प्रधानमंत्रित्व छोड़ कर निर्वासित हो यहां शिवकुटी, इलाहाबाद में रहने लगे (सन 1888) तब ये देवी उनकी आराध्य देवी थीं – ऐसा मुझे बताया गया है। पद्मजंगबहादुर राणाजी के 14 पुत्र और अनेक पुत्रियां थीं। उसके बाद उनका परिवार कई स्थानों पर रहा। उसी परम्परा की एक रानी अब अवतरित हो कर शिव जी की कचहरी पर मालिकाना हक जता रही हैं। … शिव कृपा!

उसी शिव मन्दिर, कोटेश्वर महादेव पर आज (20 फरवरी को) महाशिवरात्रि का पर्व मनाया गया। सामान्यत: शांत रहने वाला यह स्थान आज भीड़ से अंटा पड़ा था। लोग गंगा स्नान कर आ रहे थे। साथ में गंगाजल लेते आ रहे थे। वह गंगाजल, बिल्वपत्र, धतूरा के फूल, गेन्दा, दूध, दही, गुड़, चीनी — सब भोलेनाथ के शिवलिंग पर उंडेला जा रहा था।

मेरी और मेरे परिवार की मान्यता है कि इस भीषण पूजा से घबरा कर महादेव जी जरूर भाग खड़े होते होंगे और पास के नीम के वृक्ष की डाल पर बैठे यह कर्मकाण्ड ऐज अ थर्ड पर्सन देखते होंगे। देवी भवानी को भी अपने साथ पेड़ पर ले जाते होंगे, यह पक्का नहीं है; चूंकि भवानी के साथ कोई पूजात्मक ज्यादती होती हो, ऐसा नहीं लगता!

कोई भी आराध्य देव अपने भक्तों की ऐसी चिरकुट पूजा कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? फेसबुक पर हर हर महादेव के लिये एक सिम्पैथी कैम्पेन चलाने का मन होता है।

खैर! गंगा स्नान कर आते मैने एक बन्दे को चार जरीकेन गंगाजल लाते देखा – अगर वह सारा शिवलिंग पर उंडेलने जा रहा हो तो कोटेश्वर महादेव को शर्तिया जुकाम दे बैठेगा।

मदिर के बाहर तरह तरह की दुकाने लगी थीं। दोने में पूजा सामग्री – बिल्वपत्र, गेन्दा, गेहूं की बाल, छोटे साइज का बेल और धतूरा – रखे बेचने वाला बैठा था। सांप ले कर संपेरा विद्यमान था। एक औरत आलू दम बेचने के लिये जमीन पर पतीला-परात और दोने लिये थी। ठेलों पर रामदाने और मूंगफली की पट्टी, पेठा, बेर, मकोय (रैस्पबेरी) आदि बिक रहा था। मन्दिर में तो तिल धरने की भी जगह नहीं थी।

मेरी पत्नीजी का कहना है कि नीम के पेड़ से शिवजी देर रात ही वापस लौटते होंगे अपनी प्रतिमा में। कोई रुद्र, कोई गण आ कर उन्हे बताता होगा – चलअ भगवान जी, अब एन्हन क बुखार उतरा बा, अब मन्दिर में रहब सेफ बा (चलें भगवान जी, अब उन सबका पूजा करने का बुखार शांत हुआ है और अब मन्दिर में जाना सुरक्षित है! :lol: )|

[हिन्दू धर्म में यही बात मुझे बहुत प्रिय लगती है कि आप अपने आराध्य देव के साथ इस तरह की चुहुलबाजी करने के लिये स्वतंत्र हैं!]

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

29 thoughts on “महाशिवरात्रि की भीड़

    1. आप बहुत वाजिब कहते हैं – राजनीति के पंक और असहायता के बावजूद यह धार्मिक खुलापन एक सम्बल है जीने का!

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  1. प्रभु की स्मरण शक्ति पर भी कितना जोर पड़ता होगा…उन्हें याद रखना पड़ता होगा के किसने क्या चढ़ावा दिया, चढ़ावे के लिए जो राशी खर्च की गयी उसमें एक नम्बर वाली कितनी थी और दो नम्बर वाली कितनी, चढ़ावे के पीछे भावना क्या थी? प्रत्युतर में भक्त क्या चाहता था, उसकी चाहत में सच्चाई कितनी थी, उसकी मांग पूरी की जाय या नहीं…ऐसे और कितने ही प्रश्न हर व्यक्ति को लेकर प्रभु के मन में आते होंगे…उनका उत्तर खोजा जाता होगा और फिर उसे कार्यान्वित किया जाता होगा…इतनी विशालकाय भीड़ एक जगह नहीं देश भर में हजारों जगह जुटती होगी…हर भक्त का इतना विश्लेषण करने के लिए प्रभु कौनसा यंत्र प्रयोग में लेते हैं मुझे ये जानने की उत्सुकता है…क्या वो अकेले ही ये सारा काम देखते हैं या उन्होंने किसी को इस काम के लिए नियुक्त किया है…अगर किया है तो किसे? क्या एक ही को नियुक्त किया है या अनेक इस काम में लगे हुए हैं ??? मेरे मन में ये जो प्रश्न आ रहे हैं उनसे मैं ही परेशान हो रहा हूँ तो प्रभु का क्या हाल होता होगा…हे भक्त जनों प्रभु पर रहम खाओ…

    नीरज

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    1. समस्या एक ही है कि हम उस बुद्धि से जन्मे और बुद्धि के माध्यम से उसके बारे में सवालों से जूझते हैं, जिस बुद्धि को उसने बनाया है।

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  2. हम तो गुड़ की पट्टी देख कर पूरी पोस्ट भूल बैठे, घर जाकर भोलेबाबा पार्वती मैया को बोलते होंगे, उफ्फ ये भक्त..

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  3. शिवरात्रि के ‘दिन’ मैं अपने गाँव से वापसी यात्रा कर रहा था। रास्तेभर इस तरह की भीड़ दिखती रही। एक स्थान पर तो भयंकर ‘शिवचर्चा’ हो रही थी। आज उसकी चर्चा अपने ब्लॉग पर करने की कोशिश करूंगा।

    आपकी त्वरित पोस्टकारिता ईर्ष्यालु बनाती है।:)

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  4. कोई भगवान ही हर किसी की हर तरह की पूजा झेल सकते हैं।
    हर हर महादेव..

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