मेरे दफ्तर में कॉरीडोर में बैठा मोनू आज कुर्सियाँ बुन रहा है। पुरानी प्लास्टिक के तार की बुनी कुर्सियों की फिर से बुनाई कर रहा है।
बताता है कि एक कुर्सी बुनने में दो घण्टे लगते हैं। एक घण्टे में सीट की बुनाई और एक घण्टे में बैक की। दिन भर में तीन से चार कुर्सियां बुन लेता है। एक कुर्सी पर मिलते हैं उसे 200 रुपये और सामान लगता है 80 रुपये का। अर्थात लगभग 500 रुपये प्रतिदिन की कमाई! रोज काम मिलता है? मैं जानने के लिये मोनू से ही पूछ लेता हूं।
हां, काम मिलने में दिक्कत नहीं। छौनी (मिलिटरी केण्टोनमेण्ट – छावनी) में हमेशा काम मिलता रहता है।
मुझे नहीं मालुम था कि मिलिटरी वाले इतनी कुर्सियां तोड़ते हैं। 😆
बहरहाल मोनू का काम देखना और उससे अपडेट लेना अच्छा लग रहा है। कॉरीडोर में आते जाते वह काम करते दिख ही जा रहा है!

बढिया फोटू है! कुर्सियां तोड़ने में कौन सा अलंकार है ?
LikeLike
वाह! हिन्दी का ब्लॉग शिरोमणि, हिन्दी के पहली दर्जे के इस्टूडेण्ट से पूछता है कि अलंकार कौन सा है!
हमको क्या मालुम?!
LikeLike
kamgar-karigar ko 500-1000 roj ke hone hi chahiyen……..
pranam.
LikeLike