कल शाम गंगाजी के किनारे गया था। एक स्त्री घाट से प्लास्टिक की बोतल में पानी भर कर वापस लौटने वाली थी। उसने किनारे पर एक दीपक जलाया था। साथ में दो अगरबत्तियां भी। अगरबत्तियां अच्छी थीं, और काफी सुगंध आ रही थी उनसे। सूरज डूब चुके थे। घाट पर हवा से उठने वाली लहरें किनारे से टकरा कर लौट रही थीं। बांई ओर धुंधलके में दूर एक नाव हिचकोले खा रही थी। किनारे पर बंधी थी लंगर से।
बहुत लोग नहीं थे। दूर रेत के एक छोटे से टुकड़े पर वॉलीबाल खेल कर लड़के और नौजवान घर की ओर जा रहे थे। घाट और आसपास के किनारे से रेत सूखने लगी है। दस पंद्रह दिन में रेत में घूमना आसान हो जायेगा। अक्तूबर के पहले सप्ताह में सवेरे का भ्रमण नियमित हो जायेगा। बारिश हुये तीन दिन हो गये। अब दिन में तेज धूप होती है।
लगता है बरसात का उत्तरार्ध भी बीत गया है।

किनारे पर अब गतिविधियां होंगीं। गंगाजी की यह विशाल जलराशि तेजी से घटने लगेगी। लोग गंगाजी के पीछे हटते ही अपनी अपनी जमीन के चिन्ह लगाने लगेंगे। ऊंट और ट्रेक्टरों से खाद आने लगेगी गंगाजी द्वारा छोड़ी जमीन पर। उसके साथ ही सब्जियों की बुआई प्रारम्भ हो जायेगी। दीपावली तक तो बहुत बुआई हो चुकी होगी। कार्तिक बीतते बीतते सब्जियां लहलहाने लगेंगी!
विदा बरसात के मौसम। आगे इस तट के रंगमंच पर बहुत कुछ घटने जा रहा है। और इस साल तो कुम्भ का महापर्व भी होगा न प्रयागराज में!

पोस्ट का पूर्वार्ध – एक पेंटिंग की तरह
पोस्ट का उत्तरार्ध – हॉलमार्क
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:-) धन्यवाद!
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इस पोस्ट के शब्द और चित्र दोनो से सुख की अनुभूति होती है।
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खेतों में या खेतों के आसपास खुले में तेल और साबुन की महक बड़ी जल्दी फैलती है, और फिर अगरबत्ती हो तो क्या कहने.
चित्रमय विवरण बहुत अच्छा लगा.
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तो फिर अपन कुंभ की लाइव रिपोर्ट्स यहीं पढ़ने आएंगे। डन।
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कोलकाता में तो विश्वकर्मा पूजा के साथ ही दुर्गापूजामय वातावरण हो चला है। साथ ही बरसात भी जारी है।
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इस कुम्भ को आप के ब्लॉग के ‘थ्रू’ जानने की इच्छा है! आशा है इस आने वाले कुम्भ वर्ष में आप कुछ विशेष आयोजन करेंगे हलचल.ओ आर जी पर !
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ओह, आपने तो एक काम उढ़ा दिया मुझे! :lol:
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:)
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गंगा ने पुनः स्वयं को जल से भर लिया है, कुम्भ में पाप धोने के लिये।
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आदमी ने भी कमर कस ली है – पाप का फ्रेश लॉट मार्केट में निकालने को! :-)
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जीवन क्रम.
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प्रकृति क्रम भी।
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हाँ जी, बीत ही चला है वर्षा ऋतु का उत्तरार्ध, 29 सितम्बर को पूर्णमासी है। फिर आश्विन मास आरंभ होगा और उसी के साथ शरद ऋतु आरंभ हो जाएगी। आश्विन और कार्तिक माह शरद ऋतु के होंगे।
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गलती हुई, पूर्णमासी 30 सितंबर को है उसी दिन से शरद ऋतु का आरंभ होगा और श्राद्ध पक्ष का भी।
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अक्तूबर के पहले पखवाड़े में पण्डाजी बहुत व्यस्त रहेंगे। श्राद्ध पक्ष के कारण! :-)
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फिर उसके बाद ? :)
ब्रजमंडल में कनागत और श्राद्ध को लेकर दो तीन मुहावरे प्रचलित हैं, याद आती है तो चेहरे पर जबरन मुस्कराहट आ जाती है| कुछ पहले का समाज इतना भी असहिष्णु नहीं था जितना उसका हाईप क्रियेट किया गया है|
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चित्र बहुत आलौकिक लग रहा है बल्कि खुशबू भी आ रही है, रंगमंच पर कार्यक्रम शुरू होने से पहले सरस्वती वन्दना के समय जैसा अनुभव|
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हां, मुझे भी उस समय अच्छा लगा था!
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सार्थक टीप.
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