ब्लॉग की प्रासंगिकता बनाम अभिव्यक्ति की भंगुरता

ज्ञानदत्त पाण्डेय
ज्ञानदत्त पाण्डेय

पिछले कुछ अर्से से मैं फेसबुक और ट्विटर पर ज्यादा समय दे रहा हूं। सवेरे की सैर के बाद मेरे पास कुछ चित्र और कुछ अवलोकन होते हैं, जिन्हे स्मार्टफोन पर 140 करेक्टर की सीमा रखते हुये बफर एप्प में स्टोर कर देता हूं। इसके अलावा दफ्तर आते जाते कुछ अवलोकन होते हैं और जो कुछ देखता हूं, चलती कार से उनका चित्र लेने का प्रयास करता हूं। अब हाथ सध गया है तो चित्र 60-70% मामलों में ठीक ठाक आ जाते हैं चलती कार से। चालीस मिनट की कम्यूटिंग के दौरान उन्हे भी बफर में डाल देता हूं।

बफर उन्हे समय समय पर पब्लिश करता रहता है फेसबुक और ट्विटर पर। समय मिलने पर मैं प्रतिक्रियायें देख लेता हूं फेसबुक/ट्विटर पर और उत्तर देने की आवश्यकता होने पर वह करता हूं। इसी में औरों की ट्वीट्स और फेसबुक स्टेटस पढ़ना – टिपेरना भी हो जाता है।

इस सब में ब्लॉगजगत की बजाय कम समय लगता है। इण्टरनेट पर पेज भी कम क्लिक करने होते हैं।

चूंकि मैं पेशेवर लेखक/फोटोग्राफर या मीडिया/सोशल मीडिया पण्डित नहीं हूं, यह सिस्टम ठीक ठीक ही काम कर रहा है।

यदाकदा ब्लॉग पोस्ट भी लिख देता हूं। पर उसमें प्रतिबद्धता कम हो गयी है। उसमें कई व्यक्तिगत कारण हैं; पर सबसे महत्वपूर्ण कारण शायद यह है कि ब्लॉगिंग एक तरह का अनुशासन मांगती है। पढ़ने-लिखने और देखने सोचने का अनुशासन। उतना अनुशासित मैं आजकल स्वयम को कर नहीं पा रहा। छोटे 140 करेक्टर्स का पैकेट कम अनुशासन मांगता है; वह हो जा रहा है।

पर यह भी महसूस हो रहा है कि लेखन या पत्रकारिता या वैसा ही कुछ मेरा व्यवसाय होता जिसमें कुर्सी पर बैठ लम्बे समय तक मुझे लिखना-पढ़ना होता तो फुटकरिया अभिव्यक्ति के लिये फेसबुक या ट्विटर सही माध्यम होता। पर जब मेरा काम मालगाड़ी परिचालन है और जो अभिव्यक्ति का संतोष तो नहीं ही देता; तब फेसबुक/ट्विटर पर लम्बे समय तक अरुझे रहने से अभिव्यक्ति भंगुर होने लगती है।

अभिव्यक्ति की भंगुरता महसूस हो रही है।

मैं सोचता हूं ब्लॉगिंग में कुछ प्रॉजेक्ट लिये जायें। मसलन इलाहाबाद के वृक्षों पर ब्लॉग-पोस्टें लिखी जा सकती हैं। पर उसके लिये एक प्रकार के अनुशासन की आवश्यकता है। उसके अलावा ब्लॉगजगत में सम्प्रेषण में ऊष्मा लाने के लिये भी यत्न चाहिये। …. ऐसे में मेरे व्यक्तित्व का एक अंश रुग्णता/अशक्तता को आगे करने लगता है! कुछ हद तक कामचोर मैं! :lol:

शायद ऐसा ही चले। शायद बदलाव हो। शायद…

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

12 thoughts on “ब्लॉग की प्रासंगिकता बनाम अभिव्यक्ति की भंगुरता

  1. आपकी सोच से पूर्णतः सहमत। विशेषतः गंभीर विश्लेषण और संस्मरण आदि के लिए निश्चय ही ब्लॉग बेहतर माध्यम है। साथ ही ट्विटर और फेसबुक की तरह यहाँ लिखा अल्पजीवी नहीं है। देखिए, मैं घूमता हुआ आपकी पुरानी पोस्ट पर आ गया। फेसबुक पर आम तौर पर ऐसा भला कहाँ होता है?

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