अशोक कुमार, फ़िल्मिस्तान स्टूडियो और लल्लू बाबू

Photo0040_001लल्लू बाबू मैट्रिक की परीक्षा देने के बाद फ़िल्म इण्डस्ट्री में भी हाथ आजमा कर आ चुके हैं।

लल्लू बाबू यानी श्री विपिन बिहारी उपाध्याय। उनकी सबसे छोटी बिटिया और मेरी बिटिया जेठानी-देवरानी हैं। उनकी सबसे बड़ी बिटिया मेरे सबसे बड़े साले साहब की पत्नी हैं। एक अन्य बिटिया के पति मेरे फेसबुक के मित्र श्री प्रवीण दुबे उज्जैन में चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट्स हैं। अत: हम दोनो का बहुत घनिष्ठ और रोचक रिश्ता है।

लल्लू बाबू और मैं एक रिश्ते की तलाश के लगभग फाइनल चरण के लिये घर के बड़े-बुजुर्ग की भूमिका में जा रहे थे। करीब साढ़े चार घण्टे का सड़क से रास्ता। सो उनसे बहुत बातचीत हुयी। उनके जीवन के अनेक पक्षों का पता चला मुझे। उस बातचीत में लल्लू बाबू का सफल व्यक्ति होना और उनकी मनमौजियत; साफ साफ जाहिर हुये।

बात बात में पता चला कि वे अपनी जवानी के दिनों में बम्बई जा कर फिल्म इण्डस्ट्री में जोर अजमाईश भी कर चुके हैं।

अच्छा, वहां कैसे पंहुच गये?

सन 1951 की बात है। मैने मैट्रिक का इम्तिहान दिया था। दरभंगा में रह कर पढ़ाई कर रहा था अपने जीजा जी के पास। वे कॉलेज में प्रोफेसर थे। जिनके घर में हम रहते थे वो किसी बंगाली का था। बी.सी. चटर्जी। उनके घर में आना जाना था। उनके लड़के भी हम उम्र थे। मकान मलिकिन अपने को अशोक कुमार की बहिन बताती थीं। अशोक कुमार की चचेरी बहिन थीं।

इम्तिहान हो चुके थे। मेरा मन बम्बई घूमने का था। मकान मलिकिन जी को मैने आग्रह किया कि एक चिठ्ठी दे दें अशोक कुमार के नाम। उन्होने बंगला में चिठ्ठी लिख कर दे दी। चिठ्ठी ले कर मैं बम्बई पंहुच गया। स्टेशन के क्लॉक रूम में अपना सामान रखा और अशोक कुमार से मिलने निकल गया।

यात्रा के दौरान देखते बतियाते लल्लू बाबू।
यात्रा के दौरान देखते बतियाते लल्लू बाबू।

जुहू में रहते थे अशोक कुमार। दोमंजिला बंगला था। नीचे साज फेक्टरी थी। ऊपर की मंजिल पर वे रहते थे। उनकी गाड़ी सीधे दुमंजिले पर चली जाती थी।

खैर, उनसे मिलने गया तो दरवाजे पर दरबान ने ही रोक लिया। अन्दर ही न जाने दिया। मैने बताया कि उनके लिये मेरे पास चिठ्ठी है। वह फिर भी न माना। उसने कहा कि शाम चार बजे उनकी कार आयेगी बाहर से, तभी उनसे दरवाजे पर मिलना। और कहीं जाना नहीं था मुझे। वहीं खड़ा रहा। चार बजे अशोक कुमार की कार आयी। वो पीछे बैठे थे। आगे शोफर था। स्टुडीबेकर गाड़ी थी। बड़ी गाड़ी। मैने उनका रास्ता छेंक लिया। पूछने पर मैने उनकी बहन की चिठ्ठी उनको दी। चिठ्ठी पढ़ कर उन्होने मेरा नाम आदि पूछा और कहा कि मेरा सामान कहां है? मैने बताया कि वह मैने स्टेशन पर रखा है। मुझे उन्होने सामान ले कर आने को कहा और दरबान को हिदायत दी कि मेरा उनके गेस्ट हाउस में रहने का इंतजाम कर दिया जाये।

तीन दिन तक उनके गेस्ट हाउस में रहा। ट्रे में ढंक कर नाश्ता खाना आता था मेरे लिये। सवेरे टोस्ट मक्खन। दोपहर में दाल-रोटी-चावल-सब्जी। मुझसे पूछा कि मछली खाता हूं। मैने बताया कि चल जाती है। तो कभी मछली भी होती थी खाने में। तीसरे दिन अशोक कुमार ने बुलाया।

अशोक कुमार को लगा कि लड़का लोग बम्बई आते हैं फिल्मों में काम करने के लालच में। मैं भी वैसे ही आया हूंगा। पर मैं सिर्फ देखने घूमने के चक्कर में पंहुचा था बम्बई। उन्होने मुझसे पूछा – फिल्मों में काम करना चाहते हो? मेरा इरादा नहीं था; पर लगा कि जब मौका मिल रहा है तो करने में हर्ज क्या है। मैने कहा – हां!

अगले दिन उन्होने मुझसे साथ चलने को कहा। ले कर गये फिल्मिस्तान स्टूडियो। हृषिकेश मुखर्जी के पिता का था फिल्मिस्तान। हृषिकेश भी वहीं काम करते थे। मुखर्जी जी से अशोक कुमार ने कहा कि मुझे कोई काम दे दें। मुखर्जी ने मुझसे पूछा – क्या जानते हो? जीप चला लेते हो? मैने कहा हां। फिर पूछा तैरना आता है? घुड़सवारी आती है? यह सब मैं जानता था। मेरा इम्तिहान भी लिया उन्होने। फिर अगले दिन से काम दे दिया फिल्म में। बताया कि रोज के सत्तर रुपये मिलेंगे। वहीं फिल्मिस्तान के गेस्ट हाउस में रहने-खाने का इंतजाम होगा।

हर शनिवार मुझे 420 रुपये मिलते थे। मेरा खर्चा छ सौ रुपया महीना था। हजार रुपया महीना बचा ले रहा था मैं। तीन महीना काम किया। फिल्म बनी – जलवा। उसमें अशोक कुमार हीरो थे। मीना कुमारी हीरोइन और पद्मिनी भी थीं। अशोक कुमार फिल्म में राजा थे और मुझे रोल मिला था उनके बिगड़े राजकुमार का।

तीन महीने काम के बाद मैं वापस घर आया। जो पैसा बचा लिया था, उससे एक सेकिण्ड हैण्ड जीप खरीद कर उसे चलाता हुआ पांच दिन में घर पंहुचा था बिहार में।

सन 1936 की पैदाइश है लल्लू बाबू की। बम्बई जब गये होंगे तो 15-16 साल के रहे होंगे। मैट्रिक की परीक्षा दे कर अकेले बम्बई जा कर फिल्म में हाथ अजमाईश करना और बचत के पैसे से जीप खरीद कर चलाते हुये वापस लौटना – यह कल्पना कर ही लगता है कि कितने एडवेंचर करने वाले किशोर रहे होंगे वे! जिस प्रकार से वे मुझे बता रहे थे, यह सब, उससे नहीं लगता था कि बताने में कोई नमक मिर्च लगा रहे हों। सपाट बयान कर रहे थे।

तो फिल्म का क्या हुआ?

“फिल्म फ्लॉप हो गयी और उसके बाद फिर बम्बई नहीं गया मैं। चल गयी होती तो आज कुछ और बात होती”

जी.एस. चावला की फिल्म थी वह। जलवा। चली नहीं। फ्लाप हो गयी। चल गयी रही होती तो मैं फिल्म इण्डस्ट्री में चला गया होता।

घर लौटा तो अम्मा बहुत नाराज थीं। मेरे एक चचेरे भाई थे। अब नहीं रहे। पर वे बहुत लूझ लगाने वाले; झगड़ा पैदा करने वाले थे। उन्होने मेरी अम्मा को समझाया कि तिलका दुसाध (डेहरी-पटना में नौटंकी पार्टी चलाने वाला) की बम्बई में नौटंकी है। मैं उसी में काम करता था। तिलका की पार्टी का नाम सुन कर मां ने मुझे धमकाया कि अगर फिर बम्बई गया तो आंगन के कुयें में कूद कर वे जान दे देंगी!

फिल्मिस्तान से बाद में तीन चिठ्ठियां भी आयीं। काम के लिये वापस बुलाया। पर फिर जाना हो नहीं पाया! :-(

लल्लू बाबू के जीवन का फिल्म अध्याय इस प्रकार खिलने के पहले ही खत्म हो गया। पर उनकी जिन्दगी में एडवेंचर और रिस्क, मनमौजियत और उद्यमिता बरकरार रहे। उन्होने यात्रा के  दौरान और भी बताया। पर यह पोस्ट बहुत लम्बी हो चली है। फिल्म प्रकरण के साथ ही इसे विराम देता हूं।

और जो बताया लल्लू बाबू ने, वह फिर कभी लिखूंगा – मसलन उन्होने कैसे छोडी डाक्टरी की पढ़ाई एक साल करने के बाद!  

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

21 thoughts on “अशोक कुमार, फ़िल्मिस्तान स्टूडियो और लल्लू बाबू

  1. बहुत ही रोमांचक… और यह विश्वास भी हुआ कि मुम्बई शहर के बारे में जो कहा जाता है कि वह पक्के इरादे वालों को कभी निराश नहीं करती, बिलकुल सही है… सिनेमा का मतलब नौटंकी से याद आया कि अमिताभ बच्चन जब इलाहाबद से चुनाव लड़ रहे थे तो बहुगुणा जी के लोग भी उन्हें नौटंकीबाज़ ही कहा करते थे!!
    एक अनसंग ‘हीरो’ की दास्ताँ ने मन मोह लिया.. अगली कड़ी का इंतज़ार!!

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  2. @उनकी जिन्दगी में एडवेंचर और रिस्क, मनमौजियत और उद्यमिता बरकरार रहे।

    रिस्क, मनमौजी स्वाभाव और उद्यमी ….. ऐसे व्यक्तित्व बहुत कम होते हैं समाज में.

    उपाध्याय बाबु को हमारी राम राम कहियेगा.

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  3. यह तो सच में एक प्रतिभा का अवमूल्यन कर दिया। एक बिगड़े राजकुमार को सुधरने का अवसर तो मिलना चाहिये था। हम तो घोर गिरे रुपये को उन्हीं के हाथों सम्हलने का अवसर देंगे इस बार।

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  4. जय हो लल्लू बाबू की.अच्छा हुआ कि फिल्म नहीं चली, चल जाती तो फिर यह रोचक किस्सा कैसे मिलता सुनने को..

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  5. उनकी सबसे छोटी बिटिया और मेरी बिटिया जेठानी-देवरानी हैं। उनकी सबसे बड़ी बिटिया मेरे सबसे बड़े साले साहब की पत्नी हैं।

    ई तो बैंक पीओ के परीक्षा का प्रश्न है सर ।डिपेन डुपेन छोडिए और अगिला लिख डालिए दन्न से हम तो सरपटे पढ गए ,,गजबे लिखे हैं , दरभंगा मधुबनी भी हो आए ।

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        1. It was very nice talking to you. As said earlier I am also a part of the family and all these events are known to us but you have seriously put in words which I could not do. Thanks for speaking. to me.

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