“बाबूजी, हम छोटे आदमी हैं, तो क्या?”


फाफामऊ से चन्द्रशेखर आजाद सेतु को जाती सड़क के किनारे चार पांच झोंपड़ी नुमा दुकाने हैं। बांस, बल्ली, खपच्ची, टाट, तिरपाल, टीन के बेतरतीब पतरे, पुरानी साड़ी और सुतली से बनी झोंपड़ियां। उनके अन्दर लड़के बच्चे, पिलवा, टीवी, आलमारी, तख्त, माचा, बरतन, रसोई, अंगीठी और दुकान का सामान – सब होता है। लोग उनमें रहतेContinue reading ““बाबूजी, हम छोटे आदमी हैं, तो क्या?””

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