आस-पास एक चक्कर – गोरखपुर

शनिवार को ड्राइवर साहब को बुलाया दस बजे। आस-पास एक चक्कर लगा जगहें चीन्हने को। एक घण्टे का समय व्यतीत किया। गूगल मैप पर वापस आने पर देखा तो लगभग 9 किलोमीटर का चक्कर लगाया था मैने। ड्राइवर बहुत सहायक नहीं थे बतौर गाइड, अन्यथा ज्यादा इनपुट्स मिलते स्थानों के बारे में।

ड्राइवर थे डीएस दुबे। पास के किसी गांव में रहते हैं दस किलोमीटर दूर। रिटायरमेण्ट के नजदीक हैं। वीआरएस लेने पर एक आश्रित को नौकरी मिलने की कोई स्कीम थी। उसमें चूक गये। उनकी सर्विस रिकार्ड में 20 साल से अधिक निरन्तर नहीं पायी गयी। ऐसा झटका व्यक्ति की क्षमता पर असर डालता है। शायद वह हुआ उनके साथ।

मैने पूछा – कोई मॉल, बिगबाजार खुला है? उत्तर मिला – हां। वे मुझे किसी सिटी मॉल पर ले गये। स्पेंसर का स्टोर था वहां। खुला नहीं था। कुछ और दुकाने थीं। वे भी बन्द या फिर खुल रही थीं। कुल मिला कर वहां कुछ भी काम का नजर नहीं आया मुझे। शायद लोग उसमें सिनेमा देखने आ जा रहे थे। दुबे को ठीक ठीक मालुम नहीं था कि वहां क्या क्या मिलता है। गोलघर बाजार का एक चक्कर लगाया उसके बाद। कपड़े की दुकानें, मैडीकल स्टोर, किराना आदि। दुबे ने बताया एक ओर बैंक रोड है। आगे चल कर गोरखपुर रेलवे स्टेशन तरफ के पश्चिम रोडओवर ब्रिज है। शायद पिछले दशक में बना है पर उसकी सड़क पर्याप्त जर्जर दशा में थी। था भी संकरा ही। सम्भवत: ज्यादा चौड़े ओवर ब्रिज की जमीन ही अधिग्रहित न हो पायी हो। आगे पड़ा असुरन चौराहा। नाम क्यों है असुरन? किसी अन्य व्यक्ति को मुझे बाद में पूछना होगा। ड्राइवर साहब के पास शहर और उसके इतिहास की विशेष जानकारी नहीं थी। ड्राइवर का काम जगह की कामचलाऊ जोग्राफी से चल जाता है, वह दुबे चला ले रहे थे।

ओवरब्रिज के आगे मर्किट दिखा। एक दो दुकानें दऊरी, भंउकी, सूप आदि की थी। मन हुआ कि रुक कर चित्र लूं। पर वह किया नहीं। मिट्टी के बरतनों पर कलात्मक पेण्ट कर कुछ फुटपाथिया दुकानें थीं। अगर पत्नीजी साथ होतीं तो वहां जरूर रुका जाता और दो-चार मिट्टी के हंडिया-पुरवा जरूर खरीद लिये गये होते।

रेलवे लाइन के उस पार एल एन मिश्र रेलवे अस्पताल, यांत्रिक कारखाना, महिला गृह उद्योग (मसाला पीसने की चक्की), आईटीआई, कौआबाग रेलवे कालोनी आदि का चक्कर लगाया मैने। पुरानी अंगरेजों के जमाने की जगह है यह। लम्बे, घने वृक्ष हैं वहां। साफ़ सुथरी सडकें, जो अभी अतिक्रमण से अधमरी नहीं हुई हैं। इमारतें पुरानी हैं। पर कामलायक। फंक्शनल। पैदल घूमने के लिये अच्छी जगह।

रेस्ट हाउस वापस लौटने के लिये मोहद्दीपुर कालोनी की ओर का रोड ओवर ब्रिज पड़ा। यह पहले वाले ब्रिज की अपेक्षा बेहतर दशा में था और ज्यादा चौडा भी। आस पास दुकानें भी अच्छी दिख रही थी। शाम के समय पुल के पास सब्जी बाजार लगता है। जब परिवार यहां रहने लगेगा तो सब्जी खरीदने वहीं जाना होगा।

वीरेन्द्रप्रताप साही की प्रतिमा।
वीरेन्द्रप्रताप शाही की प्रतिमा।

पुल के बाद मोहद्दीपुर के तिराहे(चौराहे) पर वीरेन्द्रप्रताप शाही की प्रतिमा लगी थी। ड्राइवर साहब ने कहा – हां यह वीरेन्द्रप्रताप-हरिशंकर तिवारी का शहर है। शाही दिवंगत हो गये। तिवारी हैं। यह पूछने पर कि क्या दोने दबंग हैं/थे; ड्राइवर साहब ने कहा, नहीं हरिशंकर तिवारी तो बहुत सज्जन हैं। उनके नाम पर लोग करते होंगे …

लगभग ऐसा ही मुझे कुछ महीने पहले राजा भैया के बारे में लखनऊ में कहा था।

उत्तरप्रदेश में सज्जनता बहुत व्यापक है।

वीवी पार्क दिखा। विन्ध्यवासिनी पार्क। ड्राइवर साहब नहीं बता पाये कि यह नाम क्यों है। आगे पता करना होगा और लोगों से। अगर मुझे कुछ ही दिन यहां रहना होता तो वाहन से उतर कर अन्य लोगों से बोल-बतिया कर पता करता। अभी ऐसे ही सीधे चला आया रेस्ट हाउस।

बड़े कृक्षों वाली रेलवे कालोनी।
बड़े कृक्षों वाली रेलवे कालोनी।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “आस-पास एक चक्कर – गोरखपुर

  1. प्रश्न अधिक इकठ्ठा हो गये तो विचारों में उत्पात करेंगे, कोई जानकार साथ ले लें और गोरखपुर का स्थानीय इतिहास भूगोल समझ लें। यत् दृष्टि, तत् सृष्टि। सज्जनता भी वही राह।

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