चेत राम

चेतराम
चेतराम

मैं उन्हे गंगा किनारे उथले पानी में रुकी पूजा सामग्री से सामान बीनने वाला समझता था। स्केवेंजर – Scavenger.

मैं गलती पर था।

कई सुबह गंगा किनारे सैर के दौरान देखता हूं उन्हे एक सोटा हाथ में लिये ऊंचे स्वर में राम राम बोलते अकेले गंगा के उथले पानी में धीरे धीरे चल कर पन्नियों, टुकडों और रुकी हुई वस्तुओं में काम की सामग्री तलाशते। सत्तर के आसपास उम्र। गठिया की तकलीफ पता चलती है उनके चाल से। सोटे का प्रयोग वे सामग्री खोदने में करते हैं। लगभग हर मौसम में उन्हे पाया है मैने सवेरे की सैर के दौरान।

मैं जब भी फोटो खींचने का उपक्रम करता हूं, वे कहते हैं – फोटो मत खींचिये। मैं कभी अपनी फोटो नहीं खिंचाता। कहीं भी। और मैं हर बार उद्दण्डता से उनका कहा ओवरलुक कर देता हूं।

कल मैने उनके दो-तीन चित्र लिये। चित्र लेने के दौरान उन्हे किनारे खड़े एक अन्य व्यक्ति से बात करते सुना – कालि त बहुत मिला। एक बड़ा कोंहड़ा, तीन लऊकी! वे और भी मिली सामग्री का वर्णन कर रहे थे पर हवा का रुख बदलने से मैं सुन नहीं पाया ठीक से।

आज फिर वे वहीं थे। एक पन्नी में लौकी थी, एक। गंगा के पानी में विसर्जित की हुई एक पन्नी को खोल कर उसमें से नारियल निकाल रहे थे वे। फिर वह नारियल, लौकी के साथ रख लिया उन्होने।

कल फेसबुक पर लोगों ने उनकी फोटो देख कर पूछा था कि यह सब्जी गंगा के पानी में कहां से आ जाती है। वही सवाल मैने आज उन्हे से पूछ लिया:

ये लौकी कहां से आ जाती है यहां?

कुछ लोग श्रद्धा से लौकी-कोंहड़ा भी चढ़ा जाते हैं सरकार, गंगा माई को। नरियल तो चढ़ाते ही हैं।

मुझसे ज्यादा बात नहीं की उन्होने। किनारे खड़े अपने एक परिचित व्यक्ति से बतियाने लगे। उनके साथ, आसपास दौड़ते तीन कुकुर थे, जो पास में सब्जी के खेत में बार बार घुस रहे थे और सब्जी की रखवाली करने वाला अपनी अप्रसन्नता व्यक्त करते हुये उन्हे भगा रहा था।

किनारे खड़े व्यक्ति ने उनसे कहा कि वे कुकुर साथ न लाया करें।

“संघे जिनि लियावा करअ। और ढ़ेर न लहटावा करअ एन्हन के।” (साथ में मत लाया करो और इन्हे ज्यादा लिफ्ट न दिया करो।)

नहीं, अब एक दो रोटी दे देता हूं। बेचारे। इसी लिये साथ साथ चले आते हैं।

मैंने ज्यादा नहीं सुना संवाद। वापस लौट लिया। वापसी में उनसे बतियाने वाला व्यक्ति, जो अब गंगा किनारे व्यायाम करते दौड़ लगा रहा था, फिर मिल गया। मैने उससे इस वृद्ध के बारे में पूछा। और जो कुछ उन्होने मुझे बताया, बड़ा रोचक था!

“उनका नाम है चेतराम। यहीं पास में कछार के किनारे उनका अपना घर है। दिल्ली में नौकरी करते थे। रिटायर हो कर गंगा किनारे घूमने की सुविधा होने के कारण यहीं चले आये। करीब चौदह-पन्द्रह साल हुये रिटायर हुये। उनके बच्चे दिल्ली में ही रहते हैं। अकेले यहां रहते हैं। यहां अपना मकान किराये पर दे दिया है – बस एक कमरा अपने पास रखे हैं। रोज सुबह शाम आते हैं गंगा किनारे।

यहां पानी में जो भी चीज बीनते हैं, ले जा कर अपनी जरूरत की रख कर बाकी अड़ोस पड़ोस में बांट देते हैं। लौकी, कोंहड़ा और अन्य सब्जी आदि। नारियल को फोड़ कर गरी के छोटे छोटे टुकड़े कर पूरे मुहल्ले के बच्चों में बांटते हैं। गंगा किनारे यहीं रम गये हैं। बच्चों के पास दिल्ली नहीं जाते। 

कभी कभी तो बहुत पा जाते हैं बीनने में। अभी परसों ही बहुत पाये थे और ले कर नहीं जा पा रहे थे। मैं उठा कर उनके घर छोड़ कर आया था।”

उन्हे – चेतराम को; मैं स्केवेंजर समझता था। निकृष्ट कोटि का व्यक्ति। पर वे तो विलक्षण निकले। उन सज्जन ने जो जानकारी दी, उससे चेतराम जी के प्रति मेरे मन में आदर भाव हो आया। और चेतराम के व्यक्तित्व में मुझे अपने भविष्य के ज्ञानदत्त पाण्डेय के कुछ शेड़स दिखायी पड़ने लगे।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

11 thoughts on “चेत राम

  1. चेतराम जीवन को किंचित सचेत आँखों से देखने की गुजारिश करते प्रतीत हैं । थोड़ी सहानुभूति और थोड़ी आत्मीयता से दुनिया ज्यादा सुंदर दीख पड़ती है । वैसे भी मानवीयता मामूली लोगों की शक्ति है । चेतराम जी के सम्मान में भागवत रावत की एक कविता :

    वे इसी पृथ्वी पर हैं

    कहीं न कहीं कुछ न कुछ लोग हैं जरूर

    जो इस पृथ्वी को अपनी पीठ पर

    कच्छपों की तरह धारण किए हुए हैं

    बचाए हुए हैं उसे

    अपने ही नरक में डूबने से

    वे लोग हैं और बेहद नामालूम घरों में रहते हैं

    इतने नामालूम कि कोई उनका पता

    ठीक-ठीक बता नहीं सकता

    उनके अपने नाम हैं लेकिन वे

    इतने साधारण और इतने आमफ़हम हैं

    कि किसी को उनके नाम

    सही-सही याद नहीं रहते

    उनके अपने चेहरे हैं लेकिन वे

    एक-दूसरे में इतने घुले-मिले रहते हैं

    कि कोई उन्हें देखते ही पहचान नहीं पाता

    वे हैं, और इसी पृथ्वी पर हैं

    और यह पृथ्वी उन्हीं की पीठ पर टिकी हुई है

    और सबसे मजेदार बात तो यह है कि उन्हें

    रत्ती भर यह अन्देशा नहीं

    कि उन्हीं की पीठ पर टिकी हुई है यह पृथ्वी ।

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    1. बहुत सटीक। चेतराम पर बहुत ही सही।
      कहां कहां से खंगाल लाते हैं आप नायाब कवितायें। कहां से निकालते हैं अपने शब्द!
      जय हो!

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  2. Very useful doings of Chet Ram Jee.
    Sarthak Karya Kar Rahen Hain. Logon Kee Bhalai Bhee .

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  3. मिले सामान को गंगाजी का प्रसाद मानकर बाँट देना, वह भी निस्वार्थ भाव से बीनने के बाद, विलक्षणता है लगन में।

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  4. रोचक!
    लगता है, कि गोरखपुर में रहते हुए भी आपके दिल, मन और आत्मा गंगा का साथ नहीं छोडते!

    हम कैलिफ़ोर्निया में ६ महिने रहकर अभी अभी लौट आए हैं।
    Home sweet home!
    सितम्बर में शायद फिर जाना पडेगा।
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  5. जय हो !
    वो कैलाश बाजपेयी जी की कविता है न :

    बुरा भी उतना बुरा नहीं यहां
    न भला है एकदम निष्पाप।

    अथक सिलसिला है कीचड़ से पानी से
    कमल तक जाने का
    पाप में उतरता है आदमी फिर पश्चाताप से गुजरता है
    मरना आने के पहले हर कोई कई तरह मरता है
    यह और बात है कि इस मरणधर्मा संसार में
    कोई ही कोई सही मरता है।

    कम से कम तुम ठीक तरह मरना।

    Liked by 1 person

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