
उनके सैलून में हम छ सात अफसर बैठे थे। वैशाली एक्स्प्रेस आने वाली थी और उसमें वह सैलून लगने जा रहा था। हम लोग उन्हे विदा करने के लिये बैठे थे।
वे यानी रेलवे के एडीशनल मेम्बर (यातायात) श्री ए के मैत्रा। श्री मैत्रा बता रहे थे कि कैसे दक्षिण मध्य रेलवे के मुख्य माल यातायात प्रबन्धक के रूप में उन्होने वैस्टर्न क्लासिकल संगीत सीखा और कालान्तर में भारतीय संगीत भी। पाश्चात्य संगीत के लिये उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज से सनद भी मिली।

उनकी इस बात पर; व्यस्त सरकारी दायित्व के दक्ष निर्वहन के साथ साथ किसी अन्य हुनर को हासिल करने और उसमें प्रवीणता प्राप्त करने की प्रवृत्ति पर चर्चा होने लगी।
अधिकांश रेल अधिकारी – विशेषत: रेल यातायात सेवा के अधिकारी अपने काम में ही पिले पड़े रहते हैं। रेल यातायात के अधिकारियों को माल और सवारी गाड़ियां चेज़ करने के अलावा कोई काम नहीं आता। बैंक से पैसा निकालना तक नहीं आता। उसके लिये भी किसी सहायक पर निर्भर रहते हैं। घर के और समाज के कई कार्यों से वे निस्पृह/अछूते रहते हैं। और जब वे रिटायर होते हैं तो अचानक उनके सामने बहुत बड़ा वैक्यूम आ जाता है निठल्लेपन का।
इसके विपरीत श्री मैत्रा जैसे अफ़सर हैं जिनके पार बहुत प्रयास कर अर्जित कोई न कोई हुनर है। रेल सेवा के बाद यह उन्हे व्यस्त रखेगा। मसलन श्री मैत्रा अपने संगीत और अपने पठन से इतनी जानकारी रखते हैं कि कई पुस्तकें लिख सकते हैं।
उन्ही के पास में श्री मनोज अखौरी बैठे थे। वे एग्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर (माल यातायात) हैं रेलवे बोर्ड में। उनके बारे में पता चला कि वे बहुत सारे वाद्य यन्त्र बजा सकते हैं और पहले कई कार्यक्रम भी दे चुके हैं। अब उनकी यह कला सुप्तावस्था में है, पर हुनर है तो समय मिलने पर जाग्रत होगा ही।
अभी अभी गोरखपुर में दावाप्राधिकरण में ज्वाइन किये सदस्य (तकनीकी) श्री कन्हैयालाल पाण्डेय की बात हुयी। उनके पास हिन्दी फिल्मों के गीत-संगीत की जानकारी और उनके वीडियो/ऑडियो कलेक्शन का जखीरा है। वे अब सात खण्डों में फिल्मों के विभिन्न कालखण्डों में संगीत के रागों के प्रयोग पर लेखन कर रहे हैं।
इसी ब्लॉग पर पहले मैने श्री सुबोध पाण्डे जी के बारे में लिखा था। पुस्तकें पढ़ने और इतिहास में जानकारी के रूप में वे विलक्षण हैं।
ट्रेवलॉग लेखन, अध्ययन, कोलाज और चित्र बनाना, साहित्य पठन और सृजन – अनेकानेक विषय हैं जिनमें मेधावी अफसरों ने हुनर अर्जित किया है। इस हुनर अर्जन से ही शायद वे अपने काम के तनाव से मुक्त हो सके हैं। और शायद यही हुनर उन्हे कालान्तर में सामाजिक प्रतिष्ठा भी देंगे और व्यस्त रहने के लिये सार्थक अवलम्ब भी – जब वे रेल सेवा से निवृत्त होंगे।
तुम्हारे पास क्या हुनर है – जीडी?
जन्मदिवस की मंगल कामनाएँ
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तीन बातें:
1. वैशाली एक्सप्रेस के चित्र में मिथिला पेण्टिंग को देखकर जयंती जनता एक्सप्रेस की याद आ गई जिसके हर डिब्बे की दीवारों पर यह पेण्टिंग हुआ करती थी, जिनमें रामायण के कई प्रसंग अंकित थे!
2. “श्री मैत्रा बता रहे थे कि कैसे दक्षिण मध्य रेलवे के मुख्य माल यातायात प्रबन्धक के रूप में उन्होने वैस्टर्न क्लासिकल संगीत सीखा और कालान्तर में भारतीय संगीत भी।”
यह वाक्य पढकर हँसी आ गई! जबकि आगे श्री मैत्रा के विषय में पढकर मुँह से निकला “वाह-अद्भुत”.
मेरा पुत्र अभी बारवीं कक्षा में है और कई वाद्य यंत्र बजा लेता है (बिना विधिवत शिक्षा प्राप्त किये), चित्रांकन में विशिष्टता प्राप्त है, हमने मिलकर कई फ़िल्में बनाई हैं सत्यजित राय की कहानियों पर. मेरे पिताजी रेलवे की नौकरी तो करते थे, लेकिन फ़िल्म के विषय में उनका रिसर्च इतना तगड़ा था कि फ़िल्म के ग्रुप डांस सिक्वेंस में तीसरी कतार में नाचने वाली नर्तकी को भी नाम से पहचानते थे (तब विकीपीडिया नहीं था). फ़िल्म संगीत इतना गहन अध्ययन था कि किस संगीतकार की धुनों में कौन सा वाद्य यंत्र अवश्य बजता है इसकी ख़बर रखते थे!
गीता में शायद प्रभु इसे ही मनुष्य का स्वधर्म कहते हैं.
3. तुम्हारे पास क्या है जीडी!!
इस सवाल का जवाब तो बस एक ही लाइन में दिया जा सकता है कि जो भी हो तुम ख़ुदा की कसम लाजवाब हो!
और ये कम है क्या??
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मैत्रा साहब को मेरा प्रणाम कहियेगा सर!!
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आपने जिनकी तारीफ की वे वाकई हुनरमंद लोग हैं । पर उनका हुनर हमें न जाने कब देखना नसीब होगा । आपका हुनर तो यहीं पर दिख रहा है । अक्सर देखते हैं । इसलिए हमारी गवाही दर्ज़ की जाए । आप कम हुनरयाफ़्ता नहीं हैं । सवाये ही पड़ेंगे । सबसे ।
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तुम्हारे पास क्या हुनर है – जीडी?
लेख का अंत आपने किया तो प्रश्न से है किन्तु है ये उत्तर 🙂
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GD नहीं GDP कहिये 🙂
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GD महोदय के पास हुनर है…अपनी लेखन शैली और विचार शक्ति के द्वारा लोगों के दिल जीत लेने का…!!
No doubt at all sir .
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