
शैलेश के विषय में मैने इस ब्लॉग पर कई पोस्टों में लिखा है। उनकी उत्तराखण्ड त्रासदी के बाद राहत कार्यों सम्बन्धित यात्राओं का विवरण है और कालान्तर में उनकी गन्गोत्री यात्रा के बारे में मैने लिखा। सभी यात्राओं के लिये मूलत: उन्होने यात्रा के दौरान लगभग निरन्तर मुझे ह्वाट्सएप्प के माध्यम से अपडेट्स डिये। हम दोनो ही समय के साथ ह्वाट्सएप्प से सम्प्रेषण में कुशल हो गये हैं। अत: बीच में फोन के माध्यम से सम्पर्क करने की बहुत आवश्यकता महसूस नहीं हुई। यात्राओं के बारे में व्यापक जानकारी सतत भेजे गये सम्प्रेषणों के माध्यम से हो जाती रही। लगभग 8-9 दिन पहले शैलेश ने बताया कि अब पुन: घर से यात्रा पर निकलने का उनका मन बन रहा है। कहां? यह उन्हे भी स्पष्ट नहीं है। यायावर के पास पहले यह यात्रा की छटपटाहट होती है, फिर यात्रा का खाका बनता है! 🙂 उसके बाद एक दिन उनसे सम्प्रेषण हुआ। (मैं आगे सम्प्रेषण में उनके कहे को सामान्य और अपने कहे को इटैलिक्स में रख रहा हूं, जिससे संवाद में कौन क्या कह रहा है; स्पष्ट रहे।) उस दिन और उसके बाद हुई यात्रा का लेखलाप यूं चला:
नवम्बर’8;2014
“भैया एक चीज आपसे शेयर कर रहा हूं। मैं एक यात्रा प्रारम्भ कर रहा हूं और उसको नाम दूंगा – #ALAKH2011 – अखण्ड भारत – नागालैण्ड। एक ध्येय है कि पूर्वोत्तर के बारे में सोशल मीडिया पर जागरूकता बढ़ाई जाये। लोग वहां के अनजाने नायकों के बारे में भी जानें; सामान्य छुट-पुट जानकारी के अलावा। #ALAKH2011 ट्विटर पर काफी समय से चलता हैशटैग है और उसमें यह यात्रा और वैल्यू जोड़ेगी। अगर आप जुड़ते हैं तो यह बहुत सशक्त टीम-ट्रेवलॉग होगा।
जरूर जरूर!! मैं एक प्रेत-यात्रा-लेखक बनूंगा। मेरी यात्रा ह्वाट्सएप्प के माध्यम से। तुम अपने वास्तविक पैरों पर करोगे यात्रा और मेरे ब्लॉग पर उसकी नियमित जानकारी होगी!
मैने शैलेश को वायदा तो जरूर कर दिया उस दिन (8 नवम्बर को); पर उसके बाद मैं अपने सरकारी काम में बहुत व्यस्त हो गया। शैलेश से ह्वाट्सएप्प पर जानकारी का आदान-प्रदान तो हुआ; पर मेरा ब्लॉग लेखन नहीं। अगले दिन शाम साढ़े चार बजे शैलेश ने मुझे मुगल सराय स्टेशन से जानकारी दी कि स्टेशन पर आ गये हैं वे और टटोल रहे हैं कि कौन सी ट्रेन मिलेगी आसनसोल-हावडा की ओर जाने वाली। साथ में सामान तो कम रखा है पर यह “साम्यवादी झोला” जोड़ लिया है। उसमें नोटबुक और पठन सामग्री सहूलियत से रखी जा सकती है।
शैलेश ने आनन्दविहार-हावड़ा एक्स्प्रेस से यात्रा की मुगलसराय से आसनसोल तक। रास्ते में शिकायत कि बहुत धीमी चल रही है ट्रेन। पर मैने जब ट्रेन की जानकारी नेट पर छानी तो पता चला कि मुगलसराय में वह साढ़े छ घण्टा देरी से आयी थी और आसनसोल तक उसने 45 मिनट मेक-अप कर लिये थे। जल्दी पंहुचने के लिये आसनसोल में एक्स्प्रेस गाड़ी छोड़ कर उपनगरीय लोकल पकड़ी; इस आशा के साथ कि वह ’जल्दी पंहुचेगी’।

“भैया यह एक नित्य यात्री ने अपना बैग टांगा है लोकल गाड़ी में। घर से ही वह टांगने के लिये हुक ले कर आया है। वह ऊपर की सीट पर आगे की ओर टांग रहा था तो नीचे बैठे ने ऑब्जेक्ट किया – पीछे कर टांगो। पीछे टांगने से ’झूलबे ना’।” निश्चय ही प्रतिवाद करना लोकल में यात्रा करने में ज्यादा अनुभवी था! … लोकल में भीड़ बहुत है। पर लोग इत्मीनान से हैं। शान्ति से और किसी प्रकार की हड़बड़ी के बिना। मनुष्यता है। जवान लड़कों को स्त्रियों और वृद्धों के लिये सीट खाली करते देखा मैने।
बांगला भद्रलोक।
हां। 🙂
बनारस से हावड़ा पंहुचने के मेरे कुल 655 रुपये खर्च हुये। इसमें 400 रुपये तो रिजर्व कोच में सीट पाने के लिये वैध खर्च था।
बहुत ही मितव्ययी यात्रा है!

अब मैं बस में हूं। टिकट का किराया 6 रुपये। मैं बण्डेल उतरा। वहां से हावड़ा का किराया 10 रुपया है।
सस्ता, निश्चय ही सस्ता।
शाम 17:25 पर निकलूंगा कामरूप एक्स्प्रेस से दीमापुर के लिये। अठ्ठाईस घण्टे की यात्रा।
कल दिन भर तुम असम की सीनरी देखोगे! मुझे बताया गया है कि वहां का देहात बहुत सुन्दर है!
आगे का यात्रा विवरण भाग – 2 में…
प्रेत लेखक की पोस्ट का इन्तजार रहेगा अब तो।
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