
उत्तरप्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में है बढ़नी बाजार। यहां नगरपालिका है। बारह-पन्द्रह हजार के आसपास होगी आबादी। सन 2001 की जनगणना अनुसार 12 हजार। रेलवे स्टेशन है। गोरखपुर-बढ़नी-गोंडा लाइन पहले मीटरगेज की थी; अब गोरखपुर से बढ़नी तक यह ब्रॉडगेज बन चुकी है और अगले मार्च तक गोंडा तक हो जायेगी।

बढ़नी के आगे 100-200 कदम पर है नेपाल के कपिलवस्तु जिले (लुम्बिनी जोन) का कस्बा कृष्णनगर। यह झण्डानगर के नाम से भी जाना जाता है – इस नाम से साइनबोर्ड वहां मुस्लिम दुकानदारों के दिखे। शायद हिन्दू कृष्णनगर कहते हों और मुसलमान झण्डानगर। कृष्णनगर की आबादी सन 1991 में थी 20 हजार। अब शायद दुगनी हो?
बढ़नी से हम लोगों को विशेष ट्रेन से वापस लौटना था। मैने वरिष्ठ मण्डल परिचालन प्रबन्धक महोदय को अनुरोध किया कि उसे आधा घण्टा देरी से चलायें जिससे मैं पैदल सीमापार कृष्णनगर छू कर आ सकूं। और तब पाया कि लगभग सभी अधिकारीगण वहां जा कर आना चाहते थे।
यहां लोगों का नेपाल से आवागमन निर्बाध है। माल आयात-निर्यात के लिये सीमा कर विभाग के चेक प्वाइण्ट हैं। किस प्रकार के सामान की कैसे चेकिंग करते होंगे वे – यह जानकारी हासिल करने का मेरे पास समय नहीं था। दोपहर के भोजन के तुरत बाद हम बढ़नी स्टेशन से निकल गये कृष्णनगर के लिये। साथ में स्टेशन के कर्मचारी थे जो रास्ता बता रहे थे। रास्ता वे ठीक से बता रहे थे। पर दक्ष गाइड नहीं थे – अन्यथा अनवरत हम लोगों को जानकारियां देते रहते और बाद में विकीपेडिया खंगालने की जरूरत नहीं होती।

दोनो देशों के बीच था नो-मैंस-लैण्ड। करीब पचास मीटर की पट्टी। ऊबड़-खाबड़। बहुत कचरा था वहां। उसकी सफाई पर नेपाल ध्यान न देता हो तो भारत को ही देना चाहिये। न हो तो सफाई करने की ट्रीटी हो जाये। सीमा को इतना गन्दा देखना अच्छा नहीं लगता। उस नो-मैंस-लैण्ड का चित्र ले रहा था मैं तब सीमा के सुरक्षा-कर्मी, एक महिला कर्मी ने मुझसे कहा कि चित्र लेना प्रतिबन्धित है। चित्र तो ले ही चुका था।
कृष्णनगर में नाई, दरजी, गरम कपड़े, कम्बल, अंग्रेजी शराब, कम्यूटर सिखाने, मोबाइल पर गाने अपलोड करने, चाऊमीन जैसे भोजन आदि की दुकानें थीं। ऐसी दुकानें जो किसी भी कस्बे या छोटे शहर में देखने में मिलती हैं। अंतर यह भर था कि वहां चीन-कोरिया का जैकेट-कोट-कम्बल और सस्ता इलेक्टॉनिक सामान मिल रहा था। एक दुकान थी कृष्णा कन्सर्न्स। उसमें यह सामान भरा था। मैने जैकेट खरीदने की कोशिश की। दो-तीन जैकेट नापे भी। फिर खरीददारी में अपने अनाड़ीपन का स्मरण कर विचार त्याग दिया। कभी पत्नीजी के साथ जाना हुआ तो खरीदा जायेगा।

नेपाल में अपनी उपस्थिति के कुछ सेल्फियाऊ चित्र खींचे। वापस लौटते हुये नेपाल की सीमा से भारत के क्षितिज में एक मकान के ऊपर टंगे सूर्यदेव नजर आये। वे भी नेपाल से भारत आये थे और मेरी तरह उन्होने भी कोई खरीददारी नहीं की थी।

यह तो नेपाल का पाला छू कर आने जैसा था। विधिवत जाया जायेगा वहां फिर कभी।

बढनी हमारे यहाँ झाड़ू का पर्याय है… और आपकी तस्वीरों में जिस प्रकार कूड़ा बिखरा दिखा, लगता है बढनी की आवश्यकता सर्वाधिक है यहाँ!!
नेपाल हम लोगों के लिये (बिहारियों के लिये) भी अपने किसी ज़िले का विस्तार सा ही लगता है. भारतीय मुद्रा का प्रचलन और सभी वस्तुओं के मूल्य एन.सी. (नेपाली करेंसी) और आई.सी. (इण्डियन करेंसी) में बताया जाना, ये सब सीमावर्ती ज़िले (बिहार राज्य के) की आम शब्दावलि का हिस्सा हैं!
आपकी रिपोर्ट पढकर बड़ा आनंद आता है.
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when it comes to claim the land then every nation comes forward , don’t even hesiste to fire wars… but when it comes to take care of property then no one takes responsibility… in that pic it is written clearly that area comes under krishan nagar ( kapil vastu ) municipality . That municipality should clean it . At least citizens in that nagar should give a written application to municipality to clean that area. That could be grown as good tourist place.
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हाँ, वहां कूड़ा कचरा देख मन खिन्न जरूर हुआ था। उसके मुकाबले बढ़नी बाजार बेहतर दशा में था।
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