पिताजी और आजकल

पिछले अप्रेल महीने में मेरी पोती  पद्मजा को गोद ले कर खड़े पिताजी।
पिछले अप्रेल महीने में मेरी पोती पद्मजा को गोद ले कर खड़े पिताजी।

मेरे पिताजी (श्री चिन्तामणि पाण्डेय) 81 के हुये 4 जुलाई को। चार जुलाई उनका असली जन्म दिन है भी या नहीं – कहा नहीं जा सकता। मेरी आजी उनके जन्म और उम्र के बारे में कहती थीं – अषाढ़ में भ रहें। (दिन और साल का याद नहीं उन्हें)। अब अषाढ़ई अषाढ़ होई गयेन्। ( अषाढ़ में जन्मे थे। अब अषाढ जाने कितने बीत गये)।

खैर, उनका सार्टीफ़िकेट के अनुसार जन्म दिन है 4 जुलाई 1934। उनके अनुसार उनका जन्म तो 1934 में हुआ था। चार जुलाई शायद दाखिले के समय लिखा दिया गया हो।

पिछले कई वर्षों से वे गिरती याददाश्त के शिकार हैं। याददाश्त के अलावा कई साल पहले उनकी सामान्य सेहत भी तेजी से गिरने लगी थी। एलोपैथिक दवाओं से जब लाभ नहीं हुआ था तो किसी के सुझाने पर रामदेव के आउटलेट पर बैठने वाले आयुर्वेदिक आचार्य जी को दिखाया था। उनकी दवाओं – घृतकुमारी रस और अश्वगन्धा के कैप्स्यूल जिनमें थे – से बहुत लाभ हुआ। उनके हाथों में कम्पन होने लगा था। वह रुक गया। उनकी तेजी से गिरती याददाश्त की गिरावट की दर बहुत कम हो गयी थी। उनका चलना-फिरना भी पहले की अपेक्षा बेहतर हो गया।

अम्मा जी के सतत देखभाल से वे तो ठीक हो गये पर सन् 2013 मे उत्तरार्ध में घर में ही फिसलने के कारण अम्मा जी की कूल्हे की हड्ड़ी टूट गयी। उनके ऑपरेशन के लिये, उनको दी जाने वाली ब्लड-थिनर दवायें सप्ताह भर के लिये रोक दी गयी थीं। वही घातक साबित हुआ। उनका ऑपरेशन तो ठीक से हो गया और वे स्वास्थ लाभ भी कर रही थीं; पर मस्तिष्क में कहीं थक्का जम गया और दो बार उन्हे पक्षाघात हुआ। पहले आघात से उबर रही थीं। पर दूसरा घातक साबित हुआ। पिताजी ने उन्हे मुखाग्नि तो दी, पर उनके फेरे लगा कर शरीर को अग्नि को अर्पित करने और कपाल-क्रिया का कृत्य मैने पूरा किया। मेरे लड़के ने दस दिन के कर्मकाण्ड निबाहे और अन्त में पिण्ड-दान, महाब्राह्मण की बिदाई का कृत्य मैने सम्पन्न किया। परिवार की तीन पीढ़ियों के सामुहिक योग से कर्मकाण्ड सम्पन्न हुये उनके। मुझे याद नहीं कि किसी और घर में इस प्रकार हुआ होगा।

अम्मा जी के जाने के बाद मैं पिताजी को अपने साथ गोरखपुर ले आया। पिताजी के एकाकीपन के झटके और उसमें कैद हो जाने की आशंका हम सब को थी; पर गोरखपुर में एक-डेढ़ बीघे में फैला खुला बंगला, और आउट हाउस के कई चरित्र उन्हे बोलने बतियाने को मिल गये। वे अगर अम्मा के चले जाने के बाद इलाहाबाद में ही रहते तो शायद एकाकीपन और अम्मा की याद से भरा वातावरण उन्हे तोड़ता। गोरखपुर में आउट हाउस के चन्द्रिका और ध्रुव, रोज नमस्ते करने वाली महिला, बगीचे में काम करने वाला माली नारद, सफ़ाई के लिये यदा कदा आने वाला सफ़ाई जमादार, मेरे वाहन के डाइवर… ये सब उनके चौपाल के मित्र बन गये। वे कभी थक जाने पर कमरे में आ कर बिस्तर पर लेटते हैं तो कुछ सुस्ता लेने के बाद फिर उठ कर बाहर निकल लेते हैं। वहां चौपाल जमती है या फिर किसी के न रहने पर वे परिसर में चक्कर लगा कर फूल-पत्तियां-सब्जियां निहारते हैं। काम भर की सब्जियां – नेनुआ, लौकी, भिण्डी तोड कर लाते हैं। चन्द्रिका को कष्ट होता है कि समय से पहले ही तोड़ लेते हैं नेनुआ और लौकी।

अभी महीना भर पहले आधी रात मे उनकी आवाज आयी। वे मेरी पत्नीजी को बुला रहे थे। हम गहरी नींद से जगे और देखा कि उनके माथे पर चोट लगी है। खून बह रहा है। एकबारगी तो मुझे समझ नहीं आया कि क्या करूं। भाव के अतिरेक में उन्हे मैने बांहों में भर लिया – मानो वे छोटे शिशु हों। हमने उनका घाव धोया, घर में उपलब्ध दवाई लगा कर पट्टी की और उपलब्ध पेनकिलर दिया। उनके बिस्तर को ऐसे किया कि गिरने की सम्भावना न रहे।

उनसे पूछा कि चोट कैसे लगी तो वे कुछ बता न सके। बाद में भी याद नहीं आया।

अगले दिन सवेरे उन्हे हम ड्रेसिंग कराने अस्पताल ले गये। डाक्टर साहब ने बताया कि रात भर में घाव भरा है और ड्रेसिंग-दवाई से ठीक हो जायेगा। अन्यथा अगर रात में लाये होते उन्हें तो कम से कम चार-पांच टांके लगते। डाक्टर साहब ने एहतियादन सीटी-स्कैन और खून की जांच कराने के लिये कहा। वह सामान्य निकला।

बाद में अनुमान लगा कि उन्हें पोश्चरल हाइपो-टेंशन की समस्या हुई। गर्मी के मौसम में पसीने से नमक की कमी हुई शरीर में और रात में  बाथरूम की ओर जाने के लिये वे झटके से उठे होंगे तो कम रक्तचाप के कारण चक्कर आ गया होगा। जमीन पर गिरते हुये कोई कोना टकराया होगा जिससे माथे पर चोट लगी।

कई दिन तक उन्हे कमजोरी की शिकायत रही। अब वे ठीक हैं। तख्ते पर लगा उनका बिस्तर हटा कर उनचन वाली मूंज की खाट पर कर दिया गया है जिससे रात में बिस्तर से उठते समय गिरने की आशंका कम से कम हो जाये।

कटका में बनते घर को देखते पिताजी। साथ में मनीष औरदूर नीली कमीज में धर्मेन्द्र।
कटका में बनते घर को देखते पिताजी। साथ में मनीष औरदूर नीली कमीज में धर्मेन्द्र।

पिछले शुक्रवार को उन्हे हम कटका साथ ले कर गये। मैं रिटायरमेण्ट के बाद वहां सेटल होने के लिये एक छोटा घर बनवा रहा हूं। वह उन्हे दिखाना चाहता था। उसे देख कर वे सन्तुष्ट तो थे, पर उन्होने मुआयाना अपने सिविल इन्जीनियर की निगाह से ही किया। उन्हे हम खेतों में लगाये यूकलिप्टिस के प्लाण्टेशन दिखाने भी ले गये। काफी रुचि ली उनमें भी पिताजी ने।

उनकी वर्तमान की याददाश्त गड्ड-मड्ड हो जाती है। वाणी भी कई बार लटपटा जाती है। पुराना अच्छे से याद है। अपने बचपन की घटनायें और व्यक्ति वे बता ले जाते हैं। पर उन घटनाओं के क्रम में कभी कभी घालमेल हो जाता है।

कुल मिला कर वे ठीक हैं और हमें अपेक्षा है कि अगले दशक और उससे आगे भी उनकी उपस्थिति का आशीर्वाद हमें प्राप्त रहेगा।

पिताजी के साथ मेरा बेटा, पद्मजा और मैं।
पिताजी के साथ मेरा बेटा, पद्मजा और मैं।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “पिताजी और आजकल

  1. Agreed with Smart Indian. Definitely Bhav Bhara Vivran. Char pidion ka sammilit photograph ek sukhad evem aschayajanak anubhuti. Shubhukamnaye.

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  2. आदरणीय पिताजी स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें। उनका साया बरसों बरस आप पर रहे ये ही ईश्वर से कामना करता हूँ। इस उम्र में याददास्त की बीमारी आम बात है और अकेलापन सालता है। लेकिन इसका कोई हल नहीं।

    नीरज

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