शैलेन्द्र का परिवार बनारस में रहता है और वह गांव में। चार भाइयों में दूसरे नम्बर पर है वह। चार भाई और एक बहन। बहन – रीता पाण्डेय, सबसे बड़ी है और मेरी पत्नी है।
मैं रेल सेवा से रिटायर होने के बाद गांव में रहने जा रहा हूं – शैलेन्द्र के डेरा के बगल में।
जैसे परिस्थिति वश नहीं, अपने चुनाव से शैलेन्द्र गांव में रहता है, वैसे मैं भी अपने चुनाव से गांव में ठिकाना बना रहा हूं। पूर्णकालिक रूप से। दोनों के अपने अपने प्रकार के जुनून और दोनों की अपनी अपनी तरीके की उलट खोपड़ी।
मैं गांव जाकर अपना बनता मकान देखता हूं। साथ में पिताजी को भी ले कर गया हूं कि वे भी देख लें वह जगह जहां उन्हें भविष्य में रहना है। शैलेन्द्र साथ में है मकान-निर्माण का कामकाज देखने के दौरान। उसके वेश को देख कर मेरी पत्नीजी झींकती हैं – “ये ऐसे ही घर में बनियान लटकाये रहता है”।

शैलेन्द्र पायजामा-बनियान में है। गले में सफेद गमछा; जो उमस के मौसम में पसीना पोंछने के लिये बहुत जरूरी है। उसके वेश में मैं अपना भविष्य देखता हूं। मेरी भी यूनीफार्म यही होने जा रही है। अभी भी घर में पायजामा-बण्डी रहती है आमतौर पर। गमछा उसमें जुड़ने जा रहा है।
शैलेन्द्र को शहरी लोग हल्के से न लें। भदोही-वाराणसी के समाज-राजनीति में अच्छी खासी पैठ है उसकी। अगर वह घर-परिवार में मुझसे छोटा न होता तो उसके लिये ‘तुम’ वाला सम्बोधन मैं कदापि न करता। अगले विधान सभा चुनाव में मैं उसे चुनाव लड़ने और उसके बाद अगर उसके दल – भाजपा – की सरकार बनी तो मंत्रीपद पाने की स्थिति की मैं स्पष्ट कल्पना करता हूं।
सोशल मीडिया पर भी शैलेन्द्र की सशक्त उपस्थिति है। फेसबुक में उसके अधिकतम सीमा के करीब (लगभग 4900) मित्र हैं।
मेरे श्वसुर जी (दिवंगत पंण्डित शिवानन्द दुबे) की किसानी की धरोहर को बखूबी सम्भाले रखा है शैलेन्द्र ने और उनकी राजनैतिक-सामाजिक पैठ को तो नयी ऊंचाइयों पर पंहुचाया है। श्वसुर जी के देहांत के बाद एकबारगी तो यह लगा था कि उनके परिवार का गांव से डेरा-डण्डा अब उखड़ा, तब उखड़ा। पर शैलेन्द्र की जीवटता और विपरीत परिस्थितियों से जूझ कर अपने लिये राह बनाने की दक्षता का ही यह परिणाम है कि मैं भी उसके बगल में बसने और अपनी जीवन की दूसरी पारी को सार्थक तरीके से खेलने के मधुर स्वप्न देखने लगा हूं।
आगे आने वाले समय में इस ब्लॉग पर बहुत कुछ शैलेन्द्र के विषय में, शैलेन्द्र के सानिध्य में, पास के रेलवे स्टेशन (कटका) और गांव – विक्रमपुर, भगवानपुर, मेदिनीपुर, कोलाहल पुर आदि के बारे में हुआ करेगा। गंगाजी इस जगह से करीब ढाई-तीन किलोमीटर की दूरी पर हैं। सो वहां – कोलाहलपुर-तारी या इंटवाँ के घाट पर घूमना तो रहेगा ही।
बहुत कुछ शैलेन्द्र-कटका-विक्रमपुर के इर्द-गिर्द हो जायेगा यह ब्लॉग। उस सबकी मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं। आप भी करें! 🙂
Rokomat jane do. Roko Mat jaane do
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Hut me door lagane door hut gaye
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हमें वहीं आपसे मिलने आने की इच्छा है 🙂
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स्वागत!
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आप रिटायर हो लें और घर बन जाए तब आपके पास आएंगे दो-चार दिन के लिए . और तब आप व्यस्तता और समय की कमी का अफसरी बहाना भी नहीं झाड़ सकेंगे . 🙂
आपको हार्दिक शुभकामनाएं ! संकल्प शुभ है तो परिणाम भी शुभ होगा . जब बायो-टॉयलेट और सोलर पैनल की व्यवस्था कर ही रहे हैं जो जल-संरक्षण का भी जतन कीजिएगा . तब यह सचमुच अभियांत्रिकीविद पंडित ज्ञानदत्त पाण्डेय पर्यावरण-हितैषी का घर होगा.
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आपके लिये अफसरी छाप बहाना तो अभी भी नहीं झाड़ा। 🙂
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इस पोस्ट पर फेसबुक में प्राप्त अन्य टिप्पणियां:
RN Sharma “सुखद”
पढ़ने के बाद जो पहली प्रतिक्रिया मस्तिष्क ने दी वो एक शब्द में कुछ यूँ है।
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 10:05
Gyan Dutt Pandey धन्यवाद। बहुत से लोग तो ‘आश्चर्य’ वाली प्रतिक्रिया देते हैं।
Like · 1 · Yesterday at 10:06
महेन्द्र मिश्र बढ़िया निर्णय … अच्छा लगा
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 10:13
Jata Shanker Mishra Sir,Bhale Aap Vikrampur ko Apna thikana banayein,par Varanasi Sigra ka mera ghar Aapki baat johata rahega. Aapke anya rishtedar bhi BSB mein hain hi.To Aapko Kashi-Vikrampur Setu banaye rakhna hoga.
Unlike · Reply · 1 · 23 hrs
Arun Dixit उपान्यासकार को और गीतकार को तो जानता हूँ
पर यदि कोई और हैं श्रीमान शैलेन्द्र दुबे जी तो मै अंजान हूँ कृपया परिचय दें
Unlike · Reply · 1 ·
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इस पोस्ट पर फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणियाँ:
Ainul Haque अपनी माटी ,अपना गाँव !
मीठे अनुभव , सुख के छाँव !!
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 09:45
Vinod Rai सर निर्माण कार्य चल रहा है नये आशियाने का
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 09:46
Gyan Dutt Pandey जी, साधारण सा, गांव के पैटर्न वाला है। ड्रॉइंग-डाइनिंग रूम वाला नहीं, दालान वाला। शौचालय जरूर है – बायो-टॉयलेट। और काम भर का सोलर पैनल/इंवर्टर रहेगा।
Like · Reply · 8 · Yesterday at 10:00
Anand Upadhyay Manas Very nice
Like · Reply · 1 · Yesterday at 10:02
Vinod Rai देसी या साहिवाल गाय भी होनी चाहिये
Like · Reply · Yesterday at 10:04
Gyan Dutt Pandey निश्चय ही। पंचवटी के वृक्षों को लगाने की भी एक लिस्ट बन गयी है। smile emoticon
Like · Reply · 4 · Yesterday at 10:05
Vinod Rai सर कहा है आपका घर
Like · Reply · 1 · Yesterday at 10:06
Gyan Dutt Pandey ब्लॉग पोस्ट पढ़ें! कटका रेलवे स्टेशन।
Like · 1 · Yesterday at 10:07
Anand Upadhyay Manas पूरी तैयारी है
Unlike · Reply · 2 · Yesterday at 10:08
Shukla Omprakash Very nice.
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 10:17
Shashi Bhushan Gandhi Hope the village has internet with good speed . We don’t to miss your lovely posts on FB and your blogs .
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 10:43
Dhirendra Veer Singh आपको गाँव मुबारक हो ।
जितना सरल दीखता है उतना होता नहीं ।
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 10:53
Ashish Rai ये कदम मिसाल होगा सर।
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 11:21
सुनील कुमार घर से निकले थे हौसला करके
लौट आये खुदा खुदा करके.
वापसी की बधाई
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 11:38
Prashant Pandey like emoticon smile emoticon
Like · Reply · Yesterday at 11:43
Varinder Kumar Now there is not much difference between villages and cities as all the facilities are available in the villages plus the fresh non polluted air.
Unlike · Reply · 2 · Yesterday at 11:50
छत्तीसगढ़ सन्देश अपने गाँव मे रहने का अपना सुख है .एक खुशनुमा अनुभूति .
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 11:53
Shelleyandra Kapil ghar vapisi ke saath gaanv jane ke liye ek tikau thikana hum sab ko bhi nasseb hoga.
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 11:55
Nidhi Dubey Welcome
Unlike · Reply · 1 · Yesterday at 11:56
Kajal Kumar अच्छी बात है. मैं गांव में ज्यादा समय रहा करूंगा पर दिल्ली नहीं छोडूंगा (अभी तो यही प्लान है ) smile emoticon
Unlike · Reply · 2 · Yesterday at 12:09
Syed Asim Rauf Aap kab awkaash grahan kar rahe hai Sir ??
Like · Reply · 23 hours ago
Jaya Dubey हमसब के लिए दो,दो स्थान
Unlike · Reply · 1 · 23 hours ago
Aman Mallick मुझे तो १५ साल बाद ये मौक़ा मिलेगा…पर मिलेगा ज़रूर….
Like · Reply · 2 · 23 hours ago
Lata R. Ojha Pranaam sir ji .. Shubhkaamnaaen smile emoticon
Unlike · Reply · 1 · 23 hours ago
Ajit Kumar Srivastava Mujhe aapke is nirayan par garv hai ki etne bade adhikari hone ke bawjood gaon me rahne ki soch rahe hai,aapne hame ek nayi disha di hai.
Unlike · Reply · 3 · 23 hours ago
Lalit Sharma गांव जैसा सुख कहीं नहीं और गांव जैसी राजनीति भी। smile emoticon
Unlike · Reply · 3 · 22 hours ago
Om Prakash Tiwari बाबा विश्वनाथ ने चाहा
तो
वही आपसे मुलाकात हो सकती हे ।
Unlike · Reply · 1 · 22 hours ago
Kumar Nandan गाँव की प्रमुख समस्या —–.सुनी ना… एगो टिकट कन्फर्म करवावे के रहल ह.. बड़ा जरुरी बा…. smile emoticon
Unlike · Reply · 4 · 22 hours ago
Sanjay Tripathi Sir, decision is quite like your overall presence- with feet firm on ground with superlative thinking- kind regards
Unlike · Reply · 1 · 22 hours ago
Swati Shukla बहुत अच्छा विचार है सर और प्रेरणास्पद भी
Unlike · Reply · 1 · 22 hours ago
ललित जोशी आप गाँव मे शान्ति और सुकुन पायेंगे ये पक्का है
अब आप और ज्यादा रचनात्मक हो जायेंगे smile emoticon
Unlike · Reply · 3 · 22 hours ago
Ld Sen Ek achchha vichar sir
Unlike · Reply · 1 · 21 hours ago
Yogendra Sharma Very inspiring, if every civil servant thinks like that our village life shall improve. Great Vichaar.
Unlike · Reply · 1 · 21 hours ago
Bidyadhar Pandey ससुरपुर निवासम स्वर्ग तुल्यम् नराणाम् ।
Unlike · Reply · 1 · 21 hours ago
Bhupendra Dubey Ant bhala to sab bhala
Unlike · Reply · 1 · 21 hours ago
Ranjana Singh मनोकामना पूर्ण हो आपकी
Unlike · Reply · 1 · 21 hours ago
Drupad Ram I wish you will be able to fulfill your childhood dreams.
Unlike · Reply · 1 · 21 hours ago
Prabhat Yadav सर ! बहुत ही शानदार निर्णय है यह ।
Unlike · Reply · 1 · 21 hours ago
CP Mishra aap gaon me nahi rah payenge
Unlike · Reply · 1 · 20 hours ago
CA ShriKrishna Dwivedi good decision
Unlike · Reply · 1 · 20 hours ago
Nirmla Kapila हम रोज गाँव में भी जस्ट हैं शहर में भी। दोनों के बर्च एक सड़क है बस।
Unlike · Reply · 1 · 19 hours ago
Er Virendra Srivastava Achcha rahega sir, phir se bachpan ki yaden.
Unlike · Reply · 1 · 19 hours ago
Suresh Charnalia Not a bad decision! You will be improving the status of this village for future generation.
Unlike · Reply · 1 · 19 hours ago
Kedar Nath Pandey स्वागत योग्य महान निर्णय आपका सान्निध्य गाँव के लोगों को
एक नयी दिशा देगी
Unlike · Reply · 1 · 19 hours ago
Vijayshankar Chaturvedi देख लीजिए!
Unlike · Reply · 1 · 19 hours ago
Udan Tashtari शहर से कितना दूर है? चिकित्सा ए्वं मूलभूत सुविधाओं का आभाव रोकता है अक्सर ऐसे निर्णय लेने से
Unlike · Reply · 1 · 18 hours ago
Y.s. Bagga Aap KB honi hai? Athwa KB hui hai jnab?
Unlike · Reply · 1 · 17 hours ago
Gyan Dutt Pandey मैं सितम्बर में रिटायर होऊंगा।
इस स्थान से वाराणसी 35 किलोमीटर दूर है और यह गांव ग्राण्ड-ट्रन्क रोड/हाईवे पर है।
Like · Reply · 17 hours ago
Harshvardhan Tripathi ये अच्छा है। कोशिश कीजिए कि आपके रहने के शहरी अनुभव गांव के लोगों से तालमेल कर बेहतर जीवन स्तर की ओर बढ़ें।
Unlike · Reply · 1 · 17 hours ago
Abha Mishra accha hota ki apne gaon sukulpur me rahne kaa nirnay lete….
Unlike · Reply · 1 · 17 hours ago
Gyan Dutt Pandey वह अभी भी मन मेँ आता है। और अगर वहां उचित माहौल मिला तो शिफ्ट भी करूंगा कभी।
Like · 16 hours ago
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Anil Pusadkar sahi hai gurudev,mera bhi yahi irada hai,aage ishwar jane.
Unlike · Reply · 1 · 17 hours ago
Dadan Ram भगवान करे आप जैसे उल्टी खोपडी केलोग ज्यादा से ज्यादा रेल मे आये।
Unlike · Reply · 1 · 16 hours ago
Santosh Singh सर गोरखपुर तो नही आ पाया.. आपके गाँव आऊंगा मिलने
Unlike · Reply · 1 · 16 hours ago
Surendra Tiwari मैं कभी भी स्वयं को गांव से बाहर का नहीं मान सका .सर्वसुविधा युक्त नौकरी के बावजूद रिटायरमेंट के बाद गांव में ही रहने का मन है.
Unlike · Reply · 2 · 16 hours ago
अनूप शुक्ल सुन्दर विचार। smile emoticon
Unlike · Reply · 2 · 16 hours ago
Kiran Kumar Ojha Uttam vichr. Sahi nirnay.Meri Bahut2 shubhkamanayen.
Unlike · Reply · 1 · 15 hours ago
Parveen Goyal Seems like a very tough decision to implement…
Unlike · Reply · 1 · 15 hours ago
Gyan Dutt Pandey It was not a decision taken. It evolved in course of years.
Like · 1 · 14 hours ago
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Dipak Mashal वाह
Unlike · Reply · 1 · 14 hours ago
Raj Bhatia बिलकुल सही कर रहे हे मेरे विचार से, ्मै तो ३५ साल से ही गांव मे रह रहा हुं, ओर अब तो मकान भी यही ले लिया हे, गांव जैसा सुख शहर मे नही, शहर मे डिब्बे जैसे मकान, ना छत अपनी ना जमीन अपनी ओर ना ही ताजी हबा…
Unlike · Reply · 1 · 14 hours ago · Edited
आलोक पाण्डेय बिलकुल सही
Unlike · Reply · 1 · 14 hours ago
Srini Vasan Good luck
God bless
Unlike · Reply · 1 · 13 hours ago
Manoj Kr Mishra VERY GOOD OPTION
Unlike · Reply · 1 · about an hour ago
RN Mishra बधाई .. अपने मूल और अपनों से जुड़े रहने के लिए …
Unlike · Reply · 2 · about an hour ago
Pawan Verma bahut achcha, kuch to rajneeti ka prabhav hona chahiye sir
Unlike · Reply · 1 · about an hour ago
Anil Anil Kumar Tripathi pranam sir bahut achhi soch
Unlike · Reply · 1 ·
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आप विचारकर ही काम करते हैं। यह निर्णय भी अच्छा है। और फिर पर्यावरण निर्मल हो और परिजन साथ हों उससे अच्छा क्या है। मेरी ओर से शुभकामनायें। कामना है कि आपके नए निवास पर कभी मुलाक़ात हो सके।
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वो मारा! क्या बढ़िया विचार है.
जब आप रहने चले जाएंगे, तो मैं पूरी कोशिश कर एकाध सप्ताहांत आपके गांव में गुजारने जरूर आऊंगा. वैसे आपकी जैसी मेरी भी ख्वाहिश है, गांव में बसने की, पर देखें, फलीभूत होती भी है या नहीं.
पर, आजकल के गांव तो, सुनने में आ रहा है कि आधुनिक शहर से भी आधुनिक हुए जा रहे हैं – बस, केवल जात-पात बाकी रह गया है. क्या ये सच है?
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वहां देखता हूं – नेशनल हाइवे पर होने के बावजूद लोटन गुरू की भूत-प्रेत की ओझाई खूब चलती है। गरीबी दिखती है – आंखें बन्द कर लें, तब भी।
बहुत कुछ है जो किया जा सकता है।
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और हां, स्वागत!
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बहुत सुन्दर विचार सर, जी कर रहा है मैं भी विक्रमपुर में आप ही के पास मकान बना लूँ !! क्योंकि मन विक्रमपुर चला गया था आपका लेख पढ़कर।
यह जीवन की हकीकत है । शहर भर घूम आने के बाद सुकून घर ही में मिलता है। गाँव शब्द जेहन में आते ही जैसे कुछ स्वप्न आँखों में तैरने लगते हैं …और फिर शैलेन्द्र जी का सानिध्य …!!
लिखते रहिये ..इन्तजार रहेगा!!
शुभ-दिन!!
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