कुनबीपुर में मचान और खीरे का मोल भाव

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कुनबीपुर में मचान, राजन भाई और खेत में काम करने वाली महिला – अमरावती।

एक मचान देख कर मैं ठहर गया। सवेरे के सूरज की रोशनी में देखने की इच्छा के कारण मेड़ पर पैर साधते हुये मचान के दूसरी ओर पंहुचा। साथ में राजन भाई थे। सवेरे की साइकलिंग में मेरे सहयात्री।

महिला मचान के पास थी। नाम पूछा – अमरावती। मचान उसका नहीं था। वह सवेरे सवेरे खीरे का खेत निराने आई थी। उसी ने गांव का नाम बताया – कुनबीपुर। गांव कुनबी जाति वालों का है। कुनबी सब्जियां उगाने वाली जाति है। पूरा परिवार सब्जियों के खेत में मेहनत करता है। बकौल राजन भाई एक बीघा खेत में दो-ढाई लाख की आमदनी कर लेते हैं ये। आस-पास खीरा, नेनुआ, कोंहड़ा, ककड़ी और गेंदे के फूल की खेती थी। कई खेतों में कुनबी लोग खीरा तोड़ते पाये हमने।

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खीरे के खेत में काम करती महिला और लड़के से दस रुपये का खीरा लेने के लिये मोलभाव किया राजन भाई ने।

एक खेत में महिला और उसका लड़का तोड़ रहे थे। राजन भाई ने मोल भाव किया – दस रुपये का खीरा लेने के लिये। लड़का बहुत सा खीरा तोड़ लाया। जितना दिया था, मुझे लगा कि दस रुपये कम लगाया है दाम। मैने बीस रुपये दिये तो उसने और खीरे दे दिये।

राजन भाई मोल भाव करने में दक्ष हैं। उन्होने कहा – तोहरे दुआरे आई हई, तनी और द (तुम्हारे दरवाजे आये हैं, थोड़ा और दो)। लड़के ने दो-तीन और खीरे दिये, यह कहते हुये कि उसे घाटा हो जायेगा। लेने के बाद राजन भाई ने मोलभाव का अन्तिम पंच मारा  – तनी धेलुआ धरु (थोड़ा घेलुआ भी दो)।

कुल मिला कर अच्छी मात्रा में खीरे ले कर हम आगे बढे। राजन भाई के अनुसार वे बाजार में कम से कम चालीस रुपये के होंगे।

सवेरे का समय। अप्रेल का प्रथम दिन। आनन्द बहुत आया कुनबीपुर भ्रमण में। पर पहले दिन कौन फूल बना? पता नहीं।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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