ठेले पर मेरठ की नानखटाई

ठेले पर एक भट्टी जैसा उपकरण जिसमें नानखटाई बनती है। उसपर रिकार्ड की आवाज लाउड स्पीकर पर बजती रहती है। विज्ञापन वाली महिला और पुरुष का संवाद। औरत कहती है कि उसे मेरठ वाली नानखटाई खानी है। कुछ इस अन्दाज में कि उसका बालम मेरठ जा कर लाये उसके लिये नानखटाई।

मैं नहीं जानता था कि मेरठ की नानखटाई मशहूर है। इसी रिकार्डेड जिंगल से पता चला। आदमी की आवाज आती है कि अभी लाता हूं। यानी केवल ठेले तक जाना है नानखटाई लाने के लिये। अपने शहर, अपने कस्बे में ही उपलब्ध है।

नानखटाई एशिया के इस भाग (ईरान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत) का बिस्कुट है। विकिपेडिया के अनुसार नान फारसी शब्द है रोटी के लिये और खटाई अफ़गानी शब्द है बिस्कुट के लिये। वहीं से आया होगा यह बिस्कुट।

इसे बनाने में केवल मैदा-चीनी-डालडा चाहिये। तीनों चीजें मेरे हिसाब से घातक सी हैं। मैदा रिफाइण्ड खाद्य है जो कब्ज करता है। चीनी तो सफ़ेद जहर है। और डालडा सेचुरेटेड वसा।

इस ठेले का किट मैने अपने कस्बे महराजगंज में देखा और बनारस में भी। बनारस से गांव आते हुये एक और ठेले वाला यही नानखटाई उपकरण लिये जा रहा था। यानी बहुत सारे फ्रेंचाइज़ी (या ठेलाचाइज़ी?) हैं इस मेरठ की नानखटाई के।

बनारस में ठेले वाले से पूछा नानखटाई के बारे में। ठेले वाले ने बताया कि 35रुपये पाव है। एक पाव खरीदी मैने।

बनारस में मेरठ की नानखटाई का ठेला


स्वाद में सो-सो। पत्नीजी ने बताया कि इसे बनाने में केवल मैदा-चीनी-डालडा चाहिये।  तीनों चीजें मेरे हिसाब से घातक सी हैं। मैदा रिफाइण्ड खाद्य है जो कब्ज करता है। चीनी तो सफ़ेद जहर है आजकल की किताबों में। और डालडा सेचुरेटेड वसा। घातक चीजें आदमी इसलिये खाता है कि उसमें स्वाद होता है। स्वाद इसमें भी था। गरमागरम नानखटाई थी तो एक के बाद एक कर आधा दर्जन खा लीं। वैसे साइज में छोटी ही थीं। पुराने चांदी के रुपये के ड्योढ़े साइज की। खाते खाते दांये हाथ को बांये से रोका तभी अपने को रोक पाया मैं। आत्मनियन्त्रण ऐसे ही होता है। शरीर का एक हिस्सा दूसरे को रोकता है।

खैर, यह छोड़ा जाये कि वह स्वास्थ्य के लिये खराब है या अच्छी। यह ठेला पर विज्ञापन वाले रिकार्ड के साथ भट्टी बैठा कर नानखटाई बनाने और बेचने का मॉडल जिसने भी बनाया हो, बन्दा होगा शानदार मार्केट विशेषज्ञ।

आप देखिये यह छोटा वीडियो महराजगंज बाजार थे नानखटाई ठेले वाले का।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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