यह, गोधना गांव, जिला मिर्जापुर, उत्तरप्रदेश में आर्कियॉलॉजिकल सर्वे का प्रोटेक्टेड मॉन्यूमेण्ट है। देखने में 10-11वीं सदी का मंदिर नजर आता है। कभी किसी आक्रांता (?) ने इसकी सभी मूर्तियां खण्डित कर दीं। आधुनिक काल में इसका पुनर्स्थापन हुअ। कगूरा नया बना है – तो माना जा सकता है कि कगूरा तोड़ दिया गया था। मंदिर की बाहरी दीवारों पर जो नक्काशी है, वह बहुत सीमा तक बरकरार है – उसमें मूर्तियां लगभग नहीं उकेरी गयी थीं। सो आक्रांताओं ने उसको तोड़ने में अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं की।

छोटा और बहुत सुंदर मंदिर है यह। इसका ढांचा कायम है – यही गनीमत। अब एएसआई के सौजन्य से परिसर का सौंदर्येकरण कर दिया गया है। साफ सफाई उपयुक्त है और पण्डा लोगों का अतिक्रमण नहीं है।
यह सारनाथ मंदिर कहाता है – पर यह शिव मंदिर है; बौद्ध तीर्थस्थल सारनाथ नहीं। यह मिर्जापुर जिले में है। वाराणसी में नहीं।

इस स्थान के इतिहास की ज्यादा जानकारी मुझे नहीं हो पायी। मेरे मित्र गुन्नीलाल पाण्डेय जी मुझे वहां ले कर गये थे। कछवाँ बाजार से करीब 3-4 किलोमीटर दूर इस स्थान पर वे छ साल स्कूल में अध्यापक रह चुके थे। इसलिये वे इस मंदिर और आसपास के क्षेत्र से बखूबी परिचित हैं।
गुन्नीलाल जी ने बताया कि यह मंदिर तो विलुप्त सा था। आसपास की बस्ती वालों को भी जानकारी नहीं थी। वनाच्छादित था यह स्थान। दिखाई नहीं देता था कि कोई इमारत है। एक बार एक गाय चराने वाले की गाय पास के तालाब में फँस गयी तो उसे बचाने की मशक्कत करते समय पता चला कि वहां कोई मंदिर भी है।
मैने उनसे पूछा – कब हुई होगी यह घटना?
“पता नहीं। लोग कहते हैं यह कथा। जिसने मुझे बताया उसने भी किसी बूढ़े से सुना था। बहुत पहले पता चला होगा।”
बहरहाल, ऑर्कियॉलॉजिकल सर्वे अगर दखल रखता है तो इस मंदिर पर कोई न कोई रिपोर्ट तो होगी ही और पुख्ता इतिहास भी होगा। वह पता करने का प्रयास करूंगा।
मन्दिर भंजकों ने मूर्तियों को इस तरह डी-फ़ेस किया है कि लगभग सभी मुंह टूटे हुये हैं। बहुत सी टूटी मूर्तियां इकठ्ठी कर पास के वृक्ष के चबूतरे पर रख दी गयी हैं। एक नये नन्दी को स्थापित कर दिया गया है जो देखने में ही बाद की प्रतिमा नजर आती है। गर्भगृह में मैने झांक कर देखा तो शिवलिंग को समूचा पाया। पर यह भी सम्भव है कि नन्दी की तरह शिवलिंग भी नया प्रतिष्ठित कर दिया गया हो।

इतिहास लिखता है जीतने वाला। और मंदिर तोड़ने वाले विजेता थे। इसलिये मंदिर में श्रद्धा रखने वाले उन लोगों की त्रासदी तो सही सही कहीं लिखी या महसूस गयी? आजतक नहीं की गयी शायद। कुछ लोग कहेंगे कि गड़े मुर्दे उखाड़ने का क्या लाभ? यह देश केवल हिंदुओं का तो है नहीं। हिंदुओं की भी आबादी के एक बड़े हिस्से का भी आज उस त्रासदी से लेना देना नहीं है।
पर इस भंजित मूर्तियों के मंदिर का क्या करें? यह तो सामने दिखता है – इतिहास का कड़वा सच।
मैं इतिहासकार नहीं हूं। मैं उदग्र हिंदू भी नहीं हूं। किसी भी कौम से बदला भी नहीं लेना चाहता। मेरा देश प्रेम (या देश भक्ति?) उदात्त है। पर मैं यह तो चाहता हूं कि मेरे पूर्वजों का दर्द, उनकी त्रासदी सही रूप में सामने तो आये। उस ग्रामीण ने – जो शंकर जी पर रोज जल चढ़ाता रहा होगा, मंदिर भंजन के बाद किस तरह अपनी श्रद्धा को मूर्ति से हटा कर इण्टर्नलाइज किया होगा? किस तरह उसकी श्रद्धा और धर्म समय के थपेड़े सहता, समय की सर्पिल गति से रिगल-आउट (wriggle-out) करता आज की दशा में आया?
मन्दिर खड़ा है तो उसके बगल में एक शिलालेख हो या पुख्ता बोर्ड हो यह बताता हुआ कि फलां फलां ने यह तोड़ा तो गलत किया। इण्टरनेट में उसको लिंक करता जो पेज हो, वह भी यह बता दे। इतिहास साफगोई से दर्ज हो और बस। चेप्टर क्लोज।
लगता है कि मन्दिर का भंजन होने के कारण वह परित्यक्त हो गया होगा और कालान्तर में यह स्थान ही जंगल में तब्दील हो गया। इस पूरी प्रक्रिया की अगर कल्पना की जाये तो स्पष्ट होगा कि आक्रान्ताओं द्वारा धर्म और समाज कितनी बड़ी त्रासदी और मन्थन से गुजरा होगा। जो लोग इस त्रासदी और मन्थन को कमतर समझ दरकिनार करते और गंगा-जमुनी संस्कृति तथा सूफी मत का गुणगान करते हैं, वे यह महसूस नहीं करते कि यह स्थान कितना जीवन्त रहा होगा और स्थानीय धर्म – संस्कृति का केन्द्र रहा होगा जब इसे तोड़ा गया होगा। बाबरी मस्जिद के एक ढ़ांचे भर से इतनी उथल-पुथल है पूरे देश में, और इस या इस जैसे अनेक मन्दिरों का भंजन क्या कोई मामूली घाव रहा होगा?
मैं कोई उदग्र (मिलिटेण्ट) हिन्दू नहीं हूं; पर आधा घण्टा जब मैं वहां था, यह भाव व्यथित करता रहा।
मन्दिर परिसर में कोई भजन गायन का आयोजन होने जा रहा था। स्त्रियां और पुरुष एक ओर इन्त्तजार कर रहे थे। चबूतरे पर माइक सिस्टम सजाया जा रहा था। गायक आसपास थे। साउण्ड सिस्टम पर भोजपुरी भजन बज रहा था। उसकी क्वालिटी उत्तम थी – किसी फिल्मी गाने की भौंडी पैरोडी नहीं था वह।

एक मूंगफली बेचने वाला अपनी दुकान मन्दिर परिसर में लगा रहा था। परिसर अभी साफ था, पर जब श्रोता गायन सुनते समय मूंगफली खा कर छिलके फैंकेगे (जिसकी बहुत सम्भावना है) तब यह गन्दा जरूर होगा।
श्रद्धालु वहां थे, पर भीड़ नहीं। आधा घण्टा वहां रहने पर किसी भीख मांगने वाले ने मेरा पीछा नहीं किया। किसी पण्डा-पुजारी ने जबरी मुझे तिलक-चन्दन लगाने का प्रयास नहीं किया। शिवलिंग के समक्ष गर्भगृह के बाहर मैने अपनी सुविधानुसार ध्यान में आंख मूंदी। किसी की कोहनी नहीं लगी मुझे।
मन्दिर की एक परिक्रमा की मैने। पीछे एक गड़ही जैसा स्थान था – वहीं शायद गाय फंसने वाला प्रकरण हुआ होगा, जिससे इस मन्दिर की खोज हुई। मन्दिर परिसर के बाहर एक दो धर्मशाला जैसे परित्यक्त स्ट्रक्चर थे। उसके आगे एक बड़ा तालाब है – ऐसा गुन्नीलाल जी ने बताया। वापस लौटने की जल्दी थी, इसलिये वहां गया नहीं मैं।

एक चक्कर वहां फिर लगाऊंगा जल्दी ही। तब तक वहां के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने का प्रयास करता हूं।

bahut achhi jankari hai.
mujhe janna hai ki puratatva vibhag se yadi kisi sanrakshit imarat ke bare me jankari leni ho to kise aur kaha sampark kar sakte hai?
koi website ya link ho to kripya bheje.
dhanyad
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Aadarniya Bauji, aap bahut samvedna ke saath likhte hain.
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धन्यवाद जी!
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आदरणीय आप का “गोधना का शिव मंदिर – सारनाथ” पढ़ा । बहुत सुंदर ढंग से आप ने बताया है ,इसके लिए आप को साधुवाद ।
यह आलेख मै अपनी पत्रिका ”प्रणाम पर्यटन” के आगामी अंक (अप्रैल-जून -2019 ) में प्रकाशित करना चाहता हूँ । बस आप की अनुमति की जरूरत है ।
पत्रिका के बारे में :-
प्रणाम पर्यटन , पर्यटन पर आधारित हिन्दी मै देश की पहली पत्रिका है । जिसमें यात्रा वृतांत ,संस्मरण ,आलेख ,इतिहास एवं दस्तावेज़ का समावेश है । इसके अलावा कहानी ,कविताओं ,लघुकथा , गतिविधियां एवं पर्यटन से संबन्धित फोटो प्रतियोगिता भी शामिल है।
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प्रदीप श्रीवास्तव
संपादक
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प्रदीप जी आप सामग्री पूरा क्रेडिट और ब्लॉग लिंक देते हुए और बिना Content बदले ले सकते हैं.
आप मुझे Gyan Dutt Pandey, Village Vikrampur, Post Maharajganj, Thana Aurai, District Bhadohi, Uttar Pradesh 221314 के पते पर डाक भेज सकेंगे.
आपको यह रुचिकर लगा, धन्यवाद.
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Hum log gaye hai par koi jaankari nahi hua waha kuch likha vo hai
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ऐसे बहुत से स्थान मैनें देखे हैं जहां मुस्लिम इन्वेडरर्रस ने मूर्तियां तोड़ी हैं , इस स्थान का संबंघ कला और स्थापत्य कला के जानकारों के लिये बहुत रूचिकर होगा
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