आप फल कैसे तोड़ते हैं? मैं तो बचपन में ढेला मार कर आम तोड़ने का यत्न किया करता था, पर बहुत सफल ढेलक तो कभी नहीं रहा। लग्गी से कभी कभार तोड़ा है आम पर जमीन पर गिर कर फल चोटिल हो जाता था और उसे खाने का मजा भी चोटिल हो जाया करता था।
असल में बचपन के बाद पूरी गंभीरता से फल तोड़ने की कोशिश कभी की ही नहीं। सिर्फ पढ़ाई कर नौकरी पाने की सोची, जिसमें इतने पैसे जेब में हों कि खरीद कर फल खाए जा सकें।
आप समझ सकते हैं कि मेरी जिन्दगी एक प्लेन वनीला आइसक्रीम जैसी रही। बहुत कुछ है जो न अनुभव किया और न एंज्वाय।

उस रोज रात में भोजन के बाद घर के आसपास टहलते हुए राजेंद्र बिंद को कुछ बनाने में व्यस्त देखा।

रात नौ बजे स्ट्रीट लाइट में राजेंद्र एक बांस के सिरे पर लूप बना रहा था। पूछने पर बताया कि खोंचा बना रहा है। मन्ना चाचा के अहाता में बेल फले हैं। उन्हे तोड़ने का आदेश मिला है। अभी घंटे भर में तैयार करेगा खोंचा और अगले दिन सवेरे तोडे़गा बेल।
अगले दिन मैं फिर उसके पास गया। खोंइचा (खोंचा) बन गया था। वह बांस की डंडी पर एक छोटी लकड़ी बांध कर फल तोड़ने का हुक था और उसके आसपास एक वृताकार बांस का लूप बना था जिसपर एक थैला बंधा गया था। सरल सी तकनीक पर फल को बिना चोटिल किए तोड़ने के लिए सबसे प्रभावी यंत्र। मुझे लगा कि इतनी सरल सी चीज मैं क्यों नहीं सोच पाया अपने से!
अगले दो दिन मैंने राजेंद्र से उसके खोंचा के उपयोग पर जानकारी ली। उसने बिना चोटिल किए छोटे बड़े कुल सवा सौ बेल तोड़े। उसमें से उसे करीब चालीस मिले मेहनताना के रूप में। बाजार में बेल 20 से 40 रुपये में बिका। इस तरह 4-5 घंटे की मेहनत में राजेंद्र ने 1000 रुपये कमाए। बढ़िया ही कहा जाएगा यह उद्यम!
राजेन्द्र का पूरी तरह बना खोंचा। चित्र में लग्गी का हुक और बेल सहेजने के लिये थैला स्पष्ट है।