अंत की आहट उदास करती है


पिताजी को सूर्या ट्रॉमा सेंटर के लोग परसों दोपहर MRI के लिए लेकर गए. पांच छ लोगों ने बड़े संभाल कर बिस्तर से स्ट्रेचर और स्ट्रेचर से एम्बुलेंस में शिफ्ट किया. मेरी पत्नीजी उन्हें उठाने लिटाने में हाथ बटा रही थीं पर मैं तो साथ में खड़ा भर था. एक चित्र भी लिया. एक कर्मी को अजीब सा लगा कि इस अवसर पर भी चित्र लेने की सूझ रही है इस बेटे को.

एक कर्मी को अजीब सा लगा कि इस अवसर पर भी चित्र लेने की सूझ रही है इस बेटे को

मेरी बिटिया कहती है कि मेरे इमोशंस और मेरी चारित्रिक टफ-नेस अलग तरह की है. शायद वह सही हो.

एम आर आई के कक्ष में पिताजी के साथ चेंबर में मुझे बैठने को कहा गया. मशीन की कर्कश खट खट चख चख किट किट की ध्वनि के बीच मैं अपने बचपन से अब तक की मेमोरी लेन में चला गया. माँ के रहते पिता का रोल निभाते पिताजी की याद और अब मां के बाद पिता कम मां ज्यादा के रोल में पिताजी के साथ जीवन का स्मरण होता गया.

वह समय याद है कि एक बार यात्रा से मेरे वापस लौटने पर पिताजी ने सिर पर हाथ रखा और उसके बाद मेरे पूरे मुंह पर हाथ फेरा – वैसे जैसे कोई मां अपने छोटे बच्चे को करती है.

मेरे घुटनों और पैर के तलवों में दर्द रहता है. लगभग हर रोज पिताजी मेरे पास बैठ कर मुझे सहलाते थे. पूछते थे कि दर्द कुछ कम हुआ? दर्द वास्तव में गायब हो जाता था… कुछ लोग कह सकते हैं कि पचासी साल के पिता से सेवा ले रहा है यह 64 साल का व्यक्ति. लेकिन वे समझ नहीं सकते कि सीन वह नहीं जो दिख रहा है. असल सीन है कि एक छोटे बच्चे के हाथ पैर उसकी मां सहला रही है.

पिछले दो महीने से उनकी अस्वस्थता के कारण वह सहलाना बंद है. आगे कभी होगा भी या नहीं – वह भी तय नहीं है. आई सी यू में लेटे उनके हाथ पैर छाती और मुंह सहलाता हूँ. लगता है मेरी आँखों की टियर डक्टस् ब्लॉक हो गई हैं. उसमें पानी ठीक से पास नहीं होता है आजकल.

आईसीयू के बेड पर पिताजी.

डाक्टर कह रहे हैं आप कोई मिरेकल की उम्मीद न करें. अस्पताल में रखेंगे तो हम लोग केयर करेंगे ही, पर वह केयर घर में भी की जा सकती है. कुल मिलाकर वे हमें जबरी जाने को नहीं कह रहे, पर सुझाव दे रहे हैं कि यहां समय गुजरना फायदेमंद नहीं. घर का वातावरण बेहतर रहेगा.

यूँ ही स्टेबल रहा तो कल तक हम घर ले जाएंगे पिताजी को. मन में वही चल रहा है कि कैसे खिलाएं, नहलाऐं, घुमाएं फिरायेंगे. ह्वील चेयर लेना होगा. सर्दियों के लिए कमरे का तापक्रम ठीक रखने के लिए उपकरण लगाने होंगे. फीडिंग की कैलोरी और मेन्यू बनाना होगा. कोशिश रहेगी कि जितना आरामदायक वातावरण दे सकें, वह नियोजित हो जाए.

यह सब सोचने में समय कट रहा है. पर बीच बीच में पिताजी के अंत की आहट भी होती है. मां और पिता दोनों को खोना बड़ा भयावह एहसास है. छटपटाहट होती है.

लगता है कोई सिर दबा दे. पैर सहला दे. पत्नीजी को कहता हूँ. वे करती हैं. पर पिताजी के हल्के पर सधे स्पर्श की याद बनी रहती है.

शाम का समय. रोशनी कम हो रही है बाहर. दिन बीत रहा है. दिवस के अंत की आहट उदास कर जाती है.

एक बार फिर उठ कर आई सी यू में लेटे पिताजी को देख आता हूँ. आंखे मूंदे वे छोटी गौरैया या बीमार मुनिया की तरह पड़े हैं.

अंत की आहट…


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

6 thoughts on “अंत की आहट उदास करती है

  1. द्वारिकाधीश मणि त्रिपाठी says:

    पिताजी के उत्तम स्वास्थ्य की मनोकामना हेतु …ओम् त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
    उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
    इस मंत्र को मोबाइल पर निरंतर जारी रखें

    Like

  2. पिताजी शीघ्र स्वस्थ हों,

    प्रभु से ये प्रार्थना कर रहा हूं.

    आपको उनसे शर्त वाले पैसे भी तो पाने हैं.

    Liked by 1 person

  3. दुआएं कर रहे कि आपके पिताजी फिर से ठीक हो जाएं। गिर आपके हाथ पैर सहलाएं।

    Like

  4. सभी के साथ आ खड़े होते हैं कभी ना कभी जीवन में इसी तरह समय के ठहराव । धैर्य रखें।

    Like

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: