नंदू नाऊ के साथ घण्ट अनुष्ठान


वाचाल है नंदन (नंदू) नाऊ. थोड़े हल्के बाभन पंडित को, जो नौसिखिया हों, दबेड़ लेता है. पिताजी के दाह संस्कार के अवसर पर मेरे नाऊ का धर्म कर्म उसी ने किया था.

नंदू नाऊ

शिवकुटी में गंगा किनारे एक पार्क टाइप जगह है, जहां दो पीपल के वृक्ष हैं. वहीं पर दस दिन के श्राद्ध कार्यक्रम का घण्ट बंधता है. नंदन मुझे रोज सवेरे शाम वहां ले जाता है. सवेरे घंट में जल भरने के लिए और शाम के समय दीपक जलाने के लिए. वह सब मैं अकेले भी कर सकता हूं, पर नाऊ की उपस्थिति आवश्यक मानी जाती है.

पीपल पर घंट टांगे गए हैं पिताजी के दस दिन के श्राद्ध अनुष्ठान के लिए

पर नंदू समय पालन नहीं करता. कल शाम को समय पर नहीं आया तो उसके बिना मैंने काम चलाया. आज सवेरे पैंतालीस मिनट लेट आया. लेट आने की कमी अपनी वाचालता से पूरी करता है.

घर से घंट तक 750 कदम की दूरी है. अपने घुटने के दर्द के कारण मैं उसके पीछे चलता हूँ. धीरे-धीरे. आगे आगे वह मोनोलॉग में कहता चलता है. “इस साल बारिश बहुत हुई. विनोद तेली के बगल की यह गली आधी पानी में डूबी थी. सीवेज का काम हो गया है पर बारिश के कारण कनेक्शन नहीं हुआ है. नालियों में पानी पहले की तरह बह रहा है. इस लिए सूअर भी घूम रहे हैं. सड़क पानी से उखड़ गई है…. लोग कचरा गली में फैंक देते हैं. बादल जब पार्षद था तो काम कराता था. उसके बाद मुरारी बना तो राम ही मालिक थे.. अब कमलेश तिवारी बने हैं तो बोल रहे हैं कि फण्ड ही नहीं आया है.”

उधड़ी सड़क पर आगे चलता नंदन नाऊ

750 कदम में से तीन सौ कदम चांद की धरती की तरह हैं. गड्ढे और उधड़ी सड़क वाले. उसके बाद सौ कदम तो पूरा वैतरणी ही है. गंगा में जाते सीवेज नाले की बगल से निकलना होता है; जहां शिवकुटी की एक बसावट का कचरा भी फैंका जाता है. गंदी और बदबू दार जगह. नर्क की यात्रा का अनुभव हो जाता है सुबह शाम की इस गतिविधि में. गरुड़ पुराण सुनने की जरूरत ही नहीं बचती!

वैतरणी की अनुभूति

खराब लगता है सुबह शाम का यह आना जाना. पर अब एक सप्ताह और बचा है. किसी तरह यह निभाना ही है. कष्ट सिर्फ सड़क और नाले की गंदगी का है अन्यथा गंगा किनारे वह पीपल का पेड़, घंट, उसमें जल भरना या दीपक रखना और सुबह सूरज और शाम को पूरे होते चंद्रमा को निहारना बहुत प्रिय लगता है. नंदन मुझे पिताजी का ध्यान कर पीपल के तने को वैसे दबाने को कहता है, मानो पिताजी का पैर दबा रहा होऊं. बहुत अच्छा लगता है. पीपल का उभार लिया तना पैर जैसा प्रतीत होता है.

गंगा किनारे घण्ट टांगने का स्थान

एक हफ्ता और.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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